भारत के प्रमुख नगरों में से एक हैदराबाद अपनी ऐतिहासिक इमारतों और बहुसांस्कृतिक सभ्यता के लिए
प्रसिद्ध है। आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद तेलंगाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है। हिन्दू और मुसलमान
के एकता और भाईचारे का प्रतीक यह शहर सूचना क्रांति के क्षेत्र में भी अग्रणी है। कुतुब शाही वंश के
संस्थापक कुली कुतुब शाह ने 1591 ईसवी में मूसी नदी के किनारे हैदराबाद शहर बसाया था। 16वीं और
17वीं शताब्दी के दौरान कुतुब शाही सल्तनत का यहां शासन था। उसके बाद कुछ समय तक यहां मुगलों
का भी शासन रहा। खूबसूरत इमारतों, निजामी शानो-शौकत और लजीज खाने के कारण मशहूर हैदराबाद
भारत के मानचित्र पर एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में अपनी एक अलग अहमियत रखता है। इस
शहर को विविध संस्कृतियों के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। निजामों के इस शहर में आज भी हिंदू-
मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द्र से एक-दूसरे के साथ रहकर उनकी खुशियों में शरीक होते हैं।
हैदराबाद और सिंकदराबाद दो जुड़वां शहरों के नाम से जाने जाते हैं। इन दोनों शहरों को विभाजित करने
वाली झील हुसैन सागर झील है, जो अपनी नायाब खूबसूरती के कारण पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख
केंद्र है। अपने लजीज मुगलई भोजन के साथ-साथ हैदराबाद निजामी तहजीब के कारण भी दुनिया भर में
मशहूर है। स्वादप्रेमियों के लिए तो हैदराबाद जन्नत के समान है। यहां की लजीज बिरयानी और पाया
की खूशबू दूर-दूर से पर्यटकों को हैदराबाद खींच लाती है। हैदराबाद के नवाबी आदर-सत्कार व खान-पान
को देखकर आपको भी लगेगा कि वाकई में आप किसी निजाम के शहर में आ गए हैं।
हैदराबाद के मुख्य आकर्षण:- निजामी ठाठ-बाट के इस शहर का मुख्य आकर्षण चारमीनार, हुसैन सागर
झील, बिड़ला मंदिर, सालारजंग संग्रहालय आदि है, जो देश में हैदराबाद को एक अलग पहचान देते हैं।
आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में कदम रखते ही आपको एक ओर इतिहास की गलियों में घूमने का
एहसास होगा और दूसरी तरफ तकनीकी ऊंचाइयों को छूती आधुनिकता आपको असमंजस में डाल देगी।
नई-पुरानी संस्कृति के संगम के रूप में उभरता हैदराबाद सदियों से निजामों का प्रिय शहर और मोतियों
के केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है। आज के पर्यटक के लिए हैदराबाद में देखने के लिए इतना कुछ है
कि आप तीन-चार दिन आराम से इसे देखने और इसकी उपलब्धियों को जानने में बिता सकते हैं।
हैदराबाद इस शहर का यह नाम कैसे पड़ा इसके पीछे छिपी है एक प्रेम कहानी। शुरुआत में भाग्यनगर
कहलाने वाले इस शहर का नाम बदल कर हैदराबाद इसलिए हुआ क्योंकि इब्राहिम कुतुबशाह के पुत्र
मुहम्मद कुली का प्रेम मूसी नदी के पार छिछलम गांव की भागमती से हो गया। पिता ने पुत्र की इस
प्रेमयात्रा को सरल बनाने के लिए नदी पर एक पुल बनाया। भागमती के साथ मुहम्मद कुली का निकाह
