जब मन किया चल दिए, जहां मन किया रुक गए…

asiakhabar.com | May 11, 2023 | 5:21 pm IST

जब मन किया चल दिए, जहां मन किया रुक गए। कोई खूबसूरत लोकेशन दिखी तो रुककर सेल्फी ले ली। छोटा-सा ढाबा दिखा तो चाय की चुस्कियों के साथ लोकल लोगों के संग बतिया लिए। न बस पकड़ने की आपाधापी, न ट्रेन छूटने का डर। अलमस्त आवारा बादलों की तरह ऐसी घुमक्कड़ी किसी बंधन में मुमकिन नहीं। इसके लिए चाहिए अपनी बाइक या कार और आजाद ख्याल। बस चाबी घुमाइए और चल पड़िए। अगर आप भी अपनी कार या बाइक से देश-दुनिया के चक्कर लगाना चाहते हैं तो ये जानकारियां आपके काम आएंगी…
हिमालय के सुदूर इलाकों में जहां बस नहीं पहुंच पाती, मेरी बाइक ने पहुंचा दिया। पूर्वोत्तर भारत के जिन इलाकों में ट्रेन अब भी सपना है, वहां अपनी कार ने हमें चलते-फिरते घर जैसा आराम दिया। नेपाल और भूटान जाने से पहले ट्रांसपोर्ट संबंधी कई बुनियादी जानकारी नहीं मिल पाई थी तो अपनी गाड़ी से चले गए। एडवेंचर के साथ-साथ एक सुरक्षा की भावना भी अपनी गाड़ी से घूमते हुए रहती है। मिसाल के तौर पर अरुणाचल प्रदेश के सुदूर उत्तर में मेंचुका जाते हुए रास्ता बेहद खराब था। अंधेरा हो गया था, लेकिन मन में डर नहीं था। तय कर रखा था होटल मिला तो ठीक, वरना कार में ही सो जाऊंगा। इसी उम्मीद ने हौसला पस्त नहीं होने दिया और एक गांव में पनाह मिल ही गई।
जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह इलाके से उस रास्ते लौटने का मन नहीं था, जिससे गए थे। एक और रास्ते का पता चला, जो जंगलों से होता हुआ सीधे हिमाचल प्रदेश के चंबा निकल जाता है, लेकिन उधर से दिन में इक्का-दुक्का कोई जीप ही गुजरती है। उस वक्त बाइक थी तो सोचा क्यों न नया रास्ता देखा जाए! जब सफर शुरू किया तो कुदरत के ऐसे नजारे देखने को मिल रहे थे, जो कल्पना से ज्यादा सुंदर थे। सारथल होते हुए सीधे चंबा निकले। वहां से डलहौजी और पठानकोट होते हुए दिल्ली। वाकई अपनी गाड़ी से घूमने में होने वाली सुविधा का कोई जवाब नहीं। हालांकि इससे पहले कि आप सफर पर निकलें, अपनी और गाड़ी की जरूरत को ध्यान में रखते हुए कुछ बुनियादी तैयारी कर लें। ऐसे किसी ट्रिप पर निकलने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है।
रास्ते की जानकारीः मैप की मदद लें…
मोबाइल में गूगल मैप्स का सहारा लें। ऑफलाइन मैप्स भी डाउनलोड कर लें। इंटरनेट न होने पर गूगल मैप्स काम नहीं कर पाता। गूगल मैप्स ऑफलाइन इस्तेमाल के लिए डाउनलोड हो सकते हैं। ऐप स्टोर से आप ऐसे दूसरे मैप्स भी डाउनलोड कर उसे यूज करने का तरीका इंटरनेट से सीख सकते हैं। जेब इजाजत दे तो गार्मिन के जीपीएस बेस्ड नैविगेटर डिवाइस भी खरीदे जा सकते हैं, जोकि 6000 रुपये से शुरू होते हैं।
मौसम की जानकारी: जहां जा रहे हैं इंटरनेट के जरिए उस इलाके के मौसम की जानकारी लें और कपड़े उसी हिसाब से रखें। जींस के अलावा सिंथेटिक कपड़े रखना ज्यादा बेहतर है क्योंकि इनकी देखभाल की कम जरूरत पड़ती है।
रुकने की जगह: एडवांस में होटल बुक करवाना जरूरी नहीं। इससे यात्रा के दौरान फिजूल दबाव रहता है, जो आपको ड्राइव का मजा पूरी तरह नहीं लेने देता। फिर भी यह जानकारी जरूर रखें कि रास्ते में पड़ने वाले शहर कितनी दूरी पर हैं ताकि जरूरत पड़ने पर आप वहां पहुंचने के समय का सही अंदाजा लगा सकें। वैसे, गांव-देहात में आज भी लोग टूरिस्टों को आसानी से अपने घर में पनाह दे देते हैं। इससे आपको लोकल चीजों को पास से जानने का मौका मिलता है। गुरुद्वारे में भी मुफ्त में रात गुजार सकते हैं। वैसे, ऑनलाइन होटल बुकिंग साइट्स से आप लगातार अच्छी डील की जानकारी ले सकते हैं।
इमर्जेंसी नंबरों की जानकारी: किसी भी इमर्जेंसी में मदद हासिल कर सकें, इसके लिए इमर्जेंसी नंबरों की जानकारी पहले से लेकर चलें। सबसे काम का नंबर है 100। आप जहां से भी गुजरेंगे, वहीं के लोकल पुलिस कंट्रोल रूम से यह नंबर कनेक्ट हो जाएगा। अगर मामला पुलिस से जुड़ा नहीं है तो भी मामले की गंभीरता को देखते हुए वे आपको स्थानीय नंबरों की जानकारी दे देंगे। इसके अलावा आमतौर पर हर हाइवे पर इमर्जेंसी नंबर लिखे रहते हैं, जिनसे दुर्घटना जैसे हालात में तुरंत मदद ली जा सकती है। अपने डॉक्टर और गाड़ी मैकेनिक या वर्कशॉप का नंबर भी साथ रखें। गाड़ी की सर्विस बुक में देशभर के सर्विस सेंटरों के एड्रेस और फोन नंबर की लिस्ट होती है, उसे भी संभालकर रखें।
अपनों के टच में रहें: स्मार्ट फोन की मदद से अपनी लोकेशन रियल टाइम में घर बैठे शुभचिंतकों के साथ शेयर की जा सकती है। उनके स्मार्ट फोन में फॅमिली लोकेटर ऐप डाल दें। आप सफर में जहां कहीं भी होंगे, उन्हें इसकी जानकारी रियल टाइम में मिलती रहेगी। अपने ऐप स्टोर में फैमिली लोकेटर सर्च करें। ऐसे दर्जनों ऐप मिल जाएंगे। अहम जानकारी नोट करेंः अपना नाम, ब्लड ग्रुप और एक इमरजेंसी नंबर एक कार्ड पर लिखकर हमेशा अपनी जेब या पर्स में रखें। गाड़ी के विंडशील्ड या दरवाजे पर भी यह जानकारी लिख सकते हैं। इमर्जेंसी में कोई अनजान व्यक्ति भी ये नंबर देखकर आपके घर पर सूचना भेज सकेगा।
परेशानी का सबब न बन जाए अपनी गाड़ी…
टायर पंक्चर, ब्रेकडाउन, लॉन्ग ड्राइव की थकान और ट्रैफिक जाम -ये ऐसी वजहें हैं, जो सफर का मजा किरकिरा कर सकती हैं। हालांकि पहले से तैयारी कर लें तो परेशानियों से बचा जा सकता है।
पंक्चरः घिसे हुए और पुराने टायर न सिर्फ पंक्चर का, बल्कि टायर फटने जैसे हादसों का सबसे बड़ा कारण होते हैं इसलिए टायर अच्छी हालत में हों। टायरों में हवा का प्रेशर सही हो। गाड़ी की सर्विस बुक में सही प्रेशर की जानकारी होती है।
ब्रेकडाउनः इलाज से बेहतर है बचाव इसलिए गाड़ी को हमेशा दुरुस्त रखें। लंबे सफर से पहले सर्विस करा लें, जिसमें सभी स्टैंडर्ड चेकअप हों। ब्रेक, हेडलाइट, टेललाइट, इंडिकेटर बल्ब, रियर व्यू मिरर, एयर बैग सेंसर आदि सही हों। सुरक्षा सेंसर, इंजन और ब्रेक ऑयल लेवल, एसी कूलेंट आदि सभी अच्छी तरह से चेक करवा लें। सफर के बीच में ब्रेकडाउन हो भी जाए तो कार कंपनी की हेल्पलाइन का सहारा लें, जिसका नंबर सर्विस बुक में होगा।
थकानः ड्राइवर को नींद आ जाना अपने देश में सड़क हादसों के प्रमुख कारणों में से एक है। दिमाग थका हो तो फैसला लेने में वक्त लगता है जबकि हाइवे पर तेज रफ्तार के साथ जरूरी है फौरन फैसला लेने की क्षमता। यह तभी मुमकिन है, जब आपका तन और मन फ्रेश होगा। इसलिए सफर से पहले और बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें। यह आदत आपकी और गाड़ी की सेहत को बनाए रखेगी।
बाइकर्स ग्रुप से जुड़ने के लिए बीसीएम् टूरिंग डॉट कॉम यंग इंडियनस डॉट इन, एक्सबीएचपी डॉट कॉम और फेसबुक पर कई बाइकर्स ग्रुप हैं। हालांकि ये सभी अनौपचारिक ग्रुप हैं, यानी कानूनी रूप से इनकी कोई मान्यता नहीं है। वैसे भी बाइकर्स ग्रुप के लिए कोई कानूनी गाइडलाइंस नहीं हैं इसलिए अपने विवेक का इस्तेमाल कर ही इनसे जुड़ें।
ट्रिप कितनी लंबी दिल्ली से लद्दाख: 15 दिन दिल्ली से सांग्ला घाटी (हिमाचल): 6 दिन दिल्ली से सरिस्का नैशनल पार्क: 2 दिन दिल्ली से दमदमा झील: 1 दिन दिल्ली से डोटी-सिलगढ़ी (नेपाल): 4 से 6 दिन तक दिल्ली से पोखरा और काठमांडू (नेपाल): 6 से 14 दिन तक सिलीगुड़ी से थिंपू (भूटान): 6 दिन जयगांव (पश्चिम बंगाल) से पारो (भूटान): 4 दिन इम्फाल (मांडले) से म्यांमार -बैंकॉक, थाइलैंड: 12 दिन


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