-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर के पीर पंजाल क्षेत्र में रहने वाले पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा
देने का निर्णय किया है। पीर पंजाल वस्तुत: जम्मू संभाग और कश्मीर घाटी को विभाजित करता है।
कश्मीर घाटी मोटे तौर पर मैदानी इलाक़ा है और पीर पंजाल दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र है जहां की जि़ंदगी
वस्तुत: बहुत ही कठिन है। विकास की दृष्टि से अभी तक की सरकारों ने इस इलाके की ओर किंचित
भी ध्यान नहीं दिया। पीर पंजाल में ज़्यादातर राजौरी और पुंछ क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र में रहने वाले
अधिकांश लोग गुज्जर-बकरवाल या फिर पहाड़ी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। दोनों के जीवन यापन
का तौर तरीक़ा लगभग एक जैसा ही है। पशुपालन इनका व्यवसाय है। शिक्षा का अभाव है। गुज्जर-
बकरवाल और पहाड़ी समुदाय दोनों ही लम्बे अरसे से मांग कर रहे थे कि इनको एसटी यानी
जनजाति का दर्जा दिया जाए। अंग्रेज़ी भाषा में कहा जाए तो इनकी मांग थी कि इन्हें ट्राइबल माना
जाए। ट्राइबल मान लिए जाने के बाद इन समुदाय के लोगों को सरकारी नौकरियों में देश के अन्य
हिस्सों की तरह आरक्षण का लाभ मिल सकता था। जम्मू कश्मीर में कश्मीरियों और डोगरों के बाद
जनसंख्या के लिहाज़ से गुज्जर-बकरवाल व पहाड़ी समुदाय का ही नाम आता है। ये समुदाय केवल
पीर पंजाल में ही नहीं, बल्कि कश्मीर घाटी के अनंतनाग व बारामूला जिला में भी काफी संख्या में
निवास करते हैं। लेकिन जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के कारण अभी तक वहां की राजनीति में
गुपकार रोड के दो-तीन परिवारों का ही कब्जा था। इनमें से मुफ़्ती परिवार एटीएम यानी विदेशी मूल
के समुदाय से ताल्लुक रखता है और फारूक अब्दुल्ला का परिवार डीएम यानी देसी मुसलमान
कश्मीरियों से ताल्लुक रखता है। लेकिन अपने राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए बीच बीच में ये
परिवार गुपकार यूनियन भी बना लेते हैं।
ये जानते थे कि यदि गुज्जर बकरवाल व पहाड़ी समुदाय को उनके उचित अधिकार दे दिए गए तो
इनकी कश्मीर केन्द्रित राजनीति में भूकम्प आ जाएगा। गुपकार यह भी जानता था कि यदि अनुच्छेद
370 निरस्त हो गया तो जम्मू कश्मीर में सचमुच लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा और डोगरों,
विस्थापितों, गुज्जर-बकरवालों व पहाड़ी समुदाय के लोगों को भी उनके उचित सांविधानिक अधिकार
मिलने शुरू हो जाएंगे। इसलिए गुपकार गैंग ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि यदि अनुच्छेद 370
निरस्त किया गया तो राज्य में ख़ून की नदियां बह जाएंगी। एटीएम (अरब-तुर्क-मुगल) मूल के मुफ़्ती
मौलवियों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि राज्य में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं होगा।
लेकिन डोगरों, विस्थापितों, डीएम यानी देसी मुसलमान कश्मीरियों, गुज्जर-बकरवालों व पहाड़ी
समुदाय को पता था कि गुपकार गैंग से उनकी मुक्ति का रास्ता अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद
ही खुलेगा। यही कारण था कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने पर ख़ून की नदियां तो नहीं बहीं
बल्कि पीर पंजाल की पहाडिय़ों पर तिरंगा और भी शान से फहराने लगा। स्थानीय निकायों के चुनाव
हुए तो गुपकार गैंग पगले विरोध में चिल्लाता रहा लेकिन जब उसे लगा कि राज्य में सत्ता का केन्द्र
गुपकार न रह कर, राज्य के गांवों में शिफ्ट हो जाएगा तो उसने झख मार कर चुनावों का समर्थन
किया। सरकार ने विधानसभा क्षेत्रों के सीमांकन में पीर पंजाल की विधानसभा सीटों में इजाफा कर
दिया। गुपकार को सांप सूंघ गया। गुज्जर-बकरवाल को आरक्षण का लाभ दिया गया। विधानसभा में
एसटी के लिए सीटें देश के अन्य राज्यों की तरह आरक्षित कर दी गईं।
गुपकार रोड पर सन्नाटा छा गया। लेकिन अभी एक मुद्दा बचा हुआ था। पीर पंजाल के पहाड़ी
समुदाय के लोग भी एसटी दर्जे की मांग कर रहे थे। उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति भी लगभग