होते ही भागमती का नाम हैदर महल रखा गया और भाग्यनगर का नाम बदल कर हैदराबाद कर दिया
गया।
हैदराबाद की शान और पर्याय के रूप में चारमिनार इस शहर का सबसे बड़ा आकर्षण केंद्र है। मुहम्मद
कुली ने अपनी बीवी के गांव की जगह इसका निर्माण 1591 में शुरू किया और इन चारों मीनारों को पूरा
बनने में करीब 21 साल लगे। जितने शौकीन यहां के निजाम थे, उनके मंत्री भी उतने ही कलाप्रेमी थे।
सातवें निजाम के प्रधान मंत्री के रूप में नवाब मीर यूसुफ अली खान का शौक अद्भुत कलाकृतियों का
संग्रह था। उनकी जुटाई कलाकृतियों व किताबों को बहुत सुंदर ढंग से सजाकर रखा गया है सालार जंग
संग्रहालय में। हैदराबाद मुख्य शहर से करीब 10 किमी दूर पर गोलकोंडा किला इतिहास का एक ऐसा
पन्ना है, जिसे बार-बार पढ़ने की इच्छा हर पर्यटक के मन में होती है। 800 साल पुराने इस किले के
खंडहरों को देख कर स्थापत्य कला के प्रति कुतुबशाही वंश के राजाओं का रुझान स्पष्ट हो जाता है।
इसमें आठ विशाल द्वार हैं। सात किमी की गोलाई में इस किले का निर्माण ग्रेनाइट से हुआ है। रानी
महल के खंडहरों में शाही हमाम, मस्जिदों, मंदिरों व दीवाने आम के हॉलों का आज भी देखा जा सकता
है। गोलकोंडा में अरब व अफ्रीका के देशों के साथ हीरे व मोतियों का व्यापार होता था। विश्व प्रसिद्ध
हीरा कोहिनूर हीरा यहीं मिला था। यहां की बेशुमार दौलत ने ‘सिंदबाद’ व ‘हीरों की घाटी’ जैसी कहानियों
को जन्म दिया है। पर्यटन विभाग इतिहास के रोमांच को जीवंत बनाने के लिए एक लाइट एंड साउंड
कार्यक्रम भी यहां करता है। हैदराबाद के निजामों की शानों-शौकत और कला के प्रति बेहद प्यार की एक
झलक आपको आखिरी निजाम द्वारा बनवाए गए फलकनुमा महल में भी देखने को मिलेगी। 1884 में
यह महल पूरी तरह तैयार हुआ और इसे बनने में 9 वर्ष लगे। यहां के कालीन, फर्नीचर, मूर्तियां तथा
महल के अंदर की दीवारों पर की गई बेहद उम्दा नक्काशी और चित्रकारी देखने लायक हैं। इस निजाम
का हीरों का संग्रह भी दुनिया के किसी एक व्यक्ति द्वारा किया गया सबसे बड़ा संग्रह माना जाता है।
हैदराबाद की सैर करते-करते आपको यहां के मशहूर व्यंजनों की मदहोश करने वाली खुशबू शहर के किसी
न किसी कोने से आपको जरूर मिल जाएगी और आप अपना रुख उसी ओर करते दिखाई देंगे। जी हां,
हैदराबाद की कच्चे गोश्त की बिरयानी का नाम सुनते ही और खुशबू पाते ही खाने के शौकीन लोगों के
मुंह में पानी आ जाता है। कुछ लोग तो इस खास बिरयानी का जायका लेने खासतौर पर हैदराबाद जाते
हैं। कच्चे गोश्त व चावल को धीमी आंच पर मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है। कई तरह के खुशबूदार
मसालों व केसर के केसरिया रंग से सजी बिरयानी आंध्र प्रदेश के व्यंजनों की सरताज है।
निजामों के इस शहर हैदराबाद में अन्य मुगलई व्यंजन भी हैं, जिनके जायके आपको यहीं मिलेंगे। हांडी
का गोश्त भी मिट्टी की हांडी में रख कर बहुत धीमी आंच पर पकाया जाता है। काली मिर्च का मुर्ग भी
लोकप्रिय व्यंजनों में से एक है। हैदराबादी बिरयानी जैसे 5-6 किस्म की बनाई जाती है, उसी तरह यहां
