अर्पित गुप्ता
चीन और उसकी सेना का ‘रक्त-चरित्र’ एक बार फिर बेनकाब हुआ है। मंगलवार की बीती देर शाम में एक पूर्व
लेफ्टिनेंट जनरल ने दावा किया था कि शहादतों की संख्या ज्यादा हो सकती है। चीन ने अपनी पुरानी फितरत के
मुताबिक, भारतीय सेना की पीठ में फिर वार किया है। खूनी संघर्ष जिस स्तर तक पहुंच गया था, उसी के
मद्देनजर पूर्व जनरल ने आकलन किया था। अंततः वह सच निकला, जब भारतीय सेना का देर रात अधिकृत
बयान आया कि एक कमांडिंग अफसर (कर्नल) और 20 सैनिक ‘शहीद’ हुए हैं। चीन ने बुधवार सुबह तक कोई
आधिकारिक बयान नहीं दिया था। अलबत्ता समाचार एजेंसी एएनआई की खबर आई कि हिंसक टकराव में चीनी
सेना का एक कमांडिंग अफसर और 43 सैनिक हताहत हुए हैं। सेना के सूत्रों का खुलासा है कि इतने चीनी सैनिक
या तो मारे गए अथवा गंभीर रूप से घायल हुए हैं। फिलहाल इन्हीं सूचनाओं पर भरोसा करना पड़ेगा। भारत-चीन
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीबी इलाके में करीब 45 सालों के बाद, बिना गोलीबारी किए, इतने सैनिक
शहीद और हताहत हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश के एक इलाके में 20 अक्तूबर, 1975 को दोनों पक्षों के सैनिकों के
बीच हिंसक टकराव हुआ था, जिसमें चार भारतीय जवान शहीद हुए थे। बेशक उसके बाद भी दोतरफा तनाव
बरकरार रहा, धक्का-मुक्की की घटनाएं होती रहीं, सैनिक घायल भी हुए, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ, जैसा इस
बार हुआ है। बेशक फायरिंग नहीं की गई, लेकिन नौबत पत्थरबाजी, कील लगे डंडों, रॉड, कंटीले तारों सरीखे
आदिम हथियारों तक आ गई। जाहिर है कि चीन की ओर से सब कुछ सुनियोजित था। दोतरफा संवाद में बनी
सहमति के बाद दोनों सेनाओं को पीछे हट कर वापस जाना था। उसी के मुताबिक कर्नल के नेतृत्व में भारतीय दल
बातचीत करने चीनी चौकी में गया था। इस तरह की कर्नल स्तर की बातचीत होती रहती थी, लेकिन चीनी सैनिक
वापस जाने के मूड में नहीं लगे। यही नहीं, उन्होंने निहत्थे भारतीय दल पर हमला कर दिया। कर्नल पर रॉड से
हमले किए गए। एक रक्षा विशेषज्ञ का मानना है कि वह हिंसक और खूनी झड़प घंटों चली। पहले तो भारतीय
सैनिक लौट आए, लेकिन करीब 40 मिनट बाद पलटवार किया और अपने कमांडर पर किए गए हमले का प्रतिकार
लिया। अपुष्ट खबरें हैं कि उस झड़प में चीन के 50 से अधिक जवान गंभीर रूप से घायल हुए। कुछ हताहत भी
हुए होंगे। यह सूचना गौरतलब है कि भारतीय हमला इतना ताकतवर था कि चीनी सेना के एक अफसर को शांति
में अपना हाथ उठाना पड़ा। बहरहाल भारत के पूर्व सेना प्रमुख जनरल विक्रम सिंह का मानना है कि चीन इतनी
जल्दी और आसानी से वापस नहीं जाएगा। यही उसकी रणनीति है, लिहाजा हमारी सैन्य और कूटनीतिक रणनीति
उसी के मुताबिक तैयार की जानी चाहिए। कुछ प्रख्यात पूर्व जनरलों का मानना है कि अब भारत को चीन को खुली
चेतावनी दे देनी चाहिए कि हाथापाई और धक्का-मुक्की का दौर समाप्त हो चुका है। अंततः सेना को फायर खोलने
के आदेश देने पड़ेंगे, जैसा कि सेनाएं करती रही हैं। उन स्थितियों की नियति युद्ध भी हो सकती है, लेकिन इस
तरह भी सैनिकों की शहादत बर्दाश्त नहीं की जा सकती। दरअसल चीन आक्रामक जवाब को ही मान्यता देता है।
भारत की तरफ से शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और सैन्य जनरलों को ही यह निर्णय लेना है कि आखिर चीन को किस
भाषा और कौन-सी शैली में सबक सिखाया जाए? कैबिनेट की सुरक्षा समिति की बीती मंगलवार रात में बैठक हुई।
रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और सैन्य जनरलों की लगातार बैठकें होती रही हैं। बताया जाता है कि लद्दाख समेत
उत्तराखंड, हिमाचल, अरुणाचल और सिक्किम आदि के सरहदी इलाकों में सेना और सुरक्षा बलों का अलर्ट बढ़ा
दिया गया है। नौसेना और वायुसेना को भी अलर्ट पर रखा गया है। तनाव गहरा है और संवाद टूटा है। सीमा विवाद
अपनी जगह मौजूद हैं। चीन के मंसूबे क्या हैं, फिलहाल स्पष्ट नहीं। अभी तो वह भारत को ही नसीहत के पाठ
पढ़ा रहा है। पूरी दुनिया चौकन्नी हो उठी है कि अचानक चीन भारत के खिलाफ हमलावर क्यों हुआ? संयुक्त राष्ट्र
ने भी अमन की अपील की है। लेकिन सभी की निगाहें दोनों देशों के बीच पनपे हिंसक हालात के आखिरी नतीजों
पर हैं। फिलहाल युद्ध के आसार नहीं हैं।