-रमेश सर्राफ धमोरा-
राजस्थान कांग्रेस में चल रहे राजनीतिक घमासान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकमान के
निशाने पर आ गए हैं। उनके अपने चहेते नेताओं द्वारा करवाई गई फजीहत के चलते गहलोत को
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लिखित में माफी मांगनी पड़ी। इसके साथ ही सोनिया गांधी के
आवास के बाहर आकर मीडिया के समक्ष भी उन्हें बार-बार माफी मांगने की बात दोहरानी पड़ी। ऐसी
स्थिति का सामना मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपने पचास साल के राजनीतिक कैरियर में शायद
ही कभी करना पड़ा हो।
कुछ समय पहले तक तो मुख्यमंत्री गहलोत कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहे थे। उनके
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर कांग्रेस आलाकमान में सर्वसम्मति बन चुकी थी। वहीं एकाएक घटनाचक्र
इतनी तेजी से घूमा कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तो दूर अब तो उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी
भी खतरे में नजर आने लगी है। गहलोत समर्थकों ने राजस्थान में जो खेल किया उससे कांग्रेस
आलाकमान ही नहीं अन्य लोग भी हक्के-बक्के रह गए। किसी को भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से
सत्ता के लिए ऐसा खेल करने की अपेक्षा नहीं थी।
मुख्यमंत्री गहलोत पिछले दो साल से लगातार कहते थे कि मेरा इस्तीफा हमेशा मेरी जेब में पड़ा
रहता है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जब भी कहेंगी तुरंत उनको सौंप दूंगा। मगर कांग्रेस अध्यक्ष
के कहने से पहले ही गहलोत ने ऐसा राजनीतिक ड्रामा कर दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
की भी एकबार तो बोलती ही बंद हो गई थी।
जब गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा रहा था तो उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री के
पद का भी साथ ही निर्वहन कर लूंगा। मगर वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने गहलोत को
उदयपुर में संपन्न हुए चिंतन शिविर में लिए गए एक व्यक्ति एक पद के प्रस्ताव का स्मरण कराते
हुए उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ने की बात याद दिला दी। मुख्यमंत्री पद छोड़ने की बात आने पर गहलोत
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने में आनाकानी करने लगे। मगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उन्हें अपना सबसे
विश्वस्त मानकर अध्यक्ष बनाना चाहती थीं। ऐसे में गहलोत के समक्ष अध्यक्ष बनने के लिए
स्वीकृति देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। अनमने ही सही अंततः उन्होंने अध्यक्ष बनने के
लिए हां कर दी थी।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का मानना था कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन फार्म भरने
से पहले गहलोत मुख्यमंत्री पद छोड़ कर एक व्यक्ति एक पद के नियम का पालन कर पार्टी जन के
समक्ष नायाब उदाहरण प्रस्तुत करें। इस बाबत सोनिया गांधी की गहलोत से बात भी हो गई थी।
गहलोत की सहमति से ही उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता मल्लिकार्जुन खड़गे व राजस्थान के
प्रभारी महासचिव अजय माकन को पर्यवेक्षक बनाकर जयपुर भेजा था। ताकि वो सभी विधायकों से
व्यक्तिगत रायशुमारी कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर फैसला छोड़ने का एक लाइन का प्रस्ताव
पास करवायें।
इस बाबत मुख्यमंत्री आवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक का भी आयोजन किया गया था।
जिस दिन कांग्रेस पर्यवेक्षकों को जयपुर आना था उसी दिन सुबह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने
साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को लेकर जैसलमेर स्थित तनोट माता के मंदिर में
दर्शन करने के लिए रवाना हो गए और वहां से शाम को वापस लौटे। दोपहर को जब दिल्ली से
कांग्रेस के दोनों पर्यवेक्षक खड़गे व माकन जयपुर हवाई अड्डे पर उतरे तो उनके स्वागत के लिए
कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता उपस्थित नहीं था। यहां तक कि प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा की अनुपस्थिति
में प्रदेश कांग्रेस का कोई वरिष्ठ पदाधिकारी, जिला कांग्रेस अध्यक्ष, राजस्थान सरकार का कोई भी
मंत्री, विधायक, जयपुर का मेयर, जिला प्रमुख, प्रधान, पार्षद तक हवाई अड्डे पर उपस्थित नहीं था।
उसी दिन शाम सात बजे मुख्यमंत्री आवास पर कांग्रेस विधायक दल के 108 सदस्य व पार्टी को
बाहर से समर्थन दे रहे तेरह निर्दलीय विधायकों को विधायक दल की मीटिंग में आमंत्रित किया गया
था। मगर उसी दौरान एक खेला हो गया। संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री व मुख्य
सचेतक महेश जोशी व राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौड़ ने मिलकर एक चाल
चली व सभी विधायकों को फोन कर मुख्यमंत्री आवास के बजाय शांति धारीवाल के आवास पर बुला
लिया। संसदीय कार्य मंत्री धारीवाल, मुख्य सचेतक महेश जोशी द्वारा फोन करने के कारण 25
मंत्रियों सहित 70-80 विधायक धारीवाल के आवास पर पहुंच गए। जहां धारीवाल, जोशी व राठौड़ ने
सभी विधायकों को मुख्यमंत्री आवास पर बुलाई गई विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने को
तैयार कर लिया।
अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने के विरोध में धारीवाल के आवास पर उपस्थित सभी
विधायकों के विधायक पद से इस्तीफों पर हस्ताक्षर करवा कर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के
आवास पर जाकर उनको सौंप दिए गए। मुख्यमंत्री आवास पर दोनों पर्यवेक्षक, मुख्यमंत्री गहलोत,
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा, पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट सहित करीब तीन दर्जन विधायकों
के साथ अन्य विधायकों के मीटिंग में आने का इंतजार करते रहे मगर कोई भी विधायक वहां नहीं
आया। देर रात्रि को पर्यवेक्षक भी होटल लौट गए। देर रात्रि में मंत्री शान्ति धारीवाल, महेश जोशी,
प्रताप सिंह खाचरियावास विधायकों के प्रतिनिधि बनकर पर्यवेक्षकों से मिले व कहा कि हम सचिन
पायलट व उनके गुट के विधायकों के अलावा किसी को भी मुख्यमंत्री बनाना स्वीकार कर सकते हैं।
इस पर पर्यवेक्षकों ने उनसे कहा कि हम सभी विधायकों से वन टू वन मिलकर उनकी राय जान लेते
हैं। फिर प्रस्ताव पास कराकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को दे देंगे। मगर धारीवाल जोशी व
खाचरियावास ने विधायकों से व्यक्तिगत ना मिलकर ग्रुप में मिलने के लिए दबाव डाला। जिस पर
पर्यवेक्षकों ने असहमति व्यक्त कर दी। और बिना विधायकों से मिले ही दिल्ली चले गए। दिल्ली
जाकर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पूरे घटनाक्रम की विस्तृत लिखित रिपोर्ट दे दी।
जब पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट सोनिया गांधी को मिली तो उन्होंने जयपुर में हुए घटनाक्रम पर बहुत
नाराजगी व्यक्त की। मीडिया में लगातार खबरें आने से पूरे देश में कांग्रेस की किरकिरी हो रही थी।
स्थिति बिगड़ती देख मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी घबरा गए और उन्होंने दिल्ली में अपने समर्थक
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से संपर्क कर मदद मांगी। घटना के दो दिन बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष
सोनिया गांधी से मिलकर अपनी सफाई दी। इसी दौरान कांग्रेस अनुशासन समिति द्वारा शान्ति
धारीवाल, महेश जोशी, धर्मेंद्र राठौड़ को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।
इसी दौरान राजस्थान में कांग्रेस के नेताओं द्वारा एक दूसरे पर हल्के स्तर की भाषा में बयानबाजी
की जाने लगी थी। जिसको रोकने के लिए कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को सोनिया
गांधी के निर्देश पर बयानबाजी करने वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का एक आदेश
निकालना पड़ा। जिसके बाद कांग्रेस नेताओं द्वारा मीडिया में की जा रही आपसी बयानबाजी पर रोक
लग पायी।
चर्चा है कि अब एक बार फिर नए सिरे से केंद्रीय पर्यवेक्षक जयपुर आकर सभी विधायकों से वन टू
वन बातचीत करेंगे। फिर एक लाइन का प्रस्ताव पास करवा कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर
फैसला छोड़ा जायेगा। उसके बाद सोनिया गांधी इस बात का फैसला करेगी कि राजस्थान में गहलोत
ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे या उनके स्थान पर किसी अन्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। तब तक
राजस्थान में राजनीतिक सस्पेंस बरकरार रहेगा।