अज्ञान के अंधकार
का अंत है शिव रात्रि
ज्ञान के सूर्योदय की
पावन बेला है शिव रात्रि
शिव जो कल्याणकारी है
शिव जो मंगलकारी है
शिव जो जगतपिता है
शिव के पावन अवतरण
की मधुर याद है शिव रात्रि
शिव परमात्मा नमःमन्त्र
का उदघोष काल है शिवरात्रि
पतित से पावन बनाने की
इंसान से देबता बनाने की
शुभ घड़ी का नाम है शिवरात्रि।
इस बार महाशिवरात्रि की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 18 फरवरी सन 2023 को रात 08 बजकर 02
मिनट पर होगी और इसका समापन 19 फरवरी 2023 को शाम 04 बजकर 18 मिनट पर होगा।
महाशिवरात्रि की पूजा निशिता काल में की जाती है।निशिता काल का समय 18 फरवरी की रात 11
बजकर 52 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक है।जबकि प्रथम पहर पूजा का समय 18 फरवरी की
शाम 06 बजकर 40 मिनट से रात 09 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
द्वितीय पहर में पूजा का समय रात के समय 09 बजकर 46 मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक
रहेगा।वही तृतीय पहर पूजा का समय 19 फरवरी की रात 12 बजकर 52 मिनट से 03 बजकर 59
मिनट तक रहेगा।इसी प्रकार चतुर्थ पहर में पूजा का समय 19 फरवरी को सुबह 03 बजकर 59
मिनट से 07 बजकर 05 मिनट तक रहेगा।इस बार महाशिवरात्रि को ही शनि प्रदोष व्रत और मासिक
शिवरात्रि भी पड़ रही है। प्रदोष व्रत पर शंकर और पार्वती की पूजा भी की जाती है। प्रदोष व्रत प्रति
माह दो बार होता है। दरअसल शिव परमात्मा ऐसी परम शक्ति है, जिनसे देवताओं ने भी शक्ति
प्राप्त की है। भारत के साथ साथ मिश्र, यूनान, थाईलैण्ड, जापान, अमेरिका, जर्मनी, जैसे
दुनियाभर के अनेक देशों ने परमात्मा शिव के अस्तित्व को स्वीकारा है। धार्मिक चित्रों में स्वंय
श्रीराम, श्रीकृष्ण और शंकर भी भगवान शिव की आराधना
में ध्यान मग्न दिखाये गए है। जैसा कि पुराणों और
धार्मिक ग्रन्थों में भी उल्लेख मिलता है। श्री राम
ने जहां रामेश्वरम में शिव की पूजा की तो श्रीकृष्ण ने
महाभारत युद्ध से पूर्व शिव स्तुति की थी। इसी तरह शंकर को भी भगवान शिव में ध्यान लगाते
देखे जाने के चित्र प्रदशित किये गए है। दरअसल शिव और शंकर दोनो अलग अलग है शिव
परमपिता परमात्मा है तो ब्रहमा, विष्णु और महेश यानि शंकर उनके देव तभी तो भगवान शिव को
देव का देव महादेव अर्थात परमपिता परमात्मा स्वीकारा गया है।
ज्योति बिन्दू रूपी शिव ही अल्लाह अर्थात नूर ए इलाही है।वही लाईट आफ गोड है और वही सतनाम
है।यानि नाम अलग अलग परन्तु पूरी कायनात का मालिक एक ही परम शक्ति है जो शिव है।
सिर्फ भारत के धार्मिक ग्रन्थों और पुराणों में ही शिव के रूप में परमात्मा का उल्लेख नही है बल्कि
दुनियाभर के लोग और यहूदी, ईसाई, मुस्लमान भी
अपने अपने अंदाज में परमात्मा को ओम, अल्लाह, ओमेन के रूप में स्वीकारते है। सृष्टि की रचना
की प्रक्रिया का चिंतन करे तो कहा जाता है कि सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर की आत्मा पानी पर
डोलती थी और आदिकाल में परमात्मा ने
ही आदम व हवा को बनाया जिनके द्वारा स्वर्ग की रचना की गई। चाहे शिव पुराण हो या मनुस्मृति
या फिर अन्य धार्मिक ग्रन्थ हर एक में परमात्मा के वजूद को तेजस्वी रूप माना गया है। जिज्ञासा
होती है कि अगर परमात्मा है तो वह कहां है , क्या किसी ने परमात्मा से साक्षात किया है या फिर
किसी को परमात्मा की कोई अनूठी अनुभूति हुई है।
साथ ही यह भी सवाल उठता है कि आत्माये शरीर धारण करने से पहले कहा रहती है और शरीर
छोडने पर कहा चली जाती है।इन सवालो का जवाब भी सहज ही उपलब्ध है। सृष्टि चक्र में तीन
लोक होते है पहला स्थूल वतन, दूसरा सूक्ष्म वतन और तीसरा मूल वतन अर्थात परमधाम। स्थूल
वतनजिसमें हम निवास करते है पंच तत्वों से मिलकर बना है।
जिसमें आकाश पृथ्वी, वायु, अग्नि औरजल शामिल है।इसी स्थूल वतन को कर्म क्षेत्र भी कहा गया
है।जहां जीवन मरण है और अपने अपने कर्म के अनुसार जीव फल भोगता है। इसके बाद सूक्ष्म वतन
सूर्य, चांद और तारों के पार है जिसे ब्रहमपुरी, विष्णुपुरी और शंकरपुरी भी कहा जाता है। सूक्ष्म वतन
के बाद मूल वतन है जिसे परमधाम कहा जाता है। यही वह स्थान है जहां परमात्मा निवास करते है।
यही वह धाम है जहां सर्व आत्माओ का मूल धाम है। यानि आत्माओं का आवागमन इसी धाम से
स्थूल लोक के लिए
होता है। आत्माओं का जन्म होता है और परमात्मा का अवतरण होता है। यही आत्मा और परमात्मा
में मुख्य अन्तर है। सबसे बडा अन्तर यह भी हैे कि आत्मा देह धारण करती है जबकि परमात्मा देह
से परे है।परमात्मा निराकार है और परमात्मा ज्योर्ति बिन्दू रूप में सम्पूर्ण आत्माओं को प्रकाशमान
करता है यानि उन्हे पतित से पावन बनाता है। पतित
से पावन बनाने के लिए ही परमात्मा शिव संगम युग में अवतरित होते है। जो परम ऐश्वर्यवान हो,
जिसे लोग भजते हो अर्थात जिसका स्मरण करते हो एक रचता के रूप में , एक परमशक्ति के रूप
में एक परमपिता के रूप में वही ईश्वर है और वही शिव है। एक मात्र वह शिव जो ब्रहमा, विष्णु और
शकंर के भी रचियता है। जीवन मरण से परे है। ज्योति बिन्दू स्वरूप
है। वास्तव में शिव एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से परमात्मा की सुखद अनुभूति होने
लगती है। शिव को कल्याणकारी तो सभी मानते है, साथ ही शिव ही सत्य है शिव ही सुन्दर है यह
भी सभी स्वीकारते है। परन्तु यदि मनुष्य को शिव का बोध हो जाए तो उसे जीवन मुक्ति का लक्ष्य
प्राप्त हो सकता है।
गीता में कहा गया है कि जब जब भी धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जाते है, समाज में अनाचार,
पापाचार
, अत्याचार, शोषण, क्रोध, वैमनस्य, आलस्य, लोभ, अहंकार, कामुकता, माया मोह बढ जाता है तब
तब ही परमात्मा को स्वयं आकर राह भटके लोगो को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा का कार्य करना
पडता है। ऐसा हर पाचं हजार साल में पुनरावृत होता है। पहले सतयुग, फिर त्रेता, फिर द्वापर और
फिर कलियुग तक की यात्रा इन पांच हजार वर्षो में होती है। हांलाकि
सतयुग में हर कोई पवित्र, सस्ंकारवान, चिन्तामुक्त और सुखमय होता है।परमात्मा उसी समय
अवतरित होते है जब विकारो का अन्धकार छाया हो । विकारों की अन्धकार रूपी रात्रि को दूर कर
पवित्र, पावन और सत्यता का प्रकाश फैलाने के लिए ही परमात्मा शिव अवतरित होते है जिसे शिव
रात्रि कहा जाता है। धार्मिक दृष्टि में विचार मथंन करे तो भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे परमात्मा है
जिनकी देवचिन्ह के रूप में शिवलिगं की स्थापना कर पूजा की जाती है। लिगं शब्द का साधारण अर्थ
चिन्ह अथवा लक्षण है। चूंकि भगवान शिव ध्यानमूर्ति के रूप में विराजमान ज्यादा होते है इसलिए
प्रतीक रूप में अर्थात ध्यानमूर्ति के रूप शिवलिगं की पूजा की जाती है। पुराणों में लयनाल्तिमुच्चते
अर्थात लय या प्रलय से लिगं की उत्पत्ति होना बताया गया है। जिनके प्रणेता भगवान शिव है। यही
कारण है कि भगवान शिव को प्राय शिवलिगं के रूप अन्य सभी देवी देवताओं को मूर्ति रूप पूजा की
जाती है। शिव स्तुति एक साधारण प्रक्रिया है। ओम नमः शिवाय का साधारण उच्चारण उसे
आत्मसात कर लेने का नाम ही शिव अराधना है। श्रावण मास में शिव स्तुति मनोकामना पूर्ण करने
वाली होती है। ऋृग्वेद, यजुर्वेद व अर्थवेद में भगवान शिव को ईश, ईशान, रूद्र, ईश्वर, कपर्दी,
नीलकण्ठ, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, भोलेशंकर नामों से जाना जाता है। एक परमशक्ति के रूप में एक
परमपिता के रूप में वही ईश्वर है और वही शिव है। एक मात्र वह शिव जो ब्रहमा, विष्णु और शकंर
के भी रचियता है। जीवन मरण से परे है। ज्योति बिन्दू स्वरूप है। वास्तव में शिव एक ऐसा शब्द है
जिसके उच्चारण मात्र से परमात्मा की सुखद अनुभूति होने लगती है। शिव को कल्याणकारी तो सभी
मानते है, साथ ही शिव ही सत्य है शिव ही सुन्दर है यह भी सभी स्वीकारते है। परन्तु यदि मनुष्य
को शिव का बोध हो जाए तो उसे जीवन मुक्ति का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।