हर बार छुट्टियों में सैर का ख्याल आते ही लोगों के जेहन में शिमला, मसूरी, नैनीताल की तस्वीर ही उभर कर आती है.. ऐसा इसलिए कि छुट्टियों में पहाड़ की सैर का लुत्फ उठाने के लिए मध्यम-वर्गीय परिवारों को वक्त और बजट के लिहाज से कोई और विकल्प सूझता ही नहीं.. जबकि ऐसा नहीं हैं कई और जगहें भी है जिन्हें देखकर आप स्तब्ध रह जाएंगे और अपनी सुध-बुध खो देंगे लेकिन जानकारी के अभाव में ऐसे पर्यटन स्थल आम पर्यटकों की पहुंच से आज भी कोसो दूर हैं। प्रकृति ने उत्तराखंड को फुर्सत से सजाया संवारा है। सैकड़ों की संख्या में ऐसे पर्यटन स्थल अपनी पहचान बना चुके हैं, जो पर्यटकों के मन मस्तिष्क में छा गए हैं लेकिन कई सुरम्य पर्यटक स्थल ऐसे भी हैं जो हैं तो बहुत सुन्दर पर वो अपनी पहचान नहीं बना पाए हैं। बहुत कम सैलानी ही वहां पहुंच पाते हैं।
ऐसे अछूते सुन्दर स्थलों में एक है पौड़ी। कण्डोलिया नामक पर्वत के उत्तरी ढलान पर स्थित पौड़ी नगर 1650 से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सीढ़ी दार खेतों पर एक कोने से दूसरे कोने तक अर्द्ध वृत्ताकार रूप में फैला हुआ है। पौड़ी गढ़वाल के मुख्यालय के रूप में भी अपनी पहचान रखता है.. सामने एक छोर से दूसरे छोर तक दिखाई देती हिमालय की विस्तृत श्रृंखला के साथ साथ सुहावना मौसम और जलवायु ही यहां की सबसे बड़ी विशेषता है। पौड़ी से हिमालय की जितनी बड़ी रेंज दिखाई देती शायद ही देश के किसी और कोने से इतनी बड़ी रेंज दिखाई देती हो.. चैखम्भा, त्रिशूल, बंदरपूंछ, हाथी पर्वत और गोमुख आदि कई चोटियों को आप यहां से बिना किसी यंत्र की सहायता से साफ देख सकते हैं।
नगर के ऊपरी हिस्सों में ऐसे कई स्थान विद्यमान है जहां से हिमालय की अधिकांश चोटियों के दर्शन तो होते ही हैं साथ ही सूर्यास्त का दृश्य भी पर्यटकों को भाव-विभोर कर देता है। इन्हीं स्थानों के इर्द गिर्द देवदार, बांज, बुरांस और चीड़ का मनोरम जंगल सफारी का निमंत्रण देती है.. नगर से दो किलोमीटर की ऊंचाई पर कण्डोलिया नामक रमणीक स्थान है जिसके चारों ओर देवदार, बांज, बुरांस, और चीड़ के जंगल हैं। यहां पर ब्रिटिश कालीन खूबसूरत बंगले पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं.. कण्डोलिया से ही नागदेव, रांसी, किंकालेश्वर, टेका, रानीगढ़, घुड़दौडी और सितनस्यूं और खिर्सू जैसे पिकनिक स्पाटों का आनन्द लिया जा सकता है। नागदेव प्राचीन मंदिर धार्मिक स्थल है ।यहां पर देवदार के घने वृक्षों के बीच नाग देवता का प्राचीन मंदिर है..जहां इक्के दुक्के सैलानी ही पहुंच पाते हैं। कण्डोलिसा के दूसरी तरफ रांसी नामक स्थान है। इस स्थान तक पहुंचने के लिए जंगल के बीचों-बीच पक्का मार्ग है। यहां पर एशिया में सबसे ऊंचाई वाला खेल का मैदान है.. जिसके चारों ओर वृक्षों का सौंदर्य शीतलता प्रदान करता रहता है। रांसी से छोटी सी पगडंडी जंगल से होकर किंकालेश्वर मंदिर की ओर जाती है..मंदिर तक जाने वाले रास्ते के बीच में पड़ने वाले घास के छोटे-छोटे मैदान हैं। चलते चलते थकान मिटाने के लिए इन मैदानों पर बैठकर सामने दिखाई देते गांव किसी भी कवि को कविता और किसी भी चित्रकार को तूलिका उठाने के लिए मजबूर कर देते हैं। मंदिर में शिवाजी की प्राचीन मूर्ति है श्रीनगर घाटी में बहती अलनंदा नदी के दृश्य को मंदिर के प्रांगण से साफ देखा जा सकता है.।
विस्मयकारी सौन्दर्य
पौड़ी से मात्र चैदह किलोमीटर की दूरी पर खिर्सू नामक पर्यटन स्थल है। इस स्थान तक पहुंचने वाला मार्ग भी अत्यन्त लुभावना और रोमांच पैदा करने वाला है। मार्ग पर पड़ने वाला सारा वन बांज और बुरांस के फूलों से भरा हुआ है मार्च अप्रैल के महीने में ये सारा इलाका बुरांस के फूलों से खिला रहता है। पौड़ी से आदवाणी तक मार्ग अत्यन्त ही खूबसूरत है ।स्फूर्तिदायक घने जंगलों के बीच से गुजरते हुए ये मार्ग वाकई विश्व का अत्यन्त ही खूबसूरत मार्ग है। इसके आस पास पड़ने वाले कई स्थल फोटोग्राफी के लिए स्वर्ग कहे जा सकते हैं। इसके अलावा वर्डवाचिंग के लिए भी ये स्थान काफी उपयुक्त है यहीं से एक किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद रानीगढ़ नामक स्थान आता है यहां हरे भरे घास के मैदान पर्यटकों को खूब भाते हैं यहां से मसूरी के भी दर्शन किए जा सकते हैं। घने जंगल के बीच में ये जगह वाकई विस्मयकारी है.पौड़ी से अदवाणी जाते हुए बीच में एक स्थान पड़ता है ठेका ये छोटी सी चट्टी है यहां पर खड़े होकर नई टिहरी के दर्शन किए जा सकते हैं।
अदवाणी तक जाते हुए सामने दिखाई देता गगवाड़स्यू घाटी का दृश्य पर्यटकों को बरबस की आकर्षित करता है। घाटी में पसरे सीढ़ी नुमा खेतों का सौंदर्य देखते ही बनता है..हालांकि इस घाटी में पर्यटन विभाग ने झील बनाने की योजना बनाई थी लेकिन वो कहां खो गई ये तो पर्यटन महकमा ही जाने..पौड़ी से घुड़दौड़ी तक का सफर साइकिलिंग और घुड़सवारी के लिए काफी उपयुक्त है यहां पर गोविन्द-बल्लभपंत इंजीनियरिंग कालेज भी है छोटी-छोटी पहाड़ियों का समीपता से अवलोकन यहां की मुख्य विशेषता है जिसे देखकर कोई भी पर्यटक ठगा सा रह जाता है..पौड़ी की एक खासियत ये भी है कि यहां से अलकनंदा घाटी में बसा श्रीनगर, ब्रिटिशकालीन छावनी लैसडाउन, पंचप्रयागों में एक प्रयाग देव प्रयाग आजू बाजू ही हैं पौड़ी पहुंचकर इन स्थानों पर भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
इतना सब होने के बाद भी ये नगर आज तक पर्यटकों को खींचने में नाकामयाब रहा है इक्के दुक्के सैलानी यहां रुख करते हैं। गढ़वाल विश्व विद्यालय पौड़ी परिसर में पर्यटन विभाग के प्रवक्ता आशुतोष नेगी का कहना है इसके पीछे सरकार की अनियोजित पर्यटन नीति जिम्मेदार है। उनका कहना है कि पौड़ी न केवल गर्मियों के लिए मुफीद हिल स्टेशन है। बल्कि जाड़ों में भी यहां पसरी खुशनुमा धूप पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र हो सकती है। बशर्ते शासन प्रशासन इस ओर ध्यान दें। यही वजह है रॉक्लाइंबिंग, पैराग्लाइडिंग, स्केटिग, घुड़सवारी, साइकिलिंग, जंगल सफारी जैसे साहसिक खेलों की अपार संभावनाएं होने के बावजूद भी इन खेलों को यहां पर ठीक ढंग से विकसित नहीं किया गया..हालांकि यदि आप अबकी बार किसी हिल स्टेशन में जाने का मन बना रहे हैं तो आपकी जेब के अनुसार पौड़ी नगर आपके इंतजार में बांहें फैलाए खड़ा है।
कैसे पहुंचे
पौड़ी के लिए दिल्ली से कोटद्वार अथवा ऋषिकेश से रास्ता है..और बहुतायात में बसें और टेक्सियां उपलब्ध हैं। कोटद्वार और ऋषिकेश दोनों ही सीधे रेल और बस मार्ग से जुड़े हैं इन दोनो स्थानों से पौड़ी की तकरीबन दूरी सौ किलोमीटर के आसपास है..पौड़ी में ठहरने और खाने की सुविधाएं अच्छी हैं होटल सस्ते और साफ सुथरे हैं.यहां से हर जगह के लिए यातायात के बेहतर साधन उपलब्ध हैं। आवास के लिए यहां पर सरकारी बंगले और साफ सुथरे छोटे मोटे होटल उपलब्ध हैं..निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट हैं.. यहां से बस द्वारा पौड़ी की दूरी ऋषिकेश होते हुए करीब 155 किलोमीटर है।
समय और सीजन
पौड़ी में आप हर सीजन में पहुंच सकते हैं..जाड़ों में जब मैदानी भागों में ठिठुरन होती है..यहां खिली चटक धूप पर्यटकों के लिए आकर्षण का काम करती है। गर्मियों में तो यहां की शीतलता आने वाले सैलानियों को जैसे नवजीवन का अहसास कराती है। ऊनी कपड़े हर समय साथ हों तो बेहतर है।