-आर.के. सिन्हा-
यह सिर्फ अपने भारत में ही संभव है कि मुंबई बम धमाकों के साजिशकर्ता याकूब मेमन को नायक बनाने की चेष्टा की जाती है। उसे सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा होती है, तो उसे बचाने के लिए देश के बहुत सारे स्वयंभू उदारवादी-सेक्युलरवादी रातों-रात सामने आ जाते हैं। उसकी शव यात्रा में हजारों लोग शामिल भी होते हैं। फिर उसे फांसी हो जाती है। तब उसकी कब्र को सजाया जाता है। उसका इस तरह से रखरखाव होता है कि मानो वह कोई महापुरुष हो। मुंबई में याकूब मेमन की कब्र के ‘सौंदर्यकरण’ करने के ठोस सुबूत मिल रहे हैं और उसे एक इबादत गाह में बदलने की कोशिश की जा रही थी। जब इस तरह के आरोपों की सच्चाई सामने आई तो मुंबई पुलिस ने आतंकवादी की कब्र के चारों ओर लगाई गई ‘एलईडी लाइट’ को हटाया। याकूब मेमन को 2015 में नागपुर जेल में फांसी दी गई थी। उसे दक्षिण मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान में दफनाया गया था। यह पता लगाया जाना चाहिए कि कैसे एक आतंकवादी की कब्र पर ‘एलईडी लाइट’ लगा दी गई और संगमरमर की ‘टाइलें’ लगाकर उसे संवारा गया। मेमन की करतूत के कारण ही मुंबई में सैकड़ों लोग मारे गए थे और अरबों की संपत्ति नष्ट हुई थी। कहने वाले कह रहे हैं कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार के दौर में याकूब मेमन की कब्र का ‘सौंदर्यकरण’ करने की कोशिश हुई थी। पुलिस भी मान रही है कि शब-ए-बारात के मौके पर बड़ा कब्रिस्तान में ‘हैलोजन लाइट’ लगाई गई थी। याकूब मेमन की कब्र के आसपास संगमरमर की ‘टाइल’ करीब तीन साल पहले ही लगाई गई थी।
अब मुंबई धमाकों के गुनहगार याकूब मेमन की मुंबई में निकली शव यात्रा को भी जरा याद कर लेते हैं। मुंबई में वर्ष 1993 में हुए सीरियल बम विस्फोट के मामले में दोषी याकूब मेमन को नागपुर केंद्रीय कारागार में फांसी दी गई थी। इसके बाद उसकी मुंबई में शव यात्री निकली। उसमें भी हजारों लोग शामिल हुए। सवाल यह है कि क्या कानून की नजरों में गुनहगार साबित हो चुके मेमन को लेकर समाज के एक वर्ग द्वारा इस तरह का सम्मान और प्रेम का भाव दिखाना क्या किसी भी तरह से जायज है? मामला गंभीर है और देश इस सवाल का उत्तर उन सभी से चाहता है,जो याकूब मेमन को हीरो के रूप में पेश करने में जरा सी भी शर्मिंदगी महसूस नहीं करते।
अब जरूरी यह है कि किसी भी आतंकवादी का अंतिम संस्कार सार्वजनिक तौर पर होना तत्काल बंद हो। याकूब मेमन से लेकर बुरहान वानी जैसे खून के प्यासों की शव यात्राओं में शामिल होकर मुस्लिम समुदाय का एक गुमराह वर्ग सारे देश को बेहद खराब संदेश देते हैं। जाहिर है, इन परिस्थितियों में फिर अगर कोई इस्लाम और आतंकवाद को एक साथ जोड़कर देखे तो इसमें गलत क्या है? वक्त की मांग है कि देश अमन पसंद शिया और बरेलवी मुस्लिमों को आगे बढ़ाए। ये स्वभावतः देशभक्त होते हैं और आतंकवाद की खिलाफत करते हैं। यह भी याद रखना जरूरी है कि याकूब मेमन की फांसी टालने को लेकर अभिनेता सलमान खान तक ने भी ट्वीट किया था। तब देश की बहुत सी हस्तियों ने राष्ट्रपति प्रणब कुमार मुखर्जी को पत्र लिखकर भी याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाने की मांग की थी। इन्होंने अपने पत्र को ही याकूब दया याचिका के रूप में स्वीकार करने का आग्रह करते हुए कहा था कि याकूब मेमन पिछले 20 वर्षों से सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है और इस आधार पर वह फांसी के लिए शारीरिक रूप से अनफिट है। पत्र लिखने वाले कथित सेक्युलवादियों में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, बृंदा करात, शत्रुघ्न सिन्हा, मणिशंकर अय्यर, वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी, प्रशांत भूषण, वरिष्ठ पत्रकार एन. राम, आनंद पटवर्धन, महेश भट्ट, नसीरुद्दीन शाह, मजीद मेमन, डी राजा, केटीएस तुलसी, एचके दुआ, टी सिवा, दीपांकर भट्टाचार्य, एमके रैना, तुषार गांधी, जस्टिस पानाचंद जैन, जस्टिस पीबी सावंत, जस्टिस एचएस बेदी, जस्टिस एच सुरेश, जस्टिस केपी सिवा सुब्रह्मण्यम, जस्टिस एसएन भार्गव, जस्टिस के चंद्रू, जस्टिस नागमोहन दास, वकील इंदिरा जयसिंह, इरफान हबीब, अर्जुन देव, डीएन झा, अरुणा रॉय और जॉन दयाल आदि थे। इनमें से अब भी अधिकतर सक्रिय हैं। इनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या याकूब मेमन की कब्र को सौंदर्यकरण करना सही है?
बहरहाल, प्रणव कुमार मुखर्जी ने कथित उदारवादियों की एक नहीं सुनी और याकूब मेमन की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। उन्होंने अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान हत्यारों, आतंकियों और देशद्रोहियों को लेकर किसी तरह का नरम रुख नहीं अपनाया। उन्होंने फांसी की सजा पाए सर्वाधिक गुनहगारों की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने की याचिकाओं को खारिज किया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा पाए 37 अपराधियों की याचिकाओं को अस्वीकार करके एक तरह से संदेश दिया कि वे समाज और राष्ट्रविरोधी तत्वों को लेकर कठोर बने रहेंगे। उन्होंने ही मुंबई हमलों के गुनहगार अजमल कसाब को फांसी के तख्ते पर चढ़वाने का रास्ता साफ किया। उन्होंने संसद हमले के मास्टमाइंड अफजल गुरु को माफ किया। वे जानते थे कि इन तीनों की सजा को कम करने का बेहद खराब संदेश जाएगा। अपराधी तत्व एक तरह से मानने लगेंगे कि इस देश में संसद पर हमला करने से लेकर मासूमों का कत्ल करने पर बचा जा सकता है।
याकूब मेमन और अफजल गुरु को फांसी के तख्ते से बचाने के लिए देश की मानवाधिकार बिरादरी ने दिन-रात एक कर दी थी। इन सबकी फांसी से पहले और बाद में मौत की सजा को खत्म करने के सवाल पर बहस हुई। इन सबकी परवाह किए बगैर प्रणव कुमार मुखर्जी ने मानवता के शत्रुओं को फांसी पर लटकाने में अपने दायित्व का निर्वाह किया। खैर, अब राज्य सरकार को उन शातिर तत्वों को कसना होगा जो एक आतंकी को महान बनाने की कोशिश कर रहे थे।