राम जन्म स्थान की तलाश पूरी: प्रो. एनके सिंह

asiakhabar.com | July 31, 2020 | 3:42 pm IST

अर्पित गुप्ता

भगवान रामचंद्र का जन्म कहां हुआ था? करीब एक सौ साल से यह प्रश्न इतिहासकारों व राजनेताओं को परेशान
किए हुए है। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से उस स्थल पर निष्कर्ष दिया है जहां मंदिर का निर्माण किया

जाएगा तथा प्रधानमंत्री भूमि पूजन के साथ नींवपत्थर रखेंगे। हाल में जब नेपाल के प्रधानमंत्री ने यह कहा कि राम
का जन्म स्थान नेपाल में है तो इस प्रश्न ने एक पहेली की शक्ल अख्तियार कर ली। कुछ आलोचकों ने उनका यह
कहकर उपहास उड़ाया कि वह जल्द ही यह भी कह सकते हैं कि नैपोलियन का जन्म नेपाल में हुआ था क्योंकि
यह वर्तनी की एक छोटी सी गलती है जो शताब्दियों के अंतर में पैदा हुई है। इस थ्योरी के अनुसार वह नैपोली के
‘निक नेम’ के बजाय नेपाली होने चाहिए।
यह हास्यास्पद लगता है कि, यहां तक कि एक ट्विटर के ट्वीट के रूप में भी, राम के जन्म स्थान की उपाधि
ग्रहण करने के लिए ऐसे हास्यास्पद ठिकाने को निरूपित किया जाए। किंतु कुछ गंभीर इतिहासविदों ने भगवान राम
के जन्म स्थान का नाम ग्रहण करने के लिए क्लिष्ट-कल्पित स्थानों का संकेत किया है। नेपाल भी इनमें से एक
है। जन्म स्थल के इस विवाद को निपटाने के लिए एक समय तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने पैरवी की थी कि
युक्तिसंगत आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों समुदायों के बीच यह निपटारा किया जाना चाहिए। उन्होंने
रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल भी नियुक्त किया था। अंततः इसका जो परिणाम
निकला, वह किसी एक स्थान पर सर्वसम्मत निष्कर्ष नहीं था।
इतिहासविदों के अनुसंधान के अनुसार राम जन्म स्थान के ठिकानों में जो हैं, उनमें अयोध्या के अलावा सिंधु
सरस्वती साइट पर बानावली है। इतिहासविद कृष्णा राव का यह मत है। दूसरी ओर श्याम नारायण पांडे ने उल्लेख
किया है कि अफगानिस्तान में ‘हृदय’ जन्म स्थान हो सकता है। एक अन्य इतिहासविद वी. रत्नम कहते हैं कि
मूल राम मिस्र के रामसेस सेकेंड हैं तथा जन्म स्थान काहिरा है। इस तरह के प्रयासों का कोई अर्थपूर्ण परिणाम
नहीं निकला। हाईकोर्ट ने पहले ही आसान सा फैसला देते हुए जमीन को तीन भागों में बांट दिया था।
एक भाग मंदिर को, दूसरा भाग मुसलमानों को और तीसरा हिस्सा वादी निर्मोही अखाड़े को दिया जाना था जो
जमीन पर काबिज था तथा जिसने केस दायर किया था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले सर्वसम्मति बनाने की कोशिश की,
किंतु यह दृष्टिकोण सभी पक्षों को मान्य नहीं था। अंततः उसने इस पर निर्णय देना ही बेहतर समझा। पांच
न्यायाधीशों, जिनमें मुस्लिम समुदाय के न्यायाधीश भी थे, ने सर्वसम्मत निर्णय के रूप में विवादित स्थल को
मंदिर स्थल के रूप में स्वीकार किया तथा मुसलमानों के लिए अलग से जमीन का आबंटन कर दिया। एक
सर्वसम्मत निर्णय देना न्यायपालिका की उपलब्धि है। यह निर्णय भारतीय पुरातत्त्व विभाग के निष्कर्ष तथा विद्वान
सदस्यों के दृष्टिकोण पर आधारित है।
अब जबकि जन्म स्थान को लेकर मसला निष्कर्ष तक पहुंच गया है तथा मंदिर का निर्माण शुरू होने वाला है, कई
मसले उठाए जा रहे हैं। एनसीपी नेता शरद पवार ने कोरोना संकट के दृष्टिगत इस कार्यक्रम को स्थगित करने की
मांग की है, लेकिन कार्यक्रम में सुरक्षा की हिदायतों की पालना की जाएगी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तथा
कम्युनिस्ट दल भी नींवपत्थर रखने की प्रक्रिया को जारी रखने में गलती मान रहे हैं। कुछ समय पूर्व मैं कुछ
ग्रामीण लोगों से मिला तो उन्होंने एक तर्कसंगत टिप्पणी की कि पुराने दिनों में जब भी किसी मांगलिक कार्य की
योजना बनती थी, तो जिन्न हस्तक्षेप करते थे तथा विघ्न डालने की कोशिश होती थी।

बुद्धिमान लोगों को चाहिए कि वे इस तरह की बाधाओं को हटाएं तथा कार्यक्रम को पूरा करने में योगदान करें।
राम जन्म भूमि से जुड़े मांगलिक कार्य में भी कुछ ताकतें विघ्न डालने की कोशिशें कर रही हैं। भाग्य की विडंबना
देखिए कि वर्ष 1990 में लालकृष्ण आडवाणी, जो राम मंदिर के समर्थन में रथयात्रा का नेतृत्व कर रहे थे, को
राजद नेता लालू प्रसाद यादव ने गिरफ्तार करवा लिया था। आडवाणी को गिरफ्तार करवाने पर उन्होंने घोषणा की
थी कि यह पंथनिरपेक्ष राजनीति की शुरुआत है। लालू आज जेल में हैं और आडवाणी मंदिर के निर्माण के लिए शुरू
होने वाले असाधारण समारोह में शामिल होंगे। राम जन्म भूमि विवाद को हमेशा-हमेशा के लिए सुलझाने के मार्ग
में कई बाधाएं आईं, परंतु अब लग रहा है कि इस बड़े कार्य को करने का मार्ग तेजी से प्रशस्त हो रहा है तथा
बिना किसी अड़चन के यह कार्य अपने अंजाम तक निर्विघ्न पहुंच जाएगा।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंदू धर्म में अति महत्त्वपूर्ण दैवीय शक्ति श्री राम को उनको ठिकाना देने की पवित्र प्रक्रिया
को सार्वभौमिक प्रशंसा नहीं मिल रही है तथा कुछ अशांत कर देने वाली आवाजें सुनी जा रही हैं। भारत के
बहुसंख्यकों की भावना से जुड़ा यह मसला जिस तरह हल होने जा रहा है, उसे देखते हुए इस कार्यक्रम को खुशी व
सद्भावना के साथ मनाए जाने की जरूरत है। इसके विरोध में उपजी आवाज को सद्भावना को पलीता लगाने का
अधिकार नहीं है। विरोध में उठी आवाजों को हिंदुत्व के दीर्घ परिप्रेक्ष्य तथा उनके घरों में शांति को रास्ता देना
चाहिए। भगवान राम की आराधना पूरे भारत में होती है, वह समस्त भारतवासियों के लिए पूजनीय हैं। इसलिए
उनके निमित मंदिर के निर्माण कार्यक्रम में सभी को भागीदारी करनी चाहिए। यह भारत के लिए गौरव की बात है।
बरसों बाद राम जी को उनका ठिकाना मिलने जा रहा है।


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