के लजीज कबाबों का भी जवाब नहीं। जाली के कबाब, सीक व शामी कबाबों का जायका लेने लोग दूर-
दूर से यहां आते हैं और बिरयानी के साथ इन उम्दा कबाबों का पूरा लुत्फ उठाते हैं। मुगलई व्यंजनों के
लिए मशहूर हैदराबाद में कई ऐसे नामी बावर्ची हैं जिनकी पुरानी पीढियों ने निजामों की रसोइयों में काम
किया है।
गोश्त के साथ रुमाली या तंदूरी रोटी खाना आम है, पर खमीरी शीरमल के साथ गोश्त का मजा बिलकुल
अलग होता है। खुशबूदार मसालों में बना भराग भी मुगलई व्यंजनों की सूची में शामिल है। आंध्र प्रदेश
के तेज मिर्च व खट्टे स्वाद वाले व्यंजन अकसर अन्य प्रदेश के लोगों को अंगुली चाटने पर मजबूर कर
देते है। तेज लाल मिर्च, नारियल व इमली का प्रयोग यहां खूब किया जाता है। पुलीहारा यहां की खास
डिश है। जिसमें चावल राई का छौंक, इमली व हरी मिर्च डाली जाती है। शाकाहारी लोगों के लिए भी कई
तरह के स्वाद हैं जिनमें इडली, डोसा, सांबर व नारियल की चटनी के साथ-साथ चूरन के करेले व बघारे
बैंगन विशेष हैं। तिल व पिसी मूंगफली की ग्रेवी में बने चटपटे बघारे बैंगन सिर्फ आंध्र प्रदेश की
खासियत हैं जिनमें छोटे-छोटे गोलाकार बैंगनों का प्रयोग किया जाता है। भोजन में पापड़ भुने हों या तले
व विभिन्न प्रकार की चटनियों के स्वाद से हैदराबादी खाने का मजा दुगना हो जाता है। यहां भी भोजन
का अंत मीठा खाकर ही होता है। सेवई, खीर या खुबानी का मीठा इनमें खास है।
रोजमर्रा की जिंदगी से जब मन उचटने लगता है, तो किसी ऐसी जगह जाने की इच्छा होती है, जहां
कुछ नया, कुछ अलग हो और कुछ दिन परिवार समेत आराम से मौजमस्ती की जा सके। ऐसे में कोई
उस स्वप्नलोक का पता बता दे जहां खुली आंखों से ही जाना संभव हो, तो फिर क्या कहना। हैदराबाद
के निकट रामोजी फिल्मसिटी एक ऐसा ही स्वप्नलोक है। कहने को तो यह फिल्मों की शूटिंग का एक
केंद्र है, लेकिन यह एक ऐसी जगह भी है जो अपने अंदर पर्यटन के कई आयाम समेटे हुए है। यहां
कुदरत के नजारे भी हैं और ऐतिहासिक स्थल भी। मेले जैसा कोलाहल है तो अद्भुत शांति भी। देशी-
विदेशी जगहों पर घूमने के आनंद के साथ ही यहां रहस्य और रोमांच के अनुभव भी हैं। रोमांटिक हॉलीडे
मनाने के लिए यह स्वर्ग जैसा है तो बच्चों के लिए किसी परिलोक से कम नहीं।
देखा जाए तो रामोजी फिल्मसिटी में छुट्टी के दिन बिताने का अपना एक अलग मजा और निराला
अंदाज है। क्योंकि यहां हर कदम पर कुछ न कुछ अनोखा है। कहीं सैलानी दार्जिलिंग के चाय बागान की
सैर का मजा ले रहे होते हैं तो कुछ कदम आगे बढ़ते ही वे स्वयं को किसी महल के सामने खड़ा पाते
हैं।
खजुराहो की तर्ज पर बनी नारी सौंदर्य की तमाम अनुकृतियों को निहार कर जरा आगे बढ़ते हैं। जापान
के किसी उद्यान की खूबसूरती देखकर उसके सम्मोहन से बाहर भी न निकले हों कि स्वयं को लंदन की
किसी मॉडर्न स्ट्रीट में खड़ा पाते हैं। पर्यटन के इतने सारे आयामों का आनंद लेने के लिए न तो किसी
हवाई यात्रा की जरूरत होती है और न बार-बार होटल बदलने का झंझट। बस रामोजी फिल्मसिटी में
