76 वर्षों से बच्चों के कल्याण के लिए प्रयासरत है
यूनिसेफ

asiakhabar.com | December 10, 2022 | 5:33 pm IST
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-योगेश कुमार गोयल-
यूनिसेफ (यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेंस फंड) की स्थापना को आज 76 वर्ष हो चुके हैं और इन 76 वर्षों में
यूनिसेफ ने दुनियाभर में बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए अनेक उल्लेखनीय कार्य किए
हैं। प्रतिवर्ष बच्चों के कल्याण के लिए एक थीम के जरिये यूनिसेफ दिवस मनाया जाता है और इस
वर्ष का विषय बच्चों को पिछले दो वर्षों में महामारी के दौरान हुई रुकावट और सीखने के नुकसान से
उबरने में मदद करना है। विश्वभर में बच्चों के स्वास्थ्य पोषण शिक्षा कल्याण और विकास के लिए
किए जा रहे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए ही यूनिसेफ को वर्ष 1965 में नोबेल शांति पुरस्कार वर्ष 1989
में इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार तथा वर्ष 2006 में प्रिंस ऑफ अस्तुरियस अवार्ड जैसे प्रतिष्ठित
सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। नोबेल पुरस्कार दिए जाने के बाद वैश्विक स्तर पर यूनिसेफ का
कार्य और तेज हो गया। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो यूनिसेफ की शिक्षा इकाई के कारण ही वर्ष
2006 तक विश्वभर में करीब 12 मिलियन बच्चे पढ़ाई के लिए स्कूल वापस जा सके। यूनिसेफ बाल
अधिकारों के संरक्षण के लिए आपात स्थितियों में कार्रवाई करता है और युद्ध आपदा घोर गरीबी हर
प्रकार की हिंसा और शोषण तथा विकलांगता से पीड़ित सर्वाधिक वंचित बच्चों के लिए विशेष संरक्षण
सुनिश्चित करने के प्रति संकल्पबद्ध है। यह बच्चों को पहला अधिकार दिलाता है और वंचित बच्चों
तथा उनके परिवारों के लिए उपयुक्त नीतियां बनवाने और सेवाएं प्रदान करने की देशों की क्षमता का
निर्माण करता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तबाह हुए देशों के बच्चों और माताओं को आपातकालीन स्थिति में
भोजन तथा स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा 11
दिसम्बर 1946 को न्यूयार्क में यूनिसेफ की स्थापना की गई थी। उस समय इसे ‘यूनाइटेड नेशंस
इंटरनेशनल चिल्ड्रेन्स इमरजेंसी फंड’ के नाम से जाना जाता था। विकासशील देशों में बच्चों और
महिलाओं की दीर्घकालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वर्ष 1950 में यूनिसेफ के दायरे को

विस्तारित किया गया। वर्ष 1953 में यूनिसेफ संयुक्त राष्ट्र का एक स्थायी हिस्सा बन गया और इस
संगठन के नाम में से ‘अंतर्राष्ट्रीय’ तथा ‘आपातकालीन’ (इमरजेंसी) शब्दों को हटा दिया गया। वर्ष
1953 में यूनिसेफ के संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य बन जाने के बाद इसका नाम ‘यूनाइटेड नेशंस
चिल्ड्रेंस फंड’ (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) कर दिया गया लेकिन मूल संक्षिप्त नाम ‘यूनिसेफ’ को
बरकरार रखा गया। यूनिसेफ का गठन करने में पोलैंड के चिकित्सक लुडविक रॉश्मन ने प्रमुख
भूमिका निभाई थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा बाल अधिकारों के संरक्षण की हिमायत करने उनकी
बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में मदद देने तथा उनकी प्रतिभा के पूर्ण विकास के अवसरों का
विस्तार करने का दायित्व यूनिसेफ को सौंपा गया है जो बाल अधिकार समझौते से मार्गदर्शन लेते
हुए बाल अधिकारों को चिरंतन नैतिक सिद्धांतों और बच्चों के प्रति व्यवहार के अंतर्राष्ट्रीय मानकों के
रूप में स्थापित करने के लिए सदैव प्रत्यनशील रहता है।
वर्ष 1946 में यूनिसेफ की स्थापना द्वितीय युद्ध में प्रभावित बच्चों की सुरक्षा के उद्देश्य से ही की
गई थी लेकिन अब यह संस्था दुनियाभर में बच्चों के कल्याण के लिए कार्यरत है। वर्तमान में
यूनिसेफ के कार्यकर्ता दुनियाभर के 190 से भी अधिक देशों में बच्चों के कल्याण के लिए निरन्तर
कार्य कर रहे हैं। भारत में इस संस्था ने वर्ष 1949 में कार्य करना प्रारंभ किया था और अब हमारे
यहां यह नई दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश राजस्थान महाराष्ट्र मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ गुजरात बिहार
झारखंड पश्चिम बंगाल आंध्र प्रदेश तमिलनाडु कर्नाटक असम उड़ीसा इत्यादि राज्यों में कार्य कर रही
है। बाल विकास और पोषाहार बाल संरक्षण शिक्षा बाल पर्यावरण पोलियो उन्मूलन प्रजनन एवं बाल
स्वास्थ्य बच्चे और एड्स सामाजिक नीति नियोजन निगरानी एवं मूल्यांकन हिमायत और भागीदारी
आचरण परिवर्तन संदेश आपात स्थिति तैयारी और कार्रवाई जैसे क्षेत्रों पर यूनिसेफ का मुख्य फोकस
रहता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग के अलावा यूनिसेफ द्वारा दुनियाभर में मौजूद
अनेक स्वास्थ्य सेवा संस्थानों के साथ मिलकर बच्चों को पानी स्वच्छता इंफेक्शंस आदि केे लिए
कैम्पैन चलाए जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था द्वारा प्रतिवर्ष दुनियाभर में नवजात बच्चों के
टीकाकरण के लिए तीन बिलियन से भी अधिक टीके प्रदान किए जाते हैं। यूनिसेफ की सबसे बड़ी
विशेषता यही है कि यह संस्था दुनियाभर में बच्चों के कल्याण हेतु कार्य के दौरान किसी भी प्रकार
के जाति धर्म राष्ट्रीयता राजनीतिक विचारधारा इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं करती। यह संस्था
करीब 50 देशों में एचआईवी/एड्स से बचाव की लड़ाई में निरन्तर कार्यरत है।
यूनिसेफ का 36 सदस्यों का कार्यकारी दल इसके कार्यों की देखरेख करता है इसकी नीतियां बनाता है
तथा यूनिसेफ के वित्तीय एवं प्रशासनिक योजनाओं से जुड़े कार्यक्रमों को स्वीकृति प्रदान करता है।
यूनिसेफ का अधिकांश कार्यक्षेत्र 190 देशों अथवा क्षेत्रों में मौजूद है। 150 से अधिक देशों के कार्यालय
मुख्यालय और यूनिसेफ के नेटवर्क से जुड़े अन्य कार्यालय तथा 34 राष्ट्रीय समितियां मेजबान
सरकारों के साथ विकसित कार्यक्रमों के माध्यम से यूनिसेफ के मिशन को पूरा करते हैं। सात क्षेत्रीय
कार्यालय आवश्यकतानुसार सभी देशों में स्थित कार्यालयों को तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं।
वर्तमान में यूनिसेफ फंड एकत्रित करने के लिए विश्वस्तरीय एथलीट और टीमों की सहायता लेता है।
इस संस्था का वित्त पोषण विभिन्न सरकारों तथा निजी दानदाताओं द्वारा किया जाता है। संस्था के
संसाधनों का दो-तिहाई योगदान विभिन्न देशों की सरकारें करती हैं और शेष योगदान निजी समूहों
तथा व्यक्तियों द्वारा राष्ट्रीय समितियों के माध्यम से किया जाता है।

यूनिसेफ के लक्ष्यों की एक लंबी सूची है जिसमें न्यूनतम-लागत हस्तक्षेप के माध्यम से लाखों बच्चों
के जीवन को बचाने बच्चों के अवैध व्यापार और शोषण को रोकने तथा मां-बच्चे के बीच
एचआईवी/एड्स के संक्रमण को समाप्त करने में सहायता करना शामिल हैं। अनुमान लगाया जाता
रहा है कि यूनिसेफ के राजस्व का करीब 92 फीसदी हिस्सा सेवा कार्यक्रमों के लिए वितरित कर दिया
जाता है। वर्तमान में यूनिसेफ द्वारा बच्चों का विकास बुनियादी शिक्षा लड़कियों की शिक्षा सहित
लिंग के आधार पर समानता बच्चों का हिंसा से बचाव शोषण बाल-श्रम के विरोध में एचआईवी/एड्स
बच्चों के अधिकारों के वैधानिक संघर्ष इत्यादि के लिए सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं।
यूनिसेफ इस बात में विश्वास रखता है कि बच्चों का पोषण और देखभाल करना मानव प्रगति की
आधारशिला है और उसका मानना है कि अगर दुनिया में फैली असमानता को मिटाया नहीं गया तो
वर्ष 2030 तक लगभग 167 मिलियन बच्चे भीषण गरीबी में जीवन जीने को मजबूर होंगे। दरअसल
माना जा रहा है कि 2030 तक पांच वर्ष से कम आयु के करीब 19 मिलियन बच्चों की विभिन्न
कारणों से मौत हो जाएगी और करीब 60 मिलियन बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। ऐसे
में बच्चों के कल्याण और सर्वांगीण विकास के लिए कार्यरत यूनिसेफ से उम्मीदें काफी बढ़ जाती हैं
जिसकी नीति है कि कोई अन्य विकल्प नहीं होने पर ही अनाथालयों को केवल बच्चों के लिए
अस्थायी आवास के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए। दरअसल यूनिसेफ बच्चों के लिए स्थायी
अनाथालयों के बड़े पैमाने पर निर्माण का विरोध करता रहा है। उसका कहना है कि जहां तक संभव
हो परिवारों और समुदायों में ही बच्चों के लिए स्थान खोजने अर्थात् उन्हें गोद देने को प्राथमिकता दी
जानी चाहिए। यूनिसेफ अनाथ बच्चों को विदेशी माता-पिता को गोद देने के बजाय स्वदेश में ही
बच्चों की देखभाल करने पर जोर देता रहा है।


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