-पीके खुराना-
कुछ साल पहले चिकित्सा जगत के क्षेत्र में अमेरिका में एक अनूठा प्रयोग किया गया और उसकी चर्चा वहां के
सभी बड़ी अखबारों में हुई। एक बड़े अस्पताल में कैंसर के ऐसे मरीज़ों के दो समूह बनाए गए जिनका कैंसर
शुरुआती स्टेज पर था, ट्यूमर था, पर छोटा था। उन दोनों समूहों को एक-दूसरे से बिल्कुल अलग कर दिया गया।
एक समूह को आपरेशन करके ट्यूमर निकाल दिया गया जबकि दूसरे समूह के रोगियों को हिप्नोटाइज़ करके उन्हें
यह कहा गया कि आपरेशन हो गया है, आपरेशन सफल रहा है और ट्यूमर निकाल दिया गया है जबकि उनका
आपरेशन किया ही नहीं गया था। इस समूह के सभी रोगियों को सम्मोहित करके सुला दिया गया था और उसी
अवस्था में उन्हें यह बताया गया था कि उनका आपरेशन कर दिया गया है। यह बात उनके अवचेतन मन ने
स्वीकार कर ली कि आपरेशन हो गया है और ट्यूमर शरीर से निकल गया है। जानते हैं कि इसका परिणाम क्या
हुआ? मरीज़ों का यह समूह भी ठीक हो गया, बिना आपरेशन के ही। मरीज़ों के दोनों समूहों पर बाद में भी लंबे
समय तक नजऱ रखी गई और यह पाया गया कि दोनों समूहों की प्रगति एक जैसी थी, यानी जिन मरीज़ों का
आपरेशन नहीं हुआ था वो भी सेहतमंद बने रहे क्योंकि उनके मन-मस्तिष्क ने यह मान लिया था कि आपरेशन हो
गया है और अब उनके शरीर में कोई ट्यूमर नहीं है। दूसरा प्रयोग भी हालांकि अमेरिका में ही हुआ, पर यह डाक्टरों
और मनोवैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा एक ऐसे कैदी पर किया गया था जिसे फांसी दी जानी थी। यह एक सच्ची
घटना है जो मैंने कभी बचपन में सुनी थी। एक कैदी को क़त्ल के इल्ज़ाम में मौत की सजा सुनाई गई। उसकी
फांसी के एक दिन पहले डाक्टरों की एक टीम उसके पास गई और उन्होंने उससे कहा कि जब तुम्हें कल फांसी दी
जाएगी तो तुम्हारे गले की तीन हड्डियां टूटेंगी और डेढ़ मिनट तक तुम दर्द से छटपटाते रहोगे, और फिर तुम्हारी
मौत हो जाएगी। कैदी ने पूछा कि आप कहना क्या चाहतें हैं? डाक्टरों ने कहा कि हम तुम्हारे साथ एक रीसर्च
करना चाहतें हैं, तुम्हें फांसी न देकर हम तुम्हें एक कोबरा सांप से डंसवा देंगे, इसमें तुम्हें बस एक सुई चुभने के
बराबर दर्द होगा, और तुम 5 से 15 सेकेंड में मर जाओगे। तुम्हें डेढ़ मिनट तक छटपटाना नहीं पड़ेगा। लेकिन सब
कुछ तुम्हारे हाथ में है, अगर तुम अनुमति दोगे तभी हम ऐसा करेंगे, वर्ना डेढ़ मिनट तक दर्द में फांसी से ही
मरना होगा। कैदी को भी यह तरीक़ा ठीक लगा। उसने डेढ़ मिनट तक दर्द झेलने के बजाय 15 सेकेंड में मरना
उचित समझा। और बोला ‘ठीक है, अगर मरना ही है तो यही तरीका सही।’ अब शुरू होता है दिमाग़ का खेल।
अगले दिन उसे एक स्टूल पर बैठाया गया, उसके सामने एक काले रंग का भयानक-सा किंग कोबरा सांप लाकर
रख दिया गया और उससे कहा गया कि देखो, यह दुनिया के सबसे ज़हरीले सांपों में से एक है, यह तुम्हें डंसेगा
और तुम्हारी मौत हो जाएगी। आप कैदी की मनस्थिति समझ सकते हैं। उसके पसीने छूटने लगे। उसके दिमाग़ में
अब यह चलने लगा कि सांप आएगा, डंसेगा और मैं मर जाऊंगा। मौत को सामने देखकर उसका चेहरा सूखकर
छोटा हो गया। उसके कऱीब सांप को लाकर रख दिया गया और उसका चेहरा और गर्दन उस काले कपड़े से ढक
दिया गया, जो फांसी के वक्त पहनाया जाता है। इसके बाद डाक्टरों ने उससे कहा कि अब सांप तुम्हारे पैरों की
तरफ बढ़ रहा है, यह तुम्हें डंसेगा और तुम मर जाओगे। यह कहकर उसके पैर में सांप से न डंसवा कर सिर्फ एक
सुई चुभा दी गई। आश्चर्य होगा जानकर कि वो कैदी उसी समय मर गया। इससे ज़्यादा आश्चर्य की बात तब हुई
जब उसका पोस्टमार्टम किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह पाया गया कि उसकी मौत किसी ज़हरीले ज़ख्म के
कारण हुई है जो अक्सर सांप काटने से होता है। यह सब दिमाग़ का खेल था, एक दिन पहले से ही उसके दिमाग़
में यह बात चलाई जा रही थी कि उसे सांप से डंसवाकर मारा जाएगा। दिमाग़ उसी दिशा में सोचने लगा और
दिमाग़ ने एक सुई के चुभन को भी सांप का डंसना समझकर खुद को ख़त्म कर लिया। यह है विचारों की शक्ति।
हम जैसे विचार दिमाग़ में लाते हैं, हमें वैसा ही परिणाम मिलता है। हमारे विचार और हमारी भावनाएं हमारे
दिमाग को प्रभावित करती हैं, हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं और हमारी खुशी या उदासी का कारण बनती हैं।
हमारी सफलता या असफलता का कारण बनती हैं। किसी ने कुछ कह दिया और हमें गुस्सा आ गया या हम उदास
हो गए तो हम अपने ही अंदर विष भर लेंगे, अपनी ही सेहत का नुकसान करेंगे और अगर हमने उसकी परवाह
नहीं की, उसकी उपेक्षा कर दी तो हमारा मूड नहीं बिगड़ेगा, हम पहले की ही तरह अपने काम निपटाते रहेंगे और
हमारी सेहत पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। खुशियों का यह एक ऐसा राज़ है जिसे समझ कर हम हमेशा खुश
रह सकते हैं और जीवन में सफल भी हो सकते हैं। इसे थोड़ा और विस्तार में समझने की जरूरत है। यदि दिल में
होगा कि मैं फलां काम नहीं कर सकता, यह तो मेरी काबलियत से बड़ा है, या मेरी औकात से बड़ा है, तो सच
मानिए, मैं सही कह रहा हूं क्योंकि सारी कोशिशों के बावजूद मैं उसे पूरा नहीं कर पाउंगा, और अगर मैंने सोच
लिया कि मैं कर सकता हूं तो मैं यह भी सच ही कह रहा हूं क्योंकि मैं पूरा दिल लगाकर कोशिश करूंगा, जहां
अड़चन आएगी वहां रास्ता ढूंढूंगा, किसी से सलाह लूंगा, किसी से सहायता लूंगा, पर काम पूरा करके दिखाउंगा। यह
भी विचारों की शक्ति है। हमारा दिमाग हमारे विचारों से, हमारी भावनाओं से चलता है। इसीलिए यह समझना
आवश्यक है कि भावनाओं को बदले बिना या उन पर नियंत्रण पाए बिना हम सफलता की चाबी हासिल नहीं कर
सकते। इसलिए हमेशा सजगता से पॉजि़टिव बातों को ही दिमाग़ तक आने दें, और सिर्फ पॉजि़टिव ही सोचें। वर्ना
एक बार दिमाग़ में नैगेटिविटी प्रवेश कर गई तो दिमाग़ उसी दिशा में सोच-सोच कर आपके अंदर निराशा भर देगा।
इन दोनों प्रयोगों से एक ही सीख मिलती है कि हमारे विचार हमारी प्राणशक्ति हैं। विचार खुशगवार होंगे तो हम
खुश रहेंगे। विचार सफलता के विश्वास से भरपूर होंगे तो हम सफल होंगे। खुश रहना, सफल होना और लगातार
सफल होते रहना, ये सब हमारे हाथ में है, क्योंकि ये हमारे विचारों का परिणाम हैं। हमारे विचार हमारे अपने हैं,
इन पर नियंत्रण हमारे हाथ में है। इस एक गुर को समझ लेने से ही खुश रहना, सफल होना और सफल बने रहना
आसान हो जाता है। अब हम जानते हैं कि अपने विचारों पर नियंत्रण करके अपने मनचाहे जीवन का आनंद लेना
हमारे अपने हाथ में है।