मध्य प्रदेश का ख्यातिप्राप्त शहर ग्वालियर कई यादों को समेटे हुए है। इस शहर को इतिहास और आधुनिकता का अनोखा संगम भी कह सकते हैं। यहां के दर्शनीय स्थलों की बात करें तो सबसे पहले सूर्य मंदिर का नाम आता है जो देश के अन्य मंदिरों के लिए एक आदर्श है। यह मंदिर पंडे−पुजारियों और भिखारियों के आतंक से तो मुक्त है ही साथ ही अन्य जगहों की अपेक्षा यहां सफाई पर भी अत्यधिक ध्यान दिया गया है। यह सूर्य मंदिर उड़ीसा के कोणार्क मंदिर की शैली पर बना है। लाल पत्थर से निर्मित इस भव्य मंदिर के चारों ओर मनोरम उद्यान भी हैं।
भारत के प्रमुख किलों में गिना जाने वाला ग्वालियर का किला राजा मानसिंह ने गूजरी रानी के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए बनवाया था। बलुए पत्थर की पहाड़ी पर निर्मित इस किले में छह महल हैं जिनमें से मान मंदिर और मृगनयनी का गूजरी महल प्रमुख हैं। 15वीं सदी में बना यह किला भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है।
रानी झांसी का स्मारक भी देखने योग्य है। इस स्मारक में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की नायिका रानी लक्ष्मीबाई की विशाल अश्वारूढ़ प्रतिमा तथा समाधि है। यह किला रानी का बलिदान स्थल भी है। मुहम्मद गौस तथा तानसेन का मकबरा भी आप देखने जा सकते हैं। गुरू−शिष्य परम्परा के प्रतीक इस स्थल में मुगल शैली में निर्मित तानसेन के प्रारम्भिक गुरू मुहम्मद गौस का मकबरा है। इसी विशाल और भव्य मकबरे के अहाते में संगीत सम्राट तानसेन की क्रब भी है।
आधुनिक इटालियन वास्तुकला शैली के अनुपम उदाहरण जयविलास महल में जहां एक ओर बेशकीमती चीजें नुमाइश के लिए रखी गई हैं, वहीं दूसरी ओर विशाल फानूसों की चकाचैंध रोशनी में महल की सुनहरी पच्चीकारी और रंगसज्जा देखते ही बनती है। नुमाइश के लिए रखी गई चीजों में बड़ा कालीन तथा चांदी का पलंग, छत्र और रेल दर्शकों को खासी आकर्षित करती है।
ग्वालियर में सास−बहू का मंदिर भी है। मिस्र के पिरामिड़ों की आकृति वाले ये दोनों मंदिर 1093 में बने थे। एक−दूसरे के बिल्कुल पास बने इन मंदिरों में नक्काशीदार खंभे तथा बड़ी−बड़ी खिड़कियां लगी हैं। इन मंदिरों में जो सबसे अजीब चीज देखने को मिलती है वह यह कि बहू का मंदिर सास के मंदिर से बड़ा है। दोनों ही मंदिर मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु से संबंधित हैं।
सास−बहू के मंदिर के पास ही स्थित है तेली का मंदिर। यह मंदिर भी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह द्रविड़ शैली में बना है। शायद इसका निर्माण तेलंगाना से किसी प्रकार संबंधित रहा है। यही वजह है कि इस को तेली का मंदिर कहते हैं।
ग्वालियर से लगभग 60 किलोमीटर दूर दक्षिण में रिहंद तथा पार्वती नदियों के मिलान बिंदु पर स्थित गांव पवाया भी देखने योग्य है। इसका पूर्व नाम पद्मावती था जो तीन−चार शताब्दी में नाग राजाओं की राजधानी थी। संस्कृत के उद्भट कवि भवभूति ने अपने काव्य में इसी पद्मावत का चित्रमय वर्णन किया है। पवाया में पहली, दूसरी व तीसरी शताब्दी तथा उसके बाद के भी तमाम भग्नावशेष देखे जा सकते हैं।
ग्वालियर के पास ही स्थित चंदेरी भी अपने मध्यकालीन निर्माणों के लिए प्रसिद्ध है। यहां का किला, कुशक महल, मंचमनगर और सिंगपुर के महल आदि दर्शनीय हैं। ग्वालियर संभाग ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि आपके पास पर्याप्त समय है तो आप ग्वालियर के आसपास के कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थानों की सैर भी कर सकते हैं।