-संजय शर्मा-
विपक्ष की बात आते ही मन में विरोध की स्वर आमजन के जहन में सीधे तौर पर घूमने लगते है। लेकिन अब
आधुनिकता की दौड़ में विपक्ष भी काफी आगे बढ़ गया है… या यूं कहे की विपक्ष मॉड्रन हो गया है। अघोषित रूप
से विपक्ष कई मामलों में वक्त के साथ खड़ा दिखाई देता है। इतना ही नही विपक्ष उन सारी मर्यादाओं को पार
करने की क्षमताओं की दहलीज पर खड़ा है जिनसे जनता के सरोकारों और उनके मुद्दों को प्रमुखता से आगे रखने
और उन पर लड़ने की पूरी क्षमताओं के साथ काम किया जा सके। वर्तमान दौर में आम जनता विपक्ष को अपना
हितेषी मानने में कहीं ना कहीं संकोच कर रहा है।
विपक्ष का मतलब अब विपक्षी दलों तक सीमित नहीं है। वह कई बार सत्तापक्ष के साथ खड़ा दिखाई देता है। यह
बात अलग है कि जनता विपक्ष के इस खेल को देख समझ पाने में असहज है। यह तय करना बेहद मुश्किल है कि
विपक्ष आखिर है कौन? सत्ता पक्ष या विरोधी खेमे में बैठे लोग। दरअसल कई मामलों में विपक्ष की भूमिका निभाने
वाले दल सत्ता पक्ष के साथ अघोषित रूप से खड़े दिखाई देते हैं। यह अलग बात है कि विपक्ष की भूमिका का
दिखावा करने वाले जनता के सामने अपनी बात को साबित करने के लिए आम जनमानस को लगातार गुमराह
करते रहते हैं। लेकिन देश जनता उनके छलावे में हमेशा आ जाती है। यही सत्य राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी
देखने को मिला।
कहने को तो विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को संयुक्त प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया लेकिन उनको मिले मतों की
संख्या के आकलन से अंदाजा लगा पाना मुश्किल नहीं है कि विपक्ष आखिर किसके साथ खड़ा है। आजकल बहुत
सारे राजनैतिक दल केवल विपक्ष में होने की मात्र औपचारिकता भर ही निभा रहे हैं। जब कभी सर्वोच्च स्थानों पर
निर्वाचन की बात आती है तो विपक्ष के अधिकांश लोग सत्ता पक्ष के साथ ही खड़े दिखाई देते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में
अगर वोटों के प्रतिशत की बात की जाए तो द्रौपदी मुर्मू को 64 फीसदी वोट मिले जबकि यशवंत सिन्हा मात्र 36
फीसदी वोटों पर सिमट कर रह गए। कुल हुए मतदान 4754 वोटों में से गिनती के समय 4701 वोट वैध और 53
वोट अमान्य पाये गए।
कुल वैल्यू की बात करें तो 528491 वोट रही। इसमें से द्रौपदी मुर्मू को कुल 2824 वोट मिले थे। द्रौपदी मुर्मू को
मिले वोटों की कुल वैल्यू 676803 थी। वहीं यशवंत सिन्हा को 1877 वोट मिले जिनकी कुल वैल्यू 380177 रही।
इस अंतर से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष ने अपनी भूमिका किस तरह और किसके
पक्ष में अदा की। वर्तमान में संसद का सत्र चालू है जिसमें विपक्ष जनता की बातों को जोर-शोर से रखने की बात
कर रहा है। बीते 3 सप्ताह के दौरान संसद के दोनों सदनों में कुल कार्य की अवधि बेहद कम रही। विपक्ष के लोग
आम जनमानस के खानपान की वस्तुओं पर लगाए गए जीएसटी को लेकर खासा विरोध करते दिखाए दे रहे।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों का तर्क है कि उनका विरोध संवैधानिक पदों को लेकर नहीं है। इससे
आमजन को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि विरोध किसका और कितना हो रहा है या फिर जनता से जुड़े मुद्दों बात
करते हुए विरोध के नाम पर उनके साथ छलावा किया जा रहा है। भारतीय संविधान के अनुसार संसद द्वारा बनाए
गए किसी भी कानून की पुष्टि राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति की सहमति के बिना भारतीय संसद द्वारा
पास किया गया कोई भी प्रस्ताव कानून के रूप में अस्तित्व में नहीं लाया जा सकता। मतलब अगर राष्ट्रपति पद
पर विपक्ष का प्रतिनिधि विराजमान हो, तो सत्तापक्ष की मनमानी को रोका जा सकता है। जनता को यह समझा
दिया गया है कि संवैधानिक पद पर विरोध करना उचित नहीं। विपक्षी दलों के रुख से यह साफ हो गया है कि
विराध केवल दिखावा भर है।
सार्वजनिक मंचों पर जनता के सरोकारों और मुद्दों के लिए लड़ाई की बात करना है, दरअसल मुर्ख बनाने जैसा है।
विपक्ष का मुद्दा और एजेंडा कुछ और ही है। सत्ता पक्ष के मनमानी को रोकने का एक मात्र अवसर राष्ट्रपति चुनाव
था जिसमें यदि विपक्ष द्वारा मैदान में उतारे गए प्रत्याशी की जीत होती तो जनता के मुद्दों को बेहतर ढंग से
संरक्षित किया जा सकता था। लेकिन विपक्ष के इस व्यवहार को जनता दो धारी तलवार की तरह मानने को विवश
है। यानि विपक्ष का निशाना जनता कब और कैसे बन जाए और जनता को कितना नुकसान हो जाए यह किसी को
नहीं पता। देश का मतदाता पक्ष और विपक्ष के द्वारा चलाए गए चुनावी अस्त्र और शस्त्र की धार के नफे –
नुकसान का सही आकलन की छमता शायद खो चुका है। राष्ट्रपति चुनाव के निर्णय और वर्तमान संसद सत्र की
कार्यवाही को देख कर यही लगता है। विपक्ष ने अपने अघोषित एजेंडे को कामयाब बनाने के लिए सदन में विरोध
करते हुए कामकाज को बाधित भी किया। लगता है कि विपक्ष से ज्यादा तेज है। संसद की कार्यवाही चल रहा है।
महंगाई पर चर्चा भी हो रही है। लेकिन महंगाई कम होगी इसकी संभावना नहीं है।