नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आठ राज्यों मे हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर दायर की गई याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा कि वह नेशनल माइनोरिटी कमीशन को ज्ञापन दें।
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय कोर्ट से मांग की थी कि आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, ऐसे में इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यकों वाले अधिकार मिलने चाहिए। इन राज्यों में लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब शामिल हैं।
याचिकाकर्ता ने इस याचिका में 2011 की जनगणना को आधार बनाया गया है जिसमें इन राज्यों में हिंदुओं की तादाद कम हुई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 23 अक्टूबर 1993 में नोटिफिकेशन जारी कर मुस्लिम समेत अन्य समुदाय के लोगों को अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया था।
उपाध्याय ने कहा कि 2011 के जनगणना के आंकड़ों की मानें तो देश के 8 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें इन राज्यों में यह दर्जा अभी तक नहीं मिला है।
2011 में हुई जनगणना के मुताबिक- लक्षद्वीप में 2.5 फीसद, मिजोरम में 2.75 फीसद, नगालैंड में 8.75 फीसद, मेघालय में 11.53 फीसद, जम्मू कश्मीर में 28.44 फीसद, अरुणाचल प्रदेश में 29 फीसद, मणिपुर में 31.39 फीसद और पंजाब में 38.4 फीसद हिंदू हैं। इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिलने से उन्हें सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।
अपील में कहा गया था कि अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिलने से इन राज्यों में हिंदुओं को बुनियादी अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा है। उन्होंने कहा था कि लक्षद्वीप में मुस्लिम 96.20 फीसद, असम में 34.30 फीसद, वेस्ट बंगाल में 27.5 फीसद और केरल में 26.6 फीसद हैं। यहां उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है। मगर, जिन आठ राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है, वहां उन्हें में अल्पसंख्यक क्यों नहीं माना जाता?