-डॉ श्रीगोपाल नारसन-
लौकिक दृष्टि से श्रीमद्भागवत गीता को जाने तो द्वापर युग मे हुए महाभारत की युद्ध भूमि से
उपजा एक ऐसा ग्रन्थ माना जाता है जो श्रीकृष्ण के श्रीमुख से अर्जुन को दी गई सीख के रूप में
चर्चित है।जबकि अलौकिक दृष्टि से जाने तो वह परमपिता परमात्मा जो सुखों का सागर हैआंनददाता
हैकल्याणकारी हैमंगलकारी हैशांति प्रेमसदभाव अपनत्व का धनी है कैसे अपने ही बच्चों को आपस मे
लड़ानेमारकाट करने हत्या करने के लिए प्रेरित कर सकता है।वास्तव में परमात्मा द्वारा रचित
महाभारत युद्ध दो परिवारों के बीच हिंसक युद्ध नही थाबल्कि विकारों पर विजय प्राप्त करने के
लिए विकारों के विरुद्ध लड़ा गया युद्ध थाताकि कामक्रोधमोहलोभ और अहंकार को समाप्त कर
निर्विकारी दुनिया की रचना हो सके।लौकिक रचे गए महाभारत के पात्रों में युद्ध भूमि पर मुख्यतः
एक ही परिवार के दो पक्ष थेएक पांडव व दूसरे कौरव।पाण्डव पाँच भाई थे युधिष्ठिर भीम अर्जुन
नकुल व सहदेव।महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे परन्तु उनकी गिनती पांडवों में न होकर
कौरव में हुई ।राजा पाण्डु के पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर भीम और अर्जुन की माता कुन्ती थीं जबकि
नकुल और सहदेव की माता माद्री थी।
धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र थेजिन्हें कौरव कहा गया है।उनमें
दुर्योधन दुःशासन दुःसह दुःशल जलसंघ समसह विंद अनुविंद दुर्धर्ष सुबाहु दुषप्रधर्षणदुर्मर्षणदुर्मुख
दुष्कर्ण विकर्ण शल सत्वान
सुलोचन चित्र उपचित्रचित्राक्ष चारुचित्र शरासन दुर्मद दुर्विगाह विवित्सुविकटानन्द ऊर्णनाभ सुनाभ
नन्द उपनन्द चित्रबाण चित्रवर्मासुवर्मा दुर्विमोचनअयोबाहु महाबाहु चित्रांग चित्रकुण्डलभीमवेग
भीमबल बालाकि बलवर्धन उग्रायुधसुषेण कुण्डधर महोदर
चित्रायुध निषंगी पाशी वृन्दारक दृढ़वर्मादृढ़क्षत्र
सोमकीर्ति अनूदर दढ़संघ जरासंघ सत्यसंघ सद्सुवाक
उग्रश्रवा उग्रसेन सेनानी
दुष्पराजय अपराजित
कुण्डशायी विशालाक्ष
दुराधरदृढ़हस्त सुहस्त
वातवेग सुवर्च आदित्यकेतु
बह्वाशी नागदत्त उग्रशायी
कवचि क्रथन कुण्डी
भीमविक्र धनुर्धरवीरबाहु
अलोलुप अभय दृढ़कर्मा
दृढ़रथाश्रय अनाधृष्य
कुण्डभेदीविरवि
चित्रकुण्डल प्रधम
अमाप्रमाथि दीर्घरोमा
सुवीर्यवान दीर्घबाहु
सुजात कनकध्वज
कुण्डाशी विरज
युयुत्सु शामिल है।
कौरव में इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहन भी थी जिसका नामदुशालाथा।
जिसका विवाहजयद्रथसे हुआ था।इस लौकिक महाभारत को लेकर सवाल यह उठता है कि श्री मद्-
भगवत गीता किसने किसको सुनाई?लौकिक रूप से श्रीकृष्ण ने निमित्त बन परमात्मा का सद सन्देश
अर्जुन को दिया था।जिस दिन यह संदेश दिया उस दिन
रविवार था व एकादशी तिथि थी।यह संदेश कुरुक्षेत्र की रणभूमि में श्रीकृष्ण ने परमात्मा के निमित्त
बन लगभग 45 मिनट तक दिया। कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य ज्ञान देने के लिए और
आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए यह ज्ञान दिया गया।जिसके श्रीमद्भागवत गीता में
कुल 18 अध्याय है और वर्तमान में 700 श्लोक है।जबकि मात्र 45 मिनट में 700 श्लोक बोलना पूरी
तरह असंभव है।वास्तव में मूल श्रीमद्भागवत गीता में 400 श्लोक है300 श्लोक बाद में जोड़े गए
है।इन श्लोकों के माध्यम से ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है इन मार्गो
पर चलने से व्यक्ति परमानन्द पा जाता है। इस गीता ज्ञान को अर्जुन के अलावा धृतराष्ट्र व संजय
ने भी सुना था।
जबकि अर्जुन से पहले सूर्यदेव ने यह ज्ञान प्राप्त किया था।वर्तमान श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण
ने 574अर्जुन ने 85 धृतराष्ट्र ने 1
संजय ने 40 श्लोक बोले थे।हम
पुराणोंवेदों और उपनिषदों की माने तो अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक महाभारत कुरुक्षेत्र की
भूमि पर हुआ थालेकिन अपनो का अपनो के ही विरुद्ध युद्ध कैसे धर्म युद्ध माना जा सकता
