हिमालय पर्वत से भी ऊंचा था बछेंद्री पाल का जज्बा

asiakhabar.com | May 24, 2023 | 12:44 pm IST

नई दिल्ली। एक कहावत है कि ‘अगर इंसान ठान ले, कोई भी चीज नामुमकिन नहीं है।’ इस कहावत को बछेंद्री पाल ने सच कर दिखाया। देश की पहली और दुनिया की पांचवीं भारतीय महिला बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट फतह कर महिलाओं के लिए मिशाल पेश करने का काम किया। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 24 मई को बछेंद्री पाल का जन्म हुआ था। आज वह अपना 69वां जन्मदिन मना रही हैं। बता दें कि बछेंद्री पाल ने न सिर्फ अपने परिवार का बल्कि अपने देश का नाम भी रोशन किया है। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर बछेंद्री पाल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…
जन्म और शिक्षा
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के नकुरी गांव में 24 मई 1954 को बछेंद्री पाल का जन्म हुआ था। बता दें कि वह अपने गांव की पहली ऐसी महिला थीं, जिन्होंने ग्रेजुएशन पास किया था। बछेंद्री ने बीए में ग्रेजुएशन की और संस्कृत से मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके बाद आगे की पढ़ाई में उन्होंने बीएड कंप्लीट किया। हालांकि पर्वतारोही बनने के लिए उनके परिवार ने बछेंद्री को सपोर्ट नहीं किया था। क्योंकि परिवार के लोग चाहते थे कि वह एक शिक्षिका बनें।
बछेंद्री पाल के बचपन का एक किस्सा बहुत फेमस हुआ था। बताया जाता है कि उन्होंने सिर्फ 12 साल की उम्र में अपनी स्कूल की सहेलियों के साथ पिकनिक के दौरान 13,123 फीट की चोटी पर चढ़ाई की थी। हालांकि शायद उस दौरान उन्हें यह एहसास भी नहीं होगा कि एक दिन देश और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को फतहकर पूरी दुनिया में अपने देश का नाम रोशन करेंगी।
आर्थिक तंगी में गुजरा बचपन
बता दें कि जिस गांव में वह जन्मी थीं, वहां पर लड़कियों की शिक्षा को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती थी। वह एक गरीब किसान के परिवार से ताल्लुक रखती थीं। कई बार उनको सिलाई करके गुजारा भी करना पड़ा था। बछेंद्री घर चलाने के लिए जंगलों से लकड़ियां और घास ले जाने का काम भी करती थीं। गांव में सबसे अधिक पढ़ा-लिखा होने के बाद भी उनको कहीं नौकरी नहीं मिली। जिसके बाद उन्होंने माउंटनियरिंग में अपना करियर बनाने के लिए ठान लिया। हालांकि इस दौरान उनको परिवार का विरोध भी झेलना पड़ा था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
बर्थडे पर खुद को दिया गिफ्ट
बता दें न सिर्फ बछेंद्री पाल बल्कि भारत भी 23 मई 1984 का वह दिन नहीं भूल सकता है। भारत ने एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए साल 1984 में एक अभियान दल बनाया गया। इस दल का ‘एवरेस्ट-84’ नाम रखा गया। इस दल में बछेंद्री पाल समेत 5 महिलाएं व 11 पुरुष शामिल थे। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा और अहम मौका था। जिसका वह काफी लंबे समय से इंतजार कर रही थीं।
अपने जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले यानी की 23 मई 1984 को उन्होंने माउंट एवेरस्ट की चोटी पर फतह हासिल की और वहां पर भारत का झंडा लहराया। इस दौरान खराब मौसम, खड़ी चढ़ाई और तूफान भी बछेंद्री के हौसले को तोड़ नहीं पाए। आपको जानकर हैरानी होगी कि उनके साथ गए अन्य महिला और पुरुषों में सिर्फ बछेंद्री अकेली एवरेस्ट की चोटी तक पहुंच पाई थीं। इस तरह से बछेंद्री ने अपने जन्मदिन से एक दिन पहले इतिहास रच दिया था।
टाटा समूह ने बुलाया जमशेदपुर
एवरेस्ट की चोटी पर फतह हासिल करने के बाद लोगों की जुबां पर सिर्फ बछेंद्री पाल का नाम था। वहीं इतने बड़े गौरव को भारत के नाम करने के बाद भी उनको अपना करियर बनाने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। तभी टाटा समूह के जेआरडी टाटा ने उनको जमशेदपुर आने के लिए आमंत्रित किया। इस दौरान जेआरडी टाटा ने बछेंद्री को अकादमी बनाकर अन्य युवाओं को प्रशिक्षण देने के लिए कहा। बता दें कि बछेंद्री पाल ने अब तक 4500 से अधिक पर्वतारोहियों को माउंट एवरेस्ट फतह करने का प्रशिक्षण देने का काम किया। इस दौरान वह कई अभियानों जैसे गंगा बचाओ और महिला सशक्तीकरण आदि से भी जुड़ीं।
सम्मान
साल 1984 में बछेंद्री पाल को पद्मश्री, साल 1986 में अर्जुन पुरस्कार, साल 2019 में पद्मभूषण से नवाजा गया। वहीं बछेंद्री पाल को पर्वतारोहण के क्षेत्र में कई मेडल और अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।


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