लखनऊ। बाबरी मस्जिद को छह दिसंबर को कारसेवकों ने ढहा दिया था। इस बुधवार छह दिसंबर को इस घटना के 25 साल पूरे हो जाएंगे। इससे ठीक एक दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय में एक बार फिर यह मामला सुनवाई के लिए पहुंच चुका है।
अंतिम सुनवाई के बाद इस बात पर फैसला होगा कि जमीन पर मालिकाना हक किसका होगा। जानते हैं इस केस से जुड़ी पांच अहम बातों के बारे में…
- यह मुकदमा इस बारे में है कि जहां राम मंदिर निर्माण की बात हो रही है, उस पर मालिकाना हक किसका है। इस मामले की शुरूआत 1949 में उस वक्त हुई थी, जब 16वीं सदी में बनाई गई बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखी गईं थीं, जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया था और स्थानीय प्रशासन ने परिसर को सील कर दिया था।
- इस मामले में तीन पक्षकार रामजन्मभूमि मंदिर न्यास, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड हैं। अयोध्या के रामकोट इलाके की 2.77 एकड़ जमीन को लेकर विवाद है। इस भूमि में वह हिस्सा भी शामिल है, जहां छह दिसंबर 1992 तक बाबरी मस्जिद थी।
- केंद्र सरकार ने मस्जिद में रखी गई मूर्तियों को हटाने पर विचार शुरू किया, तभी गोपाल सिंह विशारद ने एक याचिका दायर की जिसके बाद स्थानीय अदालत ने मूर्तियों को हटाने पर रोक लगा दी। इसके बाद 1955 में महंत रामचंद्र परमहंस ने, 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने और 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने याचिका दायर की। आगे चलकर ऐसे सभी मुकदमों को एक मुकदमा बना दिया गया।
- सितंबर 2010 में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ जमीन तीनों पक्षों- मंदिर न्यास, वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के बीच बांट दी। मगर, ये फैसला पक्षों को मंजूर नहीं हुआ। हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस फैसले को चुनौती दी। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जहां दैनिक स्तर पर इसकी सुनवाई करने का फैसला किया गया है।
- इस मामले का बाबरी मस्जिद विध्वंस से कोई सीधा संबंध नहीं है। बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच करने वाले जस्टिस लिब्रहान आयोग ने साल 2009 में पेश की रिपोर्ट में कहा था कि मस्जिद को गहरी साजिश के तहत गिराया गया था। इसके बाद लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित कई लोगों के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा दर्ज किया गया था।