सवाल संस्कृति का : हमारी जग में यह पहचान, हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान….‌‌‌‌

asiakhabar.com | February 18, 2023 | 5:58 pm IST
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-ओम प्रकाश मेहता-
हमारी आजादी के बाद बने हमारे संविधान तथा प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा लागू
किए गए पंचशील सिद्धांतों में हमारे देश का मूल आधार हमारी धर्म निरपेक्षता रही है, हमारे
संविधान में सभी धर्मों के सम्मान का उल्लेख है, किंतु अब हमारे मौजूदा संविधान के 73वें सवाल में
कई पक्षों द्वारा धर्म को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं और अब तक की सरकारों की नीतियों व
उनके धर्म के प्रति नजरिए को सवालों के कटघर में खड़ा किया जा रहा है।
पिछले कुछ सालों से हमारे देश में राजनीतिक स्तर पर हिंदुत्व व हिंदू राष्ट्र को लेकर विवाद जारी है,
हमारा देश वैसे तो हिंदुओं के बहुमत वाला देश है, किंतु हमारे सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत के कारण
हमारे यहां सभी धर्मों को आदर की दृष्टि से देखा गया है, यद्यपि हमारे देश में सभी धर्मों के लोग
अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के साथ रहते हैं, चाहे वह सिख हो या इसाई या और कोई, किंतु मुख्यता
अब हमारे देश के दो ही धर्मो से पहचान कराने का प्रयास किया जा रहा है, हिंदू तथा मुस्लिम।
यद्यपि हमारे देश के मुस्लिम भाई पड़ोसी देश पाकिस्तान के मुस्लिमों से यहां ज्यादा खुशहाल
महसूस करते हैं और सभी धर्मावलंबी आपस में मिलजुल कर रहते आए हैं, किंतु पिछले कुछ अर्से से

हिंदुस्तान की पहचान हिंदुओं से आंक कर देखा जाने लगा है और अब हमारे देश की पहचान है हिंदी-
हिंदू-हिंदुस्तान मान ली गई है, यही नहीं कुछ साधु-संतों के मठाधीशों ने तो हमारे देश को हिंदू राष्ट्र
बनाने का संकल्प तक ले लिया है।
लेकिन यहां यह भी सही है कि हमारे हिंदुस्तान में अब तक हर मामले में हमारी पहचान हिंदुत्व को
ही घाटे में रखा गया है, उदाहरण स्वरूप हमारे भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने हाल ही में
एक सवाल उठाया है कि सरकार सिर्फ हिंदू मंदिरों को ही अपने कब्जे में क्यों लेती है? क्या अन्य
धर्मों के आस्था केंद्रों में अव्यवस्थाएं है या कथित लूटपाट नहीं होती? उन्होंने तो यहां तक भी मांग
की है कि मुस्लिमों का जैसे वक्फ बोर्ड है वैसा हिंदुओं का सनातन बोर्ड क्यों नहीं बनाया जाता?
भारतीय जनता पार्टी के इन सांसद महोदया का तर्क था कि मस्जिदों, गुरुद्वारों व चर्चो का करोड़ों
अरबों रुपया खर्च करने का अधिकार संबंधित प्रबंधक कमेटियों को है तो फिर हिंदुओं के मंदिरों के
खजानों पर सरकार अपना अधिकार क्यों जताती है, हिंदू मंदिरों के प्रबंधकों व ट्रस्टों को यह राशि
खर्च करने की छूट क्यों नहीं दी जाती? साध्वी सांसद के यह सवाल बिल्कुल वाजिब है अभी तक
अनुत्तरित ही है, किंतु सवाल करने वाली सांसद की पार्टी की सरकार व उसके मुखिया मौन साधे हुए
हैं, साध्वी का तो खुला आरोप है कि हिंदुओं की इस भूमि पर हिंदुओं के साथ ही धार्मिक भेदभाव
किए जा रहे हैं?
यह तो हुई हिंदू और हिंदुस्तान की बात अब यदि हम हिंदी की बात करें तो इसे सिर्फ दिखावे के
लिए राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है ना तो हिंदी को वास्तविक राष्ट्रभाषा बनाने के अभी तक कोई
प्रयास किए गए हैं और ना ही ऐसी कोई सरकार की मंशा ही दिखाई दे रही है, केंद्र वह राज्य
सरकारों की अभी भी मुख्य प्रचलित भाषा अंग्रेजी ही है, केंद्र सरकार के सभी आदेश अध्यादेश अंग्रेजी
भाषा में ही जारी हो रहे हैं, जबकि हिंदी को हमारी मातृभाषा की वकालत करने वालों की सरकारी
स्तर पर भी कोई कमी नहीं है। अब यदि आजादी के इतने सालों बाद भी हम अंग्रेजी के गुलाम बने
हुए हैं तो इसमें हमारे अलावा कौन दोषी हो सकता है। इस प्रकार कुल मिलाकर हमारे देश के मौजूदा
कर्णधार भी अपने कई रूपों में नजर आने लगे हैं, कभी वह देश या राष्ट्रभक्ति का मुखौटा पहन लेते
हैं, तो कभी समाज सेवक का, जबकि उनकी वास्तविकता क्या है? यह किसी से भी छुपा हुआ नहीं
है। इसलिए आज यह हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि हम अपना परिचय हिंदी-हिंदू-
हिंदुस्तान के रूप में दें और इस दिशा में पूरी आस्था के साथ कदम भी आगे बढ़ाएं।


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