नई दिल्ली। भारत के ‘सारस’ रेडियो टेलीस्कोप ने वैज्ञानिकों को बिग बैंग के
20 करोड़ वर्ष बाद बनने वाली सबसे पुरानी रेडियो चमकीली आकाशगंगाओं के गुणों को निर्धारित
करने में मदद की है। बिग बैंग की अवधि को ‘कॉस्मिक डॉन’ के रूप में जाना जाता है।
ये निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के समूह की ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं जिससे
पूर्व की रेडियो युक्त आकाशगंगाओं के बारे में जानने का अवसर मिला है। ये रेडियो युक्त
आकाशगंगाएं आमतौर पर अत्यंत विशालकाय ‘ब्लैक होल’ से संचालित होती हैं।
बेंगलुरु स्थित रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) के सौरभ सिंह सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने
पहली पीढ़ी की आकाशगंगाओं के ऊर्जा उत्पादन, चमक और द्रव्यमान का अनुमान लगाया, जो रेडियो
तरंग दैर्ध्य के साथ प्रकाशमान हैं।
आरआरआई में डिजाइन और विकसित किए गए स्वदेशी ‘शेप्ड एंटीना मीजरमेंट ऑफ द बैकग्राउंड
रेडियो स्पेक्ट्रम 3’ (सारस) टेलीस्कोप को 2020 की शुरुआत में उत्तरी कर्नाटक में दंडिगनहल्ली झील
और शरावती नदी के पास तैनात किया गया था।
आरआरआई के अलावा, ऑस्ट्रेलिया में कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन
(सीएसआईआरओ) के अनुसंधानकर्ताओं ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय और तेल अवीव विश्वविद्यालय के
सहयोगियों के साथ रेडियो तरंग दैर्ध्य के कारण चमकीली आकाशगंगाओं की पहली पीढ़ी के ऊर्जा
उत्पादन, चमक और द्रव्यमान का अनुमान लगाने के लिए अध्ययन में भाग लिया। वैज्ञानिकों ने
लगभग 1420 मेगाहर्ट्ज की आवृत्ति पर उत्सर्जित आकाशगंगाओं में और उसके आसपास हाइड्रोजन
परमाणुओं से विकिरण देखा।