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asiakhabar.com | October 7, 2017 | 2:54 pm IST

बच्चों का कान बहना एक बहुत आम समस्या है जिसे आमतौर पर हम बेहद हल्के ढंग से लेते हैं। हम इसके प्रति सचेत तभी होते हैं जब यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है। कम सुनाई देना, कान में दर्द या खारिश होना कुछ अन्य आम समस्याएं होती हैं जो किसी न किसी प्रकार कान बहने की समस्या से जुड़ी होती हैं।

कान के बाहर या भीतर पानी जैसे रंगहीन तरल पदार्थ या मवाद या खून के रिसाव को ही आम बोलचाल की भाषा में कान बहना कहते हैं। कान बहने का शिकार कोई भी व्यक्ति हो सकता है परन्तु बच्चों, कुपोषित लोगों, मियादी बुखार के रोगियों तथा तैराकों में इसके होने की संभावना ज्यादा होती है।

कान बहने का कारण किसी भी प्रकार का वायरल, वैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन हो सकता है। यह बीमारी जन्म से नहीं होती परन्तु इसके अनेक कारण हो सकते हैं। बाहरी कान में चोट लगने, फोड़ा−फुंसी होने या फंफूद लगने पर कान बहने की समस्या हो सकती है।

मध्य कान एक नली द्वारा नाक के पिछले तथा गले के ऊपरी हिस्से से जुड़ा होता है। इस कारण नाक तथा गले में होने वाली साइनस तथा टान्सिल जैसी समस्याएं मध्य कान को प्रभावित करती हैं। इस स्थिति में कान में सूजन हो जाती है और इसकी ट्यूब बंद हो जाती है जिसके फलस्वरूप कान के मध्य भाग में एक किस्म का तरल पदार्थ इक्ट्ठा होने लगता है। दबाव बढ़ने पर यह तरल पदार्थ कान के पर्दे को हानि पहुंचाता हुआ बाहर निकल आता है।

छोटे शिशु को ठीक से लिटाकर दूध न पिलाने के कारण भी मध्य कान में संक्रमण हो जाता है। अधिकांश महिलाएं बच्चे को करवट लिटाकर दूध पिलाती हैं जिससे कई बार दूध मध्यकान में पहुंचकर संक्रमण पैदा कर देता है। जिससे मवाद बनने लगता है।

आंतरिक कान आमतौर पर कान बहने की समस्या के लिए जिम्मेदार नहीं होता। परन्तु दुर्घटनावश कभी−कभी सिर में लगी गंभीर चोट से आंतरिक कान को नुकसान पहुंचता है और वह बहने लगता है। वायु प्रदूषण, एलर्जी की समस्याएं, गले में संक्रमण, चिकनपाक्स, मक्स और रूबैला जैसे बुखार, कुपोषण तथा अस्वास्थ्यकर परिस्थितियां भी कान बहने में अहम भूमिकाएं निभाती हैं। कई बार दांतों का इंफेक्शन भी कान बहने का कारण बन सकता है।

कान का पर्दा फटने पर दो प्रकार से संक्रमण होता है। पहला कान के पर्दे में सुराख द्वारा और दूसरा पर्दे के साथ−साथ मध्यकान की हड्डी का भी संक्रमित हो जाना। कान और मस्तिष्क के बीच एक पतली सी हड्डी होती है। जब पर्दे के किनारे पर सुराख होता है तब इंफेक्शन मेस्टायड यहां से संक्रमण रक्त वाहिनियों के रास्ते मस्तिष्क, उसे घेरने वाली झिल्ली, फेशियल नर्व तथा आंतरिक सतह तक पहुंच सकता है। इससे मस्तिष्क की सूजन, चेहरे की मांस पेशियों में लकवा, चक्कर आना और पूर्व बधिर होने जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

जहां तक उपचार का प्रश्न है, रोगी तथा रोग की स्थिति को देखकर ही डॉक्टर इलाज के तरीके का निर्णय करते हैं। यदि ऐडीनायडस अथवा टांसिल्स के कारण इंफेक्शन हो तो उसे दवा देकर ठीक किया जा सकता है। इससे भी यदि स्थिति न सुधरे तो इंफेक्टेड एडिनायड तथा टांसिल्स को आपरेशन द्वारा निकाल दिया जाता है और बाहरी दवा और खाने वाली दवा के द्वारा कान सुखा दिया जाता है। कान के पूरी तरह सूख जाने के बाद तथा रोग की आक्रामकता शांत हो जाने के बाद आपरेशन द्वारा पर्दे के सुराख को बंद कर दिया जाता है। इस आपरेशन को टिम्पेनो प्लास्टी कहते हैं। इस आपरेशन में कान के पास की त्वचा से ही कृत्रिम पर्दा बना लिया जाता है।

मेस्टायड खराब होने की स्थिति में बड़ा आपरेशन करना पड़ता है। इसमें लगभग तीन−चार घंटे का समय लगता है। आपरेशन के दो महीने बाद तक रोगी को लगातार जांच भी करवानी पड़ती हैं। यदि मेस्टायड गल जाए तो मरीज का मुंह टेढ़ा भी हो सकता है।

कान बहने की समस्या के गंभीर परिणामों से बचने के लिए जरूरी है कि कानों की छोटी−मोटी समस्याओं को भी नजरअंदाज न किया जाये। शिशुओं को दूध पिलाते समय उनका सिर 45 डिग्री कोण पर गोद में ऊंचा रखें। जुकाम, नजला, टांसिल्स या गले की कोई समस्या होते ही बिना समय गवाएं डॉक्टर से तुरन्त सलाह लेनी चाहिए।


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