स्वतंत्र, जिम्मेदार प्रेस सत्ता को जवाबदेह बना सकता है: अंसारी

asiakhabar.com | June 13, 2017 | 3:33 pm IST

बेंगलुरु, 13 जून। देश में प्रेस की भूमिका तथा आजादी पर छिड़ी बहस के बीच उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सोमवार को कहा कि आज के पोस्ट ट्रुथ और अल्टर्नेटिव फैक्ट्स के दौर में केवल एक स्वतंत्र तथा जिम्मेदार मीडिया सत्ता को जवाबदेह बना सकता है। कांग्रेस संचालित नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र के रिलॉन्च के मौके पर अंसारी ने यहां कहा कि देश का संविधान प्रेस तथा समाज के सुचारू रूप से काम करने के लिए राज्य का हस्तक्षेप सुनिश्चित करता है, लेकिन इस तरह का हस्तक्षेप केवल जनता के हित में होना चाहिए। समाचार पत्र के प्रिंट तथा ऑनलाइन संस्करण को लॉन्च करते हुए उन्होंने कहा, हमारे जैसे खुले समाज में हमें सत्ता को जवाबदेह बनाने के लिए जिम्मेदार प्रेस की जरूरत है। इस समाचार पत्र की शुरुआत पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1938 में की थी और इसका संपादन किया था। यह समाचार पत्र मौजूदा दौर में कानूनी पचड़ों में फंसा हुआ है। आरोप है कि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी व राहुव गांधी ने यंग इंडिया नाम की एक कंपनी बनाकर कांग्रेस के कोष से समाचार पत्र के कर्ज को खरीद लिया और समाचार पत्र की पांच हजार करोड़ की संपत्ति को गैर कानूनी रूप से हासिल कर लिया। कांग्रेस ने इन आरोपों का अदालत में जोरदार खंडन किया है। अंसारी की ये टिप्पणियां ऐसे वक्त में आई हैं, जब पत्रकार प्रेस की आजादी की सुरक्षा के लिए आंदोलन चला रहे हैं, जिन्होंने आरोप लगाया है कि दिग्गज पत्रकार तथा एनडीटीवी के संस्थापक प्रणय रॉय के आवास परिसर पर पिछले सप्ताह केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के छापे के बाद प्रेस गंभीर दबाव में है। उप राष्ट्रपति ने कहा कि राज्य का कर्तव्य स्वतंत्र मीडिया की सुरक्षा करना है, जो न केवल लाभकारी है, बल्कि एक स्वतंत्र समाज की जरूरत भी है। उन्होंने कहा, अगर प्रेस की आजादी पर हमला होता है, तो इसके परिणाम स्वरूप नागरिकों के अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे। अंसारी ने कहा कि संविधान प्रेस की स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है और केवल भारत की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, रक्षा, अदालत की अवमानना, मानहानि तथा किसी अपराध के लिए उकसाने के संदर्भ में उस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के एक विचार का हवाला दिया, जिसके मुताबिक, अभिव्यक्ति व प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र का प्रतिज्ञापत्र है क्योंकि सार्वजनिक आलोचना इसके संस्थानों के कार्य संचालन के लिए जरूरी है।


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