है।महाभारत के सूत्रधार योगीराज श्रीकृष्ण क्यो अपनो से ही अपनो को युद्ध के लिए प्रेरित करते
और उनके मुख से परमात्मा ही क्यो गीता का उपदेश देकर उक्त युद्ध होने देते?सच यह है कि जो
परमात्मा हमारा पिता हैजो परमात्मा हमारा सद्गुरु है जो परमात्मा हमारा हमारा शिक्षक हैवह हमें
क्यो अपनो के ही विरुद्ध युद्ध करने के लिए आत्मा के अजर अमर होने का रहस्य
समझाएंगे।वास्तविकता यह कि यह युद्ध अपनो ने अपनो के विरूद्ध किया ही नही बल्कि अपने
अंदर छिपे विकारो के विरुद्ध यह युद्ध लड़ने की सीख दी गई।यानि हमारे अंदर जो रावण रूपीजो
कंस रूपी जो दुर्योधन रूपी जो दुशासन रूपी कामक्रोध अहंकार मोहलोभ छिपे है उनका खात्मा करने
और हमे मानव से देवता बनाने के लिए गीता रूपी ज्ञान स्वयं परमात्मा ने दिया।इसी ज्ञान की आज
फिर से आवश्यकता है।तभी तो परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय जैसी
संस्थाओं के माध्यम से कलियुग का अंत और सतयुग के आगमन का यज्ञ रचा रहे है।जिसमे
दुनियाभर से 140 से अधिक देश परमात्मा के इस मिशन को पूरा करने में लगे है।दरअसल
श्रीमद्भागवत गीता मात्र परमात्मा का उपदेश नही है अपितु यह जीवन पद्धति का सार भी है।यह
मानव में व्याप्त विभिन्न रोगों के उपचार की पद्धति है तो जीवन जीने की अदभुत कला का सूत्र
भी।श्रीमदभागवत के अठारह अध्यायों में ज्ञान योगकर्म योगभक्ति योग का समावेश है जिससे लगता
है मां सरस्वती स्वयं प्रकट होकर अज्ञान रूपी तमस को समाप्त कर ज्ञान रूपी सूर्य का उदय करती
है।गीता ज्ञान केवल भारतीय जनमानस के लिए ही हो ऐसा कदापि नही है बल्कि यह सम्पूर्ण संसार
का एक ऐसा दिव्य व भव्य ग्रन्थ है जिसे स्वयं परमात्मा ने रचा है।तभी तो श्रीमद्भागवत गीता के
श्लोकों में बार बार परमात्मा उवाच आता है जिसका अर्थ है परमात्मा कहते है।स्वयं योगीराज
श्रीकृष्ण के मुखारबिंद से निकले श्लोकों में भी परमात्मा उवाच पढ़ने व सुनने को मिलता है।जिससे
स्पष्ट है कि श्रीमद्भागवत गीता के रचयिता स्वयं परमात्मा है और योगीराज श्रीकृष्ण परमात्मा के
इस पुनीत यज्ञ के लिए निमित्त बने थे।सारे विश्व को ज्ञान कर्म एवं भक्ति का रहस्य समझाने वाले
महान ग्रन्थ श्रीमद्भगवत गीता का सृजन स्वयं परमात्मा ने किया है और महाभारत के युद्ध में
स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने इसे अपने शिष्य अर्जुन को सुनाया है!गीता रूपी ज्ञान स्वयं परमात्मा ने
दिया।जिसके निमित्त बने थे श्रीकृष्ण।परमात्मा के इसी ज्ञान की आज फिर से आवश्यकता है।तभी तो
परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय जैसी संस्थाओं के माध्यम से कलियुग
का अंत और सतयुग के आगमन का यज्ञ रचा रहे है।जिसमे दुनियाभर से 140 से अधिक देश
परमात्मा के इस मिशन को पूरा करने में लगे है। श्रीमद्भागवत गीता मात्र परमात्मा का उपदेश नही
है अपितु यह जीवन पद्धति का सार भी है।यह मानव में व्याप्त विभिन्न रोगों के उपचार की
पद्धति भी है तो जीवन जीने की अदभुत कला का सूत्र भी।श्रीमदभागवत के अठारह अध्यायों में
ज्ञान योगकर्म योगभक्ति योग का समावेश है। जिससे स्पष्ट है परमात्मा स्वयं प्रकट होकर अज्ञान
रूपी तमस को समाप्त कर ज्ञान रूपी सूर्य का उदय करते है।गीता ज्ञान केवल भारतीय जनमानस के
लिए ही हो ऐसा भी कदापि नही है बल्कि यह सम्पूर्ण संसार का एक ऐसा दिव्य व भव्य ज्ञान ग्रन्थ
है जिसे स्वयं परमात्मा ने रचा है।तभी तो श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों में बार बार परमात्मा उवाच
आता है। जिसका अर्थ है परमात्मा कहते है।स्वयं योगीराज श्रीकृष्ण के मुखारबिंद से निकले श्लोकों
में भी परमात्मा उवाच पढ़ने व सुनने को मिलता है।जिससे स्पष्ट है कि श्रीमद्भागवत गीता के
रचयिता स्वयं परमात्मा है और योगीराज श्रीकृष्ण परमात्मा के इस पुनीत यज्ञ के लिए निमित्त बने
थे।जिनके प्रति हमे कर्तयज्ञता का भाव रखना चाहिए।