‘तिरंगा’ भारत का राष्ट्रीय ध्वज है। देश में विभिन्न विचारधाराओं, मानस, लोक-संस्कृति, भाषा, वेशभूषा, नस्ल और
लिंग के मत-संप्रदायों ने ‘तिरंगा’ को मान्यता दी है। सभी की आन, बान, शान, पहचान और गर्व का प्रतीक ‘तिरंगा’
है। ‘तिरंगा’ हमारी स्वतंत्रता, लोकतंत्र, एकता, अखंडता और संप्रभुता की अभिव्यक्ति है। ‘तिरंगा’ भारतीय होने की
एक सत्यापित पहचान है। सुदूर सरहदों और ऊंची-बर्फीली चोटियों पर तैनात हमारे जांबाज सैनिक ‘तिरंगे’ के जरिए
ही ‘भारत मां’ को प्रणाम करते हैं और ‘तिरंगे’ से ही हौसला, प्रेरणा पाकर दुश्मन पर टूट पड़ते हैं। इन दिनों ब्रिटेन
के बर्मिंघम में राष्ट्रमंडल खेल मुकाबले चल रहे हैं। जैसे ही कोई भारतीय खिलाड़ी मैदान में जीत हासिल करता है,
तो वह खुद को ‘तिरंगे’ में लपेट लेता है। गौरवान्वित महसूस करता है। मां के आगोश की अनुभूति होती है। पदक
के मंच पर खड़े होकर ‘तिरंगे’ की छवि और गति को निहारते हुए खिलाड़ी भावुक भी हुए हैं। खिलाड़ी ‘तिरंगे’ को ही
सलाम करते हैं। यह गौरव और गरिमा है ‘तिरंगे’ की।
तीन रंगों में समूचा भारत बसा है। यह सिर्फ कपड़े का टुकड़ा अथवा रंगों का संयोजन ही नहीं है। ‘तिरंगा’ ही
उल्लास, उत्साह है, तो यह ध्वज शोक की भी अभिव्यक्ति है। संविधान सभा में मौजूद हमारे पुरखों ने ‘तिरंगे’ को
राष्ट्रीयता की मान्यता दी, तो संविधान में भी इससे जुड़े प्रावधान किए गए हैं। ‘तिरंगा’ भाजपाई, कांग्रेसी, वामपंथी
या किसी अन्य राजनीतिक सोच का झंडा नहीं है, उनके अपने झंडे भी हैं, लेकिन ‘तिरंगा’ सभी भारतीयों का है,
भारत का है, समग्र है, अपना-अपना नहीं माना जा सकता या कहा जा सकता है। ‘तिरंगा’ विभाज्य नहीं है। ‘तिरंगा’
राष्ट्रीय है, यह कांग्रेस को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।
यह दौर ‘अमृत महोत्सव’ मनाने और उन क्रांतिवीरों को याद करने-कराने का है, जिनके बलिदानों की बदौलत आज
‘तिरंगा’ है और भारत अपनी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे कर चुका है। हम महोत्सव के मूड में हैं, जश्न मना रहे हैं,
इतिहास को जीने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और सरकार के अन्य चेहरों ने बार-बार अपील की है कि
13-15 अगस्त को देश के नागरिक ‘घर-घर तिरंगा’ फहराएं। यह आज़ादी अनमोल है। हमने ब्रिटिश साम्राज्य का
सिंहासन उखाड़ फेंका था और हम एक स्वाधीन गणतंत्र बने। देश में सामंत, राजा-महाराजा और रजवाड़े भी नहीं हैं।
भारत के तमाम नागरिक समान हैं, उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकार समान हैं। कोई भी नागरिक देश के
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सरीखे सर्वोच्च संवैधानिक पदों तक पहुंच सकता है। यदि ऐसे में भारत सरकार के संस्कृति
मंत्रालय ने ‘तिरंगा यात्रा’ का आयोजन किया और देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उसका शुभारंभ किया, तो
कांग्रेस या अन्य विपक्षी चेहरे शामिल क्यों नहीं हुए? राजनीतिक एजेंडा अलग-अलग हो सकता है। चूंकि भाजपा को
जनादेश हासिल है और आज वही भारत सरकार है, तो ‘तिरंगे’ को लेकर उसके विरोध के मायने क्या हैं? लोकसभा
में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि कांग्रेस अपनी ‘तिरंगा यात्रा’ निकालेगी। कोई
आपत्ति नहीं है। अपना आयोजन भी कीजिए, लेकिन सरकार की ‘तिरंगा यात्रा’ को किसी और की यात्रा करार न दें।
वह भी ‘भारतीय तिरंगे की यात्रा’ ही थी। राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा अपने सोशल मीडिया अकाउंट में डीपी की
जगह प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का ‘तिरंगे’ के साथ चित्र लगाएं, तो यह भी राष्ट्रीय है। आज ‘अमृत
महोत्सव’ के मौके पर कुछ पुरानी घटनाओं, वक्तव्यों और विश्लेषणों को भी भूल कर नेपथ्य में डाल देना चाहिए।
आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गुरू गोलवलकर ने ‘तिरंगे’ को लेकर क्या लिखा था, संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजऱ’
में क्या टिप्पणी छपी थी, प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल ने संघ पर पाबंदी हटाने की शर्त क्या रखी थी, संघ
मुख्यालय अथवा भाजपा के कार्यालयों पर दशकों तक ‘तिरंगा’ क्यों नहीं फहराया गया, आज इन पर बहस या
सवाल अथवा आलोचना नहीं होनी चाहिए। हकीकत यह है कि संघ का एक पुराना प्रचारक आज देश का प्रधानमंत्री
है। वह सार्वजनिक तौर पर ‘तिरंगे’ को सलाम करते हैं और स्वतंत्रता दिवस को लालकिले पर फहराते भी हैं। आज
‘तिरंगा’ संघ के सभी संगठनों का भी है।