मोदी ‘अपराजेय’ नहीं

asiakhabar.com | December 10, 2022 | 5:32 pm IST
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चुनावों का फिलहाल मौसम समाप्त हो चुका। गुजरात और हिमाचल समेत कुछ उपचुनावों के भी
जनादेश सार्वजनिक हो चुके हैं। अब नई सरकारें बनेंगी, निर्वाचित सदस्य शपथ ग्रहण करेंगे। इस बार
नतीजे अलग-अलग रहे हैं, लिहाजा समझा जा सकता है कि लोकतंत्र मजबूत और विविध साबित
हुआ है। इनमें गुजरात का जनादेश सबसे महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसने एक लंबे शासन के प्रति जन-
लहर को ही बेअसर किया है। भारत में फिलहाल यह विरला उदाहरण है। हालांकि गुजरात में
मुसलमान भाजपा और मोदी-विरोधी रहे हैं। उसके बावजूद करीब 34 फीसदी मुसलमानों ने भाजपा के
पक्ष में वोट दिए। सौराष्ट्र, कच्छ, दक्षिण गुजरात की आदिवासी पट्टी, दलितों, ग्रामीणों आदि ने
भाजपा को वोट दिए, जबकि इन इलाकों में कांग्रेस का जनाधार रहा है। इस चुनाव से आम आदमी
पार्टी (आप) ने भी सेंध लगाने की कोशिश की है और गुजरात में 12.8 फीसदी वोट लेकर 5 सीटें
जीती हैं। राज्य के ब्राह्मण, बनिया, राजपूत आदि समुदाय तो परंपरागत रूप से भाजपा-समर्थक रहे
हैं। गुजरात जनादेश ने स्पष्ट कर दिया कि महिलाओं और युवाओं के अधिकांश वोट भाजपा को
मिले।
हालांकि राज्य में करीब 40 लाख नौजवान पंजीकृत बेरोजग़ार बताए जाते हैं, महंगाई भी एक मुद्दा
है, लेकिन लोगों ने व्यापक हितों के मद्देनजर जनादेश दिया। बेशक गुजरात का चुनाव प्रधानमंत्री
मोदी के चेहरे, उनके क्षणों, अनथक मेहनत और गति, पार्टी काडर और गुजरात की अस्मिता पर ही
तय हुआ। 1960 के बाद के तमाम कीर्तिमान ध्वस्त हो गए। भाजपा ने 85 फीसदी से ज्यादा सीटों
पर जीत हासिल की और 156 सीटों का अप्रत्याशित, अतुलनीय, अकल्पनीय जनादेश प्राप्त किया।
भाजपा को करीब 1.70 करोड़ वोट मिले, जबकि ‘आप’ ने पहले ही चुनाव में करीब 41 लाख वोट
पाए। कांग्रेस को मात्र 17 सीटें मिली और 2017 के जनादेश की तुलना में उसकी 60 सीटें और
करीब 14 फीसदी वोट कम हो गए। वोट तभी संभव हो पाए, जब भाजपा के करीब 78 लाख
कार्यकर्ता गुजरात के कोने-कोने में बिछे रहे। उनके अलावा, आरएसएस ने भी खूब काम किया। यह है
भाजपा के चुनाव-प्रबंधन की एक बानगी! ऐसे प्रचंड जनादेश के बावजूद हमारा मानना है कि
प्रधानमंत्री मोदी भी ‘अपराजेय’ नहीं हैं। उन्हें पराजित किया जा सकता है। इन चुनावों में भी वह
पराजित हुए हैं, क्योंकि उन्होंने हिमाचल में धुआंधार प्रचार किया था और वह खुद को ‘हिमाचली
बेटा’ बताते रहे हैं। दिल्ली नगर निगम चुनाव में भी भाजपा ने प्रधानमंत्री के चेहरे का इस्तेमाल
किया था, लेकिन प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भाजपा ने चुनावी जीत-हार का अनुपात बहुत कम किया है।
हिमाचल में मात्र 0.9 फीसदी वोट से भाजपा पिछड़ गई और कांग्रेस को सत्ता नसीब हुई। प्रधानमंत्री
मोदी के जन-सैलाबी प्रचारों के बावजूद भाजपा ने पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना,
बिहार, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ आदि कई राज्यों में विधानसभा चुनाव गंवाए हैं।
बेशक बाद में सत्ता-समीकरण बदल गए। तमिलनाडु और केरल में आज भी भाजपा लगभग ‘शून्य’ है,
हालांकि प्रधानमंत्री मोदी वहां प्रचार करते रहे हैं। ऐसी पराजयों के बावजूद मोदी राजनीति के ‘राष्ट्रीय
चेहरा’ हैं और वह आम चुनाव को एकतरफा जीतते आए हैं, नतीजतन आज देश के प्रधानमंत्री हैं। उप्र
और गुजरात के विराट जनादेशों ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 के लोकसभा

चुनाव की बुनियाद तो तैयार कर ली है। 2023 में कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान,
तेलंगाना, कुछ पूर्वोत्तर राज्यों के चुनावी जनादेश 2024 की दशा-दिशा तय कर सकते हैं। इतना तय
है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ विपक्ष का संगठन और सियासत आज भी टुकड़े-टुकड़े है और 2024 के
दौर तक भी छिन्न-भिन्न रहेगी। अब नई लड़ाई कांग्रेस और ‘आप’ के बीच छिड़ेगी कि विपक्ष का
चेहरा कौन होना चाहिए।


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