गुज्जर-बकरवाल जैसी ही है। गुपकार को मानो एक मौक़ा मिल गया। उसने गुज्जरों व पहाडिय़ों को
एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास किया। एटीएम की महबूबा मुफ़्ती अपने असली रंग में आ
गई। उसका कहना था कि पहाडिय़ों को एसटी का दर्जा देने से गुज्जर उठ खड़े होंगे। पीर पंजाल वर्षों
से शांत रहा है, अब वह अशांत हो जाएगा। महबूबा जानती हैं कि पीर पंजाल शांत कभी नहीं रहा।
वह तो अपने खिलाफ हो रहे अन्याय से लड़ते हुए दशकों से अशांत है, लेकिन अनुच्छेद 370 के
कारण उनकी चीख़ें दब जाती थीं। एटीएम उनको इस्लाम की घुट्टी पिला पिला कर चुप कराने का
प्रयास करता था। लेकिन उससे पेट की आग तो नहीं बुझती। उसके न्यायोचित अवसर तो नहीं
मिलते। माल मत्ता मुफ़्ती ले जाएं और जूठी पत्तलें पीर पंजाल संभालता रहे, यह तो सम्भव नहीं था।
पहाडिय़ों को आरक्षण न देने के लिए एटीएम के तर्क भी अरबी बुद्धिमत्ता वाले ही हैं। उनका कहना
है कि गुज्जर-बकरवालों को तो आरक्षण व एसटी का दर्जा इसलिए दिया गया है क्योंकि सामाजिक
तानेबाने में वे निचली जातियों में आते हैं और पहाड़ी तो ऊंची जाति के हैं। विदेश से आकर कश्मीर
में रहने वाले सैयदों को यही धोखा है। गुज्जर राजवंशों के क्षत्रिय लोग हैं। भारत पर आक्रमण करने
वाले अरबों, तुर्कों व मुग़लों से यही दो-दो हाथ करते थे। यह तो दुर्भाग्य था कि देश हार गया और
विदेशी आक्रमणकारियों से टक्कर लेने वाले गुज्जरों को नए शासकों ने सामाजिक ताने बाने में नीचे
धकेल दिया।
पीर पंजाल में रहने वाले अधिकांश पहाड़ी भी राजपूत समुदाय के क्षत्रिय लोग हैं। एटीएम को इस देश
की सामाजिक संरचना को समझने के लिए और दिमाग खपाना होगा। महबूबा मुफ़्ती और उनकी
सोच के लोग नहीं चाहते कि सत्ता ताश के पत्तों की तरह उनके हाथों से निकल कर गुज्जरों,
बकरवालों, पहाडिय़ों, डोगरों, हांजियों, कश्मीरियों, दरदों, बलतियों, पिछड़ों और दलितों के हाथ में
चली जाए। इसलिए वे पहाडिय़ों को एसटी का दर्जा दिए जाने का विरोध करते हैं। एटीएम का दूसरा
तर्क और भी मज़ेदार है। उनका कहना है कि पहाडिय़ों में हिंदू, सिख और मतांतरित मुसलमान सभी
शामिल हैं। इसलिए उनको एसटी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? यह सचमुच हास्यास्पद तर्क है।
इसका अर्थ हुआ कि यदि ये सारे मतांतरित होकर मुसलमान हो जाएं तब तो एसटी का दर्जा देने में
कोई एतराज़ नहीं है। एतराज़ तभी तक है जब तक पहाड़ी हिंदू और सिख अभी तक बचे हुए हैं।
दरअसल गुपकार रोड के एटीएम को असली ख़तरा दूसरा है। आज तो पहाडिय़ों को एसटी का दर्जा
मिला है। कल कश्मीर घाटी में ही डीएम यानी देसी मुसलमानों में से अनेक समुदाय के लोग ओबीसी
का दर्जा पाने के लिए संघर्ष करना शुरू कर देंगे। देसी कश्मीरी मुसलमानों में से अधिकांश कश्मीरी
उन समुदायों में से हैं जिनको देश के अन्य भागों में ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है और उसके
कारण उन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिला हुआ है। कश्मीर घाटी के हांजियों का ही उदाहरण
लिया जा सकता है। वे डल झील में शिकारे चलाते हैं। कहा जाता है कि वे निषाद जाति के लोग हैं।
बिहार व उत्तर प्रदेश में निषाद समुदाय को ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है। ऐसे ही कश्मीर में अनेक
समुदाय ओबीसी कैटेगरी में आते हैं। लेकिन आज तक धारा 370 के कारण एटीएम के अशरफों ने
उनका जम कर शोषण किया है। अब उन सभी में चेतना आ गई है। यदि पीर पंजाल के पहाड़ी व
गुज्जर एसटी का दर्जा पा सकते हैं तो डीएम यानी देसी मुसलमानों के ओबीसी क्यों नहीं? यही डर
गुपकार रोड को खा रहा है। यदि ये परिवर्तन हो गए तो एटीएम के बच्चे क्या कश्मीरियों की पत्तलें
साफ करेंगे? महबूबा मुफ़्ती को भविष्य की चिंता खा रही है। इसलिए वह एक बार फिर इस्लाम का
नाम लेकर गुज्जरों और पहाडिय़ों को अपने खेमे में खींचना चाहती हैं। लेकिन लगता है इस बार
गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी, दोनों ही गुपकार गैंग के षड्यंत्र को समझ गए हैं।