-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-
गृहमंत्री अमित शाह ने बारामूला में 10 हजार से ज्यादा लोगों की सभा को संबोधित किया, यही
अपने आप में बड़ी बात है। उनका यह भाषण एतिहासिक और अत्यंत प्रभावशाली था। हमारे नेता
लोग तो डर के मारे कश्मीर जाना ही पसंद नहीं करते लेकिन इस साल कश्मीर में यात्रियों की संख्या
22 लाख रही जबकि पिछले कुछ वर्षों में 5-6 लाख से ज्यादा लोग वहां नहीं जाते थे। बारामूला की
जनसभा और यात्रियों की बढ़ी हुई संख्या ही इस बात के प्रमाण हैं कि कश्मीर के हालात अब बेहतर
हुए हैं, खासतौर से 2019 में धारा 370 के हटने के बाद से! लगभग सभी कश्मीरी नेताओं ने धारा
370 हटाने का बहुत जमकर विरोध किया था लेकिन आजकल उनकी हवा निकली पड़ी है, क्योंकि
कश्मीर के हालात में पहले से बहुत सुधार है। मनोज सिन्हा के उप-राज्यपाल रहते हुए कश्मीर में
अब भ्रष्टाचार करने की किसी की हिम्मत ही नहीं पड़ती।
कश्मीर में बगावत का झंडा उठाने वाले और राज करने वाले स्थानीय नेतागण केंद्र से मिलने वाली
अरबों-खरबों की धनराशि का जितना इस्तेमाल लोक-कल्याण के लिए करते थे, उससे कई गुना
ज्यादा अब होने लगा है। अमित शाह ने कहा है कि पिछले 70 साल में कश्मीर में केंद्र की ओर से
सिर्फ 15000 करोड़ रुपए लगाए गए थे जबकि अब पिछले तीन साल में 56000 करोड़ रुपयों का
विनिवेश हुआ है। कई अस्पताल, विश्वविद्यालय, स्कूल, पंचायत भवन आदि खड़े कर दिए गए हैं।
पहले कश्मीर का लोकतंत्र सिर्फ 87 विधायकों, 6 सांसदों और दो-तीन परिवारों तक ही सीमित था
लेकिन अब 30,000 पंचों और सरपंचों को भी स्थानीय विकास के अधिकार मिल चुके हैं।
आतंकवादियों ने कुछ पंचों की हत्या भी कर दी थी लेकिन पंचायत के चुनावों में जन-उत्साह देखने
लायक था। अमित शाह ने अपने भाषण में कश्मीर के पिछड़ेपन के लिए तीन परिवारों को जिम्मेदार
ठहराया है। गांधी-नेहरू परिवार, अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार!
इन तीनों परिवारों ने कश्मीर पर अपना लगभग एकाधिकार बना रखा था, यह तथ्य है लेकिन हम
यह न भूलें कि इनमें से किसी ने भी कश्मीर को भारत से अलग करने का नारा नहीं दिया है। वरना,
कांग्रेस और भाजपा इनके साथ मिलकर वहां सरकारें क्यों बनातीं? कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से
भी मेरा गहन संपर्क रहा है, उनमें से एकाध अपवाद को छोड़कर कभी किसी ने कश्मीर को
पाकिस्तान में मिलाने की बात नहीं की है। अमित शाह ने सरकार की इस नीति को दो-टूक शब्दों में
दोहराया है कि जब तक आतंकवाद जारी है, पाकिस्तान से भारत बात नहीं करेगा।
मेरी राय यह है कि जब पांडव और कौरव महाभारत युद्ध के दौरान बात करते थे और अब नरेंद्र
मोदी यूक्रेन के सवाल पर पूतिन और जेलेंस्की से बात करने का आग्रह कर रहे हैं तो हम पाकिस्तान
से बात बंद क्यों करें? मैं तो शाहबाज शरीफ और नरेंद्र मोदी दोनों से कहता हूं कि वे बात करें। वे
खुद बात करने के पहले कुछ गैर-सरकारी माध्यमों के जरिए संपर्क करें। जैसे हमने संकटग्रस्त
श्रीलंका और तालिबानी अफगानिस्तान की मदद की, वैसी ही मुसीबत में फंसे पाकिस्तानी लोगों की
मदद के लिए भी हाथ आगे बढ़ाएं।