पहले ओसामा बिन लादेन और अब उसके उत्तराधिकारी अयमान अल ज़वाहिरी को ढेर कर दिया गया। आतंकवाद
पर यह बहुत बड़ी ख़बर और घटना है। लादेन और ज़वाहिरी 9/11 आतंकी हमले के साजि़शकारों, सूत्रधारों और उसे
अंजाम देने वालों के सरगना थे। अमरीका के न्यूयॉर्क में किए गए उस आतंकी हमले में 2799 मासूम और बेकसूर
लोग मारे गए थे। बहरहाल अमरीका की सैन्य, खुफिया और आक्रमण की रणनीति एक बार फिर सटीक साबित
हुई। ज़वाहिरी अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के शेरपुरा इलाके में था, जहां से राष्ट्रपति महल, प्रधानमंत्री
आवास, कुछ महत्त्वपूर्ण दूतावास बेहद करीब हैं। अमरीका ने रीपर ड्रोन के जरिए मिसाइल का ऐसा हमला किया कि
ज़वाहिरी पलक तक झपका नहीं पाया और निंज़ा मिसाइल के हमले ने उसकी खोपड़ी को चीर डाला। उसे गाजर-
मूली की तरह काट दिया गया। शायद नरसंहार करने वालों की नियति यही होती है! इसी साल की शुरुआत में
ज़वाहिरी और उसके परिवार ने काबुल में शिफ्ट किया था। अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत आने के बाद यह
सुरक्षित ठिकाना समझा गया।
अफगान सरकार में गृहमंत्री हक्कानी पर शक है कि उसी के संगठन हक्कानी नेटवर्क ने आतंकी सरगना के लिए
पनाह तय की और पूरा बंदोबस्त किया था। अमरीका की खुफिया एजेंसी को जब ज़वाहिरी के होने की लीड मिली,
तो तभी से सक्रियता बढ़ाई गई। सभी सूचनाएं पेंटागन को दी जाती रहीं। काबुल में ज़वाहिरी की गतिविधियों पर
निगाहें रखी गईं। जिस बिल्डिंग में वह रहता था, उसकी रेकी की गई। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के स्पष्ट
निर्देश थे कि कोई और हताहत नहीं होना चाहिए। शायद इसीलिए आर9एक्स हेलफायर मिसाइल का इस्तेमाल
किया गया, जिसमें बारूद नगण्य होता है, लेकिन बेहद तेज धार वाले ब्लेड होते हैं। बहरहाल रविवार, 31 जुलाई को
सुबह 6.18 बजे ज़वाहिरी टहलने के लिए बॉलकनी में दिखा और हमला कर दिया गया। कल तक जो खूंखार
आतंकी था, जिस पर अमरीका ने 2.5 करोड़ डॉलर का इनाम घोषित किया था, जो प्रतिबंधित आतंकवादी था,
उसके पल भर में ही टुकड़े हो गए। आतंकवाद का एक और अहं खेल खल्लास कर दिया गया। अमरीकी राष्ट्रपति
ने दो दिन बाद, यानी 2 अगस्त को, अपने देश और दुनिया को पुष्टि की कि अलकायदा के सरगना अल ज़वाहिरी
को मार दिया गया है। अमरीका का प्रतिशोध पूरा हुआ और सभी को न्याय मिला। दूसरे मायनों में अमरीका की
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अब भी जारी है। बहरहाल ज़वाहिरी के खात्मे से कुछ तथ्य और सवाल सामने आए
हैं। कतर की राजधानी दोहा में जो समझौता किया गया था, तालिबानी हुकूमत उसका उल्लंघन कर रही है, क्योंकि
आतंकियों को छिपाने के लिए अफगानिस्तान की सरज़मीं का इस्तेमाल किया जा रहा है।
तालिबान का कट्टरवादी कंधारी धड़ा और हक्कानी, खासकर पाकिस्तान में सक्रिय हक्कानी गुट, दोहा करार के पक्ष
में कभी नहीं रहे। ज़वाहिरी के जरिए साबित हो गया है कि अफगान ज़मीन पर कुछ और आतंकवादी छिपे और
संरक्षण में पल रहे होंगे। दूसरे, अब अलकायदा उतना असरदार और प्रासंगिक आतंकी समूह नहीं रहा, क्योंकि वह
टुकड़ों में बंट चुका है। उसकी इराक, सीरिया, उत्तरी अफ्रीका और भारतीय उपमहाद्वीप में शाखाएं, अलग नाम से
स्वतंत्र रूप से, काम कर रही हैं। वे खुद को ‘इस्लामिक आंदोलन’ की अगुआ मानती हैं, लिहाजा आज दुनिया में
‘कई और अलकायदा’ सक्रिय हैं और जेहादी आतंक फैलाने में जुटे हैं। सवाल यह भी स्वाभाविक है कि भारत के
दुश्मन ‘ज़वाहिरी’ का खात्मा कब होगा? कई मुखौटे पहन कर ये ‘ज़वाहिरी’ पाकिस्तान में सक्रिय हैं। क्या अमरीका
की तरह भारत भी ड्रोन स्ट्राइक करने और अपने ‘ज़वाहिरियों’ को मारने में सक्षम नहीं है? ज़वाहिरी जि़न्दा था, तो
भारत के खासकर जम्मू-कश्मीर में कट्टरवाद फैलाता था।
भोले-भाले लोगों को जेहाद के नाम पर आतंकवाद में झोंक रहा था। आतंकियों को हथियारों की सप्लाई भी करता
था। ज़वाहिरी बीते दिनों पाकिस्तान भी गया था। संदेह जताया जा रहा है कि पाकिस्तान ने अमरीका से पैसे लेकर
ज़वाहिरी के बारे में तमाम खुलासे किए और उसे मरवाने में भूमिका निभाई। बहरहाल यह महज आरोप है, साबित
नहीं हुआ है। अमरीका की सेनाएं अब अफगानिस्तान छोड़ कर जा चुकी हैं, फिर भी विश्व समुदाय को तालिबान की
हुकूमत को आगाह करना चाहिए कि अंतत: आतंकवाद का हश्र बहुत बुरा होता है। अफगानिस्तान आतंकियों को
पनाह देना छोड़ दे, वरना किसी भी दिन, किसी और ज़वाहिरी का नंबर आ सकता है।