दुविधा में ममता

asiakhabar.com | August 5, 2022 | 4:52 pm IST
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-सिद्धार्थ शंकर-
पश्चिम बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी के बाद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का नेतृत्व बुरी तरह घिर गया है।
इसके पहले भी तृणमूल के कुछ नेता जेल गए हैं, विभिन्न घोटालों में उनके नाम सामने आए, लेकिन पिछले दस
साल में ममता बनर्जी के सामने शायद ही इस बार जैसा संकट सामने आया। इस बार सुर्खियों में न सिर्फ एक
वरिष्ठ मंत्री हैं, बल्कि एक अभिनेत्री के साथ उनके रिश्ते को लेकर भी चर्चा गरम है। इस प्रकरण ने पार्टी के अंदर
खलबली मचा दी है। आम जनता में इसका नकारात्मक संदेश गया है, खासकर 50 करोड़ रुपए से अधिक की
बरामदगी ने लोगों को सोचने पर मजबूर किया है। ऐसे में, पार्थ चटर्जी को पार्टी से बाहर करना ममता बनर्जी के
लिए मजबूरी बन गया था। मगर इस काम में उन्होंने जितना समय लिया, वह उनकी दुविधा को बता रहा है।
ममता की दुविधा का सबसे बड़ा कारण यह है कि पार्थ कोई आम राजनेता नहीं हैं। वह सरकार में नंबर दो की
हैसियत रखते थे और तीन-तीन अहम मंत्रालय उनके जिम्मे था। तृणमूल के संस्थापक सदस्यों में भी वह एक हैं।
वह पार्टी की अनुशासनात्मक कमेटी के भी अध्यक्ष रहे हैं। ऐसे वरिष्ठ और महत्वपूर्ण नेता को पार्टी से निकालने
का क्या असर होगा, इस पर संभवत: दीदी ने लंबा मंथन किया होगा। पार्टी महिला अभिनेत्री के घर से पैसे मिलने
और पार्थ चटर्जी से जुड़े मामले को अलग-अलग चश्मे से देख रही है। उसके मुताबिक, पार्थ तो पार्टी सदस्य हैं,
लेकिन वह अभिनेत्री नहीं। उसने यह बात स्वीकार भी की है। मगर प्रवर्तन निदेशालय के सामने उसने कथित रूप
से यह भी माना है कि वह पार्थ के पैसे रखती थी। इसका मतलब है कि पार्थ उसके निशाने पर हैं। तृणमूल की
सोच यह है कि संभव है, पार्थ को ‘हनी ट्रैप करके फंसाया गया हो। ऐसा अब पार्थ भी कहने लगे हैं। बहरहाल, अब
ममता बनर्जी आगे की रणनीति पर विचार कर रही हैं। चूंकि अभी लोकसभा चुनावों में डेढ़ साल और विधानसभा
चुनाव में चार वर्ष की देरी है, इसलिए संभव है कि ममता ईडी कार्रवाई के बहाने साफ-सफाई कर अपनी पार्टी की
छवि सुधार लें। लेकिन भाजपा की रणनीति क्या है? पूर्वोत्तर में तो पार्टी ने सरकार बना ली है, लेकिन पश्चिम
बंगाल में उसका यह सपना पूरा नहीं हो सका है। इसकी वजह यह है कि मोदी-शाह जैसे लोकप्रिय स्थानीय नेता
राज्य में नहीं हैं। ऐसे में, ममता बनर्जी के खिलाफ नकारात्मक राजनीति ही भाजपा की खुराक है, जिसकी उसे
हरदम तलाश रहेगी। हालांकि,भाजपा की राह आसान नहीं है। ममता ने जनहित के काफी काम किए हैं और जनता
से उनका जुड़ाव अब भी कायम है। चूंकि ममता पर अब तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, इसलिए उनके लिए
इस मामले से बाहर आना बहुत मुश्किल नहीं होगा। जाहिर है, शह और मात का यह खेल आसान नहीं है। मगर
भाजपा भी 2021 की हार से सबक लेकर नई रणनीति के साथ मैदान में डटी है।


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