पहुंचने की देर है। यहां पहुंचते ही दो हजार एकड़ में फैली सपनों की पूरी दुनिया सामने होती है। चाहें तो
विंटेज लुक वाली बस में बैठ कुछ घंटों में इस दुनिया को आप देख भर सकते हैं। नहीं तो, यहां बने
आरामदायक होटलों में ठहरकर कुछ दिन इस स्वप्नलोक की सैर का भरपूर आनंद ले सकते हैं।
रामोजी फिल्मसिटी का सतरंगी संसार हनीमूनर्स के लिए तो स्वर्ग ही है। क्यों न हो? आखिर उन्हें
लुभाने के लिए यहां दो-चार नहीं, बल्कि पचास से अधिक छोटे बड़े मनमोहक उद्यान हैं। इनमें हर रंग
के फूलों की अभूतपूर्व छटा बिखरी हुई है। ड्रीम वैली पार्क में फव्वारों के इर्द-गिर्द टहलते युगल कुछ ऐसा
ही महसूस करते हैं जैसे सपनों की घाटी में आ पहुंचे हो। अम्ब्रेला गार्डन में तो फूलों से बनी छतरियों की
कतारें हैं। इन पर लाल और सफेद रंग के फूलों की घाटी सी फैली है। एनीमल गार्डन में बहुत से वन्य
प्राणियों की हरी-भरी आकृतियां खड़ी हैं। ऐसा लगता है जैसे किसी अभ्यारण्य में पहुंच गए हों। एक जगह
चाय बागान के दृश्य को साकार किया गया है, जहां दर्शकों को आसाम या दार्जिलिंग में होने का आभास
होता है। जापानी गार्डन में पहुंचकर सैलानियों को ऐसा लगता है जैसे वे जापान ही पहुंच गए हो। इसी
तरह डेजर्ट गार्डन और कोम्बो गार्डन की जीवंत दृश्यावली भी नवविवाहित युगलों का मन मोह लेती है।
मधुपर्व के लिए सैलानियों को जब बेपनाह तनहाई की तलाश होती है तो वे इनमें से किसी उद्यान में
घास पर आ बैठते हैं। असंख्य फूलों से सजा वहां का रूमानी माहौल जैसे उनकी ही प्रतीक्षा में होता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि यहां आए युवा जोड़े सुरक्षित वातावरण में स्वयं को निश्चिंत महसूस करते हैं।
पार्को के आसपास ऊंची-नीची सुंदर सड़कों पर हाथों में हाथ थामे ऐसे घूमते हैं, जैसे किसी पर्वतीय स्थल
का मॉल रोड हो। इन्हीं सड़कों के बीच स्थित एंजेल्स फाउन्टेन भी बेहद आकर्षक है। रोमन कला के इस
सुंदर नमूने को देख प्रेमी युगलों के हृदय में एक अनोखा स्पंदन होता है। इसका कारण है इस पर बनी,
प्रणय निवेदन करते युगलों की मूर्तियां। वहीं पास ही पांच भव्य प्रतिमाओं के रूप में पश्चिमी नारी के
सौंदर्य की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति है। एक ही वस्त्र से अपने कोमल तन को ढांपने का असफल प्रयास करती
नारी पांच अलग-अलग मुद्राओं में उपस्थित है। इस अर्धनग्न सौंदर्य से हालांकि अश्लीलता का भाव तो
नहीं झलकता लेकिन इनकी जीवंतता युवा दिलों को कुछ पल के लिए बांध जरूर लेती है। ऐसी ही
जीवंतता उन विशाल मूर्तियों में भी झलकती है जिन्हें खजुराहो के प्रस्तर प्रतिमा संसार की चुनिंदा
मूर्तियों के अनुरूप ढाला गया है।
परिवार सहित घूमने निकले सैलानियों को अगर लगता है कि यहां पहंुचकर बच्चे बोर होंगे और उन्हें
तंग करेंगे तो उनका यह भ्रम तब एकदम दूर हो जाएगा, जब वे पाएंगे कि रामोजी में तो बच्चों के लिए
एक अद्भुत और अजब-गजब संसार की रचना की गई है। एक ऐसा संसार है दादा जिन का फंडुस्तान।
दुनिया भर के बच्चों के मित्र दादा जिन ने बचपन के रंगों से फंडुस्तान नामक एक नई दुनिया यहां
सजायी है। दरअसल यह एक विशालतम फन पार्क है। जिसका हर फंडा बच्चों ही नहीं बड़ों को भी
प्रभावित करता है। इसके अंदर जाने के लिए पहले दादा जिन के मुंह में प्रवेश करना पड़ता है। अंदर
पहुंचकर सैलानियों को लगता है कि किसी आश्चर्यलोक में आ गए हों। यहां बने टिम्बर लैंड में बच्चे
लकड़ी से बने भूलभुलैया में भटकने का मजा लेते हैं। थ्रिल विला में उनके लिए एक से एक रोमांचक
खेल जुटाए गए हैं। प्रेस्टो में तो खिलौनों का जादुई संसार बाल मन में गुदगुदी सी पैदा करता है।
वंडरविला में फल-सब्जियों की आकृतियां बच्चों को लुभाती हैं। साथ ही पेड़ पर बैठी जांयली बर्ड उन्हें
आकर्षित करती है। क्योंकि बच्चों के पास आते ही यह जादुई पक्षी उन पर वाटर ऑफ जॉय की वर्षा
करने लगती है। उसकी चोंच से गिरती फुहार बच्चों को रोमांचित कर देती है। यहीं निकट ही कोरोला
नामक फूलों की घाटी भी है।
फंडुस्तान में एक बड़ा सा पानी का जहाज भी खड़ा है। जिसके डेक पर खड़े होकर पूरा फंडुस्तान दिखाई
देता है। यहां बच्चे वीडियो गेम का मजा भी ले सकते हैं। डेली एक्सप्रेस एक मिनी ट्रेन रेस्टोरेंट है। इसमें
बच्चों के टेस्ट की हर चीज मिलती है। यहां बोरासोरा नामक एक थ्रिलर पार्क भी है। इसमें रहस्य और
रोमांच की एक हैरतअंगेज दुनिया है। यहां प्रवेश करते ही पर्यटकों के दिल की धड़कन बढ़ने लगती है।
कहीं लगता है कि भीषण आग के बीच से निकल रहे हैं तो कहीं झरने का पानी अपनी ओर गिरता
प्रतीत होता है। कभी सामने भयानक सुरंग नजर आती है तो कभी डरावने दृश्य दिखाई देते हैं। बोरा
सोरा की दिल दहला देने वाली दुनिया से बाहर निकल कर सैलानी चैन की सांस लेते हैं। जादू और
चमत्कारों से भरा फंडुस्तान एक ऐसा वैभवपूर्ण बाल जगत है जो पूरे परिवार के मनोरंजन का केंद्र बन
जाता है।
जिन लोगों के लिए खाना-पीना पर्यटन की मौजमस्ती का खास हिस्सा है। उनके लिए भी रामोजी
फिल्मसिटी में खासी विविधता है। यहां के सितारा होटलों के आलीशान रेस्तराओं में तो हर तरह का फूड
उपलब्ध होता ही है। यूरेका में भी चार अलग-अलग तरह के रेस्तरां हैं। आलमपनाह रेस्तरां में मुगलई
खाने से दस्तरखान सजता है। तो चाणक्य रेस्तरां में स्वादिष्ट व्यंजनों की शाकाहारी थाली लगाई जाती
है। दक्षिण भारतीय भोजन का स्वाद गंगा-जमुना रेस्तरां में लिया जा सकता है तथा गनस्मोक रेस्तरां में
फास्टफूड की धूम रहती है। खानपान की तरह शॉपिंग भी सैलानियों के लिए शगल है। खरीदारी करनी हो
तो यहां मीना बाजार, मगध शॉप, फ्रंटियर लैंड और ब्लैक कैट वेयर हाउस जैसे केंद्र हैं। रामोजी सिटी की
प्रॉप-शॉप में फिल्मी कलाकारों द्वारा प्रयोग की जाने वाली तथा फिल्म निर्माण में काम आने वाली हर
तरह की वस्तु होती है। जिसे कोई भी खरीद सकता है।
फिल्मसिटी में आने वाले पर्यटक फिल्मों के सेट देखने को भी बेहद उत्सुक होते हैं। फिल्मों में अकसर
प्रयोग होने वाले बहुत से सेट तो यहां स्थायी तौर पर लगे हैं। उनके अतिरिक्त कुछ नई फिल्मों के सेट
भी यहां कई दिन तक सुरक्षित रखे जाते हैं। पर्यटकों के कौतूहल को देखते हुए रामोजी फिल्मसिटी द्वारा
संचालित टूर में उन्हें ऐसे कई सेट दिखाए जाते हैं। यही नहीं गाइड द्वारा यह भी बताया जाता है कि
किस फिल्म की शूटिंग यहां हो चुकी है। एयरपोर्ट के सेट पर खड़े होकर लगता ही नहीं यह नकली
एयरपोर्ट लाउंज है। विमान के सेट पर बैठकर भी यही लगता है कि मानो विमान के उड़ने की घोषणा
होने ही वाली है। इस इमारत के दूसरी ओर पहंुच जाएं तो लगता है कि यह कोई बड़ा अस्पताल है।
तीसरी ओर से यह किसी चर्च या कोर्ट के प्रवेशद्वार जैसा है तथा चैथी ओर से यह एक पुस्तकालय का
रूप लिए हुए है। रामोजी फिल्मसिटी का रेलवे स्टेशन भी अपने आप में अनूठा है। क्योंकि जरूरत के
अनुसार इसका नाम भी बदलता रहता है। वैसे यहां टिकटघर, समयसारिणी, प्रतीक्षालय और स्टेशन
मास्टर के केबिन के अलावा रेल इंजन और बोगियां भी हैं। लेकिन प्लेटफॉर्म के नीचे ट्रेन के पहियों पर
जब नजर जाती है तो पता चलता है यह सब बनावटी है।
शूटिंग के दौरान ट्रेन के सरल मूवमेंट के लिए ट्रेन में लोहे के पहियों के स्थान पर टायर लगे होते हैं।
लेकिन फिल्म के पर्दे पर इस बात का आभास भी नहीं होता। यहां का मंदिर भी कुछ ऐसा ही है। जहां
अकसर भगवान बदलते रहते हैं। मंदिर का माहौल भी दोतरफा है। एक तरफ से यह शहर की भव्य सड़क
पर स्थित नजर आता है तो दूसरी ओर किसी वीरान जगह का मंदिर लगता है। दृश्य की मांग के
अनुसार इसकी दिशाओं का प्रयोग होता है।
पर्यटकों को उस समय सबसे ज्यादा ताज्जुब होता है जब वह स्वयं को लंदन की प्रिंसेस स्ट्रीट में खड़ा
पाते हैं। खूबसूरत आधुनिक विला और बंगलों के बीच पहुंचकर किसी पश्चिमी देश के नगर में खड़े होने
का भ्रम होता है। यहां बने ग्रामीण परिवेश, व्यस्त बाजार, हाइवे के ढाबे, सेंट्रल जेल आदि के सेट भी
अत्यंत स्वाभाविक से दिखते हैं। सब कुछ बनावटी होते हुए भी यह सब पर्यटकों को इतना भाता है कि
वे प्रायः हर सेट के सामने खड़े होकर फोटो अवश्य खिंचवाते हैं।
कहां ठहरें
आईटीसी होटल काकतीय शेरेटन एंड टॉवर्स, ताज कृष्णा व रेसिडेंसी, होटल कम्फर्ट इन यहां के स्टार
होटल हैं। इसके अलावा होटल चारमिनार, होटल पर्ल ऑर्फ द ओरियंट में भी ठहरा जा सकता है।
कैसे पहुंचे
भारत के प्रमुख शहरों से हैदराबाद के लिए नियमित उड़ानें हैं। सड़क मार्ग से भी यह पूरे देश से जुड़ा है।
देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से यह रेलमार्ग से भी जुड़ा है। दिल्ली से रेल से हैदराबाद पहुंचने में
करीब 26 घंटे लगते हैं।
कैसे और कब जाएं हैदराबाद
वैसे तो आप वर्षभर में कभी भी हैदराबाद जा सकते हैं परंतु यदि आप यहां की झुलसाती गर्मी से बचना
चाहते हैं तो अप्रैल-मई माह छोड़कर कभी भी हैदराबाद जा सकते हैं.
हवाईअड्डा
शमशाबाद हवाईअड्डा
रेलवे स्टेशन
दक्षिण-पश्चिम रेलवे का मुख्यालय- सिंकदराबाद, नामपल्ली, काचीगुड़ा रेलवे स्टेशन