लॉकडाउन की वजह से बढ़ा कृषि में लागत घाटा

asiakhabar.com | May 19, 2020 | 4:44 pm IST
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विनय गुप्ता

अर्थव्यवस्था में कृषि का बड़ा योगदान है। देश की 70 फीसदी आबादी कृषि पर आत्मनिर्भर है। लेकिन हमारी कृषि
आज भी मानसून आधारित है। अगर मानसून बेहतर रहा तो अच्छे उत्पादन की उम्मीद बंधती है। आर्थिक विशेषज्ञों
ने अपने विश्लेषण में यह उम्मीद जताई है कि लॉकडाउन के बाद भी कृषि पर कोई प्रभाव नहीँ पड़ेगा। कृषि और
किसानों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर उतना प्रभाव नहीँ पड़ेगा जितना पड़ना चाहिए। देश की विकास दर में
कृषि का योगदान तीन फीसदी की जताई गईं है। यह सुखद उम्मीद है लेकिन लॉकडाउन में मजदूरों के पलायन
और कृषि उत्पादों का जो बड़ा नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कहाँ से होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख
करोड़ के पैकेज का ऐलान किया है। यह देश की जीडीपी का दस फीसदी है। उस पैकेज से सरकार आत्मनिर्भर
भारत का आगाज किया है। सरकार की इस घोषणा के बाद शेयर बजार में उछाल आ गया है। लेकिन आत्मनिर्भर
भारत पैकेज से किसानों को कितना लाभ होगा अभी यह कहना जल्दबाजी होगी।
लॉकडाउन की वजह से किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हुई है। अच्छे उत्पादन के बाद भी बजार और
ट्रांसपोर्ट उपलब्ध न होने से फसलें तबाह हो गईं। जिसकी वजह से उन्हें बड़ा नुकसान हुआ है। किसानों ने खेतों में
फल और सब्जियों की फसल को जुतवा दिया है। लॉकडाउन उनके लिए बड़ी मुसीबत बनकर आया है। असमय
बारिश और लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। किसानों को इस आर्थिक नुकसान
की भरपाई बड़ी आवश्यक है। अगर सरकार इस पर गम्भीरता से विचार नहीँ किया तो किसानों की रीढ़ टूट
जाएगी। क्योंकि लागत और मुनाफे के बीच कृषि का घाटा बढ़ गया है। आपको याद होगा दो साल पूर्व नासिक के
प्याज उत्पादक किसान संजय साठे ने 700 कुंतल प्याज बेचने बाद उसके एवज में मिले 1000 रुपए से अधिक
की राशि प्रधानमंत्री मोदी को मनीआर्डर किया था। किसान ने यह क़दम गुस्से में उठाया था। क्योंकि प्याज का
बाजार मूल्य गिरने से प्याज का लागत मूल्य भी किसान नहीँ निकाल पाया था।
भारतीय कृषि की यह सबसे बड़ी विडम्बना है। सरकार अभी तक कृषि को उद्योग का दर्जा नहीँ दे सकी है। दूसरी
बात बाजार नियंत्रण मूल्य लागू नहीँ है। जिसकी वजह से माँग और लोच की वजह से किसानों को भारी नुकसान
उठाना पड़ता है। बजार में फल और सब्जियों का अधिक उत्पादन होने से किसानों बजार और मण्डियां नहीँ मिल
पाती हैं। सरकारी तरह से इस तरह की उपज के लिए कोई सुविधा नहीँ होती है। जिसकी वजह से किसान अपनी

लागत नहीँ निकाल पाता है और वह कर्ज में डूब जाता है। लेकिन सरकार पर कोई प्रभाव नहीँ पड़ता। जिसकी
वजह है कि किसान इस हालत में अवसाद का शिकार हो जाता है और बढ़ते कर्ज की वजह से वह आत्महत्या का
रास्ता चुनता है।
लॉकडाउन में कृषि से जुड़े किसानों को भारी नुकासान हुआ है। उद्योग और दूसरे क्षेत्र से यह आवाज़ उठ रही हैं कि
उन्हें कोविड- 19 से काफी नुकासान उठाना पड़ा है। लेकिन अभी तक सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीँ है कि
किसानों को कितने करोड़ का नुकासान हुआ है। महाराष्ट्र प्याज, अंगूर और नारंगी के साथ कपास का बड़ा
उत्पादक है। लेकिन लॉकडाउन होने की वजह से माँग न होने से
किसानों को प्याज, अंगूर और दूसरे उत्पाद को घाटे में बेचना पड़ रहा है। अंगूर की माँग न होने से किसान उसे
पेड़ों में सुखाने को मज़बूर हैं। जिसकी वजह से किसान परेशान हैं। यह हाल सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीँ पूरे देश का है।
कोरोना किसानों की जिंदगी को बर्बाद कर दिया है।
बिहार में लीची और पश्चिम बंगाल में अनानस किसान परेशान हैं। मजदूरों के पलायन की वजह खेती पर बुरा
असर पड़ा है। गुजरात और राजस्थान में कपास और जीरा उत्पादक किसानों पर कहर टूटा है। कर्नाटक और के
कपास किसानों को भी नुकसान हुआ है। केले की खेती भी चौपट हुई है। हिमाचल और जम्मू में सेब के साथ केशर
की खेती को भी नुकसान पहुँचा है। मध्यप्रदेश में कई किसानों ने सब्जी यानी पत्ता गोभी की खड़ी फसल को जुतवा
दिया। स्ट्रावेरी के किसान ख़ून के आँसू रो रहें हैं। यूपी में गंगा के तराई इलाकों में तरबूज और परवल और टमाटर
की खेती करने वालों को भारी घाटा हुआ है। लॉकडाउन की वजह से मजदूर न मिलने और ट्रांसपोर्ट की सुविधा ठप
होने से ऐसी स्थिति बनी। यहीं वजह है कि माँग और आपूर्ति का सिद्धांत गड़बड़ होने से फल और सब्जियों के
दाम नहीँ बढ़े, जिसकी वजह से किसानों को बड़ा नुकासान हुआ है। इस हालात में किसान पूरी तरह कर्ज में डूब
जाएगा। अगली फसल की लागत कहाँ से आएगी। किसान क्योंकि वह पहली फसल की लागत नहीँ निकाल चुका है।
बैंकों का कर्ज कैसे चुकाएगा। इसके अलावा घर खर्च और दूसरे आवश्यकताएं वह कहाँ से पूरी करेगा।
किसान हमेशा कर्ज में डूबा रहता है और आत्महत्या की घटनाएं बढ़ती हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो देश में हर साल
लगभग 12 हजार से अधिक किसान आत्महत्याएं करते हैं। हालांकि किसानों की स्थिति सुधार के लिए सरकारों ने
समय- समय पर अच्छे क़दम उठाए हैं। किसानों की कई बार कर्जमाफी हो चुकी है। खाद- बीज और रासायनिक
उर्वरकों पर भी रियायत दी जाती है। कई- कई बार यह सब्सिडी सौ फीसदी तक रहती है। सरकारें किसानों को
सस्ते दर पर कृषि कर्ज भी बैंकों के माध्यम से उपलब्ध करा रही हैं। प्रधानमंत्री की तरफ़ से पीएम किसान से भी
थोड़ी राहत मिली है। लेकिन यह किसान हितकारी कम चुनावी अधिक है। देश में 08.31 करोड़ किसानों को
16.621 करोड़ की राशि दी गईं है। यह नाकाफी है किसानों को अधिक सुविधाएँ मिलनी चाहिए। कृषि और
किसानों पर नीतिगत फैसलों की ज़रूरत है।
भारत में हर साल तक़रीबन 12000 हजार किसान आत्महत्या करते हैं। हालाँकि साल 2916 के बाद से
एनसीआरबी ने किसानों की आत्महत्या के कोई आंकड़े नहीँ जारी किए हैं। साल 1995 और 2011 यानी 17
सालों में 07 लाख 50 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की थी। किसानों के आत्महत्या के मामलों में सबसे
पहले नंबर पर महाराष्ट्र है। इसके बाद कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु प्रमुख
रुप से शामिल हैं। सरकार की तमाम घोषणाओं के बाद भी किसानों की आत्महत्याओं पर विराम नहीँ लग सका है।
लॉकडाउन की वजह से यह स्थिति और मुश्किल हो सकती है। किसानों की तरफ़ से उगाई जाने वाली फल,
सब्जियाँ को बाजार न मिलने से करोड़ों का नुकसान हुआ है। जिसका खामियाजा सीधे किसानों पड़ेगा। किसान बड़े

कर्ज में डूब गया है। किसानों को बड़े राहत पैकेज की ज़रूरत है। वैसे प्रधानमंत्री ने सभी वर्गों विशेष रुप से लघु,
मध्यम और कुटीर उद्योग के साथ किसानों के लिए 20 लाख करोड़ का आत्मनिर्भर पैकेज की घोषणा की है।
कृषि में हुए इस घाटे की भरपाई बीमा कम्पनियाँ भी नहीँ कर पाएँगी। क्योंकि उनकी फसल प्राकृतिक आपदा से
नहीँ खराब हुई है इसकी मुख्य वजह लॉकडाउन है। दूसरी बात बीमा कम्पनियों के नियम इतने कड़े हैं कि उस पर
किसानों का चलना मुश्किल है। सरकारों को किसानहित को देखते हुए बीमा के क्षतिपूर्ति नियमों में व्यापक बदलाव
करना चाहिए। लॉकडाउन जैसी स्थिति भी इसमें शामिल होने चाहिए जिस पर किसानों को इसका लाभ मिल सके।
सरकार अगर किसानों के हालत पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। कृषि क्षेत्र को लेकर सरकार को त्वरित
फैसले लेने होंगे। क्योंकि मानसून करीब है। इस बार सामान्य मानसून की बात आई है। उस स्थिति में अगर
किसानों की बात पर विचार नहीँ किया गया तो हालात बेहद बुरे होंगे। क्योंकि कृषि में बढ़ती लागत की वजह से
घाटे का सौदा साबित हो रही है जिसकी वजह से किसान खेती को अलविदा कह रहा है।


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