नौकरशाही की आशंका

asiakhabar.com | April 7, 2022 | 5:18 pm IST
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-ओमप्रकाश मेहता-
लगता है इस कलियुग में भारत में ’त्रैतायुग‘ की पुनरावृत्ति होने वाली है, त्रैतायुग में भारत में रामराज था और लंका
में ’रावणराज‘। भारत में खुशहाली समृद्धि थी तो लंका में अत्याचार व शोषण। तब राम ने अपनी ’लीला‘ दिखाकर
रावणराज का अंत किया था। आज भी भारत में खुशहाली है और लंका में बदहाली, वहां की जनता सरकार की
मुतखोरी की इतनी आदी हो गई कि उस पर ’ब्रेक‘ लगने पर हिंसक आंदोलन पर उतर आई, मंहगाई वहां चरम पर
पहुंच गई, फलस्वरूप भूखे लोग आंदोलन पर उतारू हो गए, हमारे प्रधानमंत्री ने उनकी सहायता की कौशिश की
किंतु वह ’ऊँट के मुंह जीरा‘ साबित हुई और फलस्वरूप वहां अशांति व विद्रोह नियंत्रण से बाहर हो गए और अंतत:
वहां की सरकार को सिंहासन त्यागना पड़ा।
यह तो हुई हमारे पड़ौसी देश में घटे घटनाक्रम की बात। अब यदि हम हमारे देश की सरकार के रथ को चलाने
वाले सही सारथियों (नौकरशाही) की बात करें तो वे आशंकित है कि लंका के इस पूरे घटनाक्रम के पीछे केवल और
केवल एक मात्र कारण ’मुतखोरी‘ है, वहां की सरकार ने अपने आपको लोकप्रिय बनाए रखने के लिए वहां के
नागरिकों को हर जीवनोपयोगी वस्तु मुत उपलब्ध कराई और जब इससे सरकार आर्थिक संकट में आ गई और
उसने ’मुतखोरी‘ रोक दी तो वहां की जनता ने सरकार के खिलाफ तीखा विरोध शुरू कर दिया और सरकार को
इस्तीफें के लिए मजबूर होना पड़ा।
अब हमारे देश के शीर्ष नौकरशाहों का यह नजरिया कहां तक सही है, यह तो वे स्वयं जाने किंतु इसी नजरियें के
चलते नौकरशाहों द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आगाह करना कहां तक ठीक है? सरकार के गोपनीय सूत्रों का
कहना है कि लंका की इस स्थिति पर वहां के नौकरशाहों से भारतीय नौकरशाहों ने चर्चा की तब वहां के नौकरशाहों
ने जनक्रांति के जो कारण गिनाये उनमें मुख्य कारण सरकार की मुतखोरी की योजनाएं है, जिनके बंद कर दिये
जाने पर यह विकट स्थिति पैदा हुई है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी ने केन्द्रीय शीर्ष नौकरशाहों की
बैठक बुलाई तब उस बैठक में नौकरशाहों ने एक स्वर से प्रधानमंत्री को आगाह किया कि भारत में 2014 के बाद
से लागू की गई ’मुतखोरी‘ की योजना-परियोजनाओं को तत्काल बंद कर दिया जाना चाहिये, यदि ऐसा नहीं किया
गया तो भारत में भी ’लंका काण्ड‘ की पुनरावृत्ति हो सकती है। यद्यपि प्रधानमंत्री जी ने नौकरशाहों की इस आशंका
को सिरे से खारिज तो नहीं किया बल्कि नौकरशाहों से इसी संदर्भ में भारत को दृष्टिगत रखते हुए समय-समय पर
जानकारी देने को कहा तथा सरकार की मौजूदा नीतियों में खामियों पर सुझाव देने को भी कहा, साथ ही स्वयं ने
भी इस मामले में सतर्क रहने का फैसला लिया। मोदी जी की पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक की
यह केन्द्रीय नौकरशाहों के साथ नौवीं बैठक थी। मोदी ने नौकरशाहों से स्पष्ट कहा है कि वे कमियों के प्रबंधन की
मानसिकता से बाहर निकल कर अतिशेष के प्रबंधन की नई चुनौति का सामना करें। मोदी ने प्रमुख विकास
परियोजनाओं को नहीं लेने के बहाने के तौर पर गरीबों का हवाला देने की पुरानी कहानी को छोड़ने और उनसे एक
बड़ा दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहा। इस अवसर पर नौकरशाहों ने भी खुलकर मोदी जी से बातें की, उन्होंने

पिछले चुनावों के दौरान एक राज्य में एक लोक लुभावन योजना का जिक्र भी किया तथा ऐसी ’मुतखोरी‘ की
योजनाओं से परहेज करने की भी सलाह दी।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हमारे दो पड़ौसी राज्यों पाकिस्तान व श्रीलंका में इन दिनों ”जनक्रांति“ चरम पर है,
यद्यपि इस व्यापक जनक्रांति का कारण सत्तासीन लोगों की महत्वाकांक्षा और जनता की उपेक्षा है, श्रीलंका की
राजपक्षे सरकार ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ’मुतखोरी‘ की योजनाओं की शुरूआत की और जब इनसे
सरकार भीषण आर्थिक संकट में आ गई और मंहगाई चरम पर पहुंच गई तो वहां ’जनक्रांति‘ हो गई। यही स्थिति
पाकिस्तान की भी है, वहां भी राजनीति व आर्थिक कारणों से जनक्रांति का जन्म हुआ। अत: इन्हीं दो पड़ौसी देशों
का जिक्र करते हुए भारतीय संदर्भ में नौकरशाहों ने मोदी जी को आगाह किया।


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