बचपन में नन्हें-मुन्नों का कोई दोस्त होता है तो वह है गुड़िया। इस नन्हीं दुनिया में नजर डालें तो बच्चों की लाड़ली गुड़िया हाईटेक जरूर हुई है लेकिन दिल से दूर नहीं। सच कहें तो बचपन की परिभाषा बिना गुड़िया के अधूरी रह जाती है। यद्यपि बचपन के खेलों में वीडियो गेम्स और बे-ब्लेड ने जगह बनाई है लेकिन गुड़ियों का क्रेज आज कायम है। बात लड़कियों की करें तो इनकी पहली सहेली गुड़िया रानी होती है। अपनी खूबसूरती और साज-सज्जा के कारण यह सभी का मन मोह लेती है। दिल के है करीब:- मनोचिकित्सक डॉ. उन्नति कुमार कहते हैं, खेलने के लिए न सही, सजावट के लिए ही सही, गुड़िया से बेहतर भला क्या हो सकता है? रोते हुए बच्चों को रिझाने के लिए मां गुड़िया को ही चुनती हैं। पुराने कपड़ों से तैयार गुड़िया हो या किसी ब्रांडेड कंपनी की बनी, इसमें बच्चों को दोस्त जैसा अहसास होता है। तभी वे गुड़िया को नहलाने, सुलाने और चुप कराने से लेकर खाना खाने तक में अपना साथी बनाते हैं।
बच्चों की पहली पसंद:- बिग-बाजर के सेल्स एक्जीक्यूटिव सुनील कहते हैं, दस वर्ष से कम उम्र के बच्चों के बीच गुड़िया आज भी पहली पसंद है। कई ब्रांडेड ट्वॉयज निर्माता कंपनियों ने गुड़ियों के विभिन्न मॉडल्स बाजार में उतारे हैं। इनमें करीना डॉल्स, ओरिजिनल बेबी, कैंडी डॉल्स, बार्बी आदि प्रमुख हैं। मॉडल्स के हिसाब से विशेषताएं भी हैं। ओरिजनल बेबी को छूकर आप धोखा खा सकते हैं। देखने में यह किसी नवजात शिशु जैसी है। इसी तरह म्यूजिकल डॉल तो मानों बच्चों के इशारे पर नाचती है। तरह-तरह की अवाजें निकालना व ताली बजाने पर ठहाके लगाना इसकी विशेषता है। बच्चों की सच्ची दोस्त:- तीन वर्षीया त्रिशा की मां जानकी कहती हैं, मेरी बेटी अपनी गुड़िया के साथ बातें करती है। अपनी ही दुनिया में मग्न रहने के लिए गुड़िया उसकी सबसे अच्छी दोस्त है। गुड़ियों में बच्चों को अपना बचपन नजर आता है। वह इसके साथ बुदबुदाकर अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित करती है। इसके साथ उसके सारे कार्य व्यवहार वैसे ही होते हैं, जैसा हम उसके साथ करते है। इससे बेटी में बोलने की आदत और मानसिक क्षमता काफी बढ़ रही है।