नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने गुरुवार को व्यर्थ के मामलों से न्यायपालिका पर बढ़ते बोझ के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि किसी को अदालत तभी आना चाहिए जब उसे सही अर्थों में अनदेखी महसूस हो रही हो।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नाल्सा) द्वारा आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने देशभर के हाई कोर्टों द्वारा शनिवार को भी काम करने और एक दशक से अधिक समय से लंबित 2100 से अधिक आपराधिक अपीलों को निपटाने की सराहना की।
उन्होंने कहा, “दस साल से ज्यादा पुराने मामले थे और मैंने सभी हाई कोर्टों को पत्र लिखकर ऐसी आपराधिक अपीलों पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें निपटने को कहा था।” प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि नाल्सा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई अपने आप को वंचित महसूस न करे।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और नाल्सा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि जीडीपी दर के बड़े-बड़े आंकड़ों का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक वे वंचितों की भलाई में तब्दील न हों। इसी तरह के विचार सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी (एससीएलएससी) के अध्यक्ष जस्टिस एमबी लोकुर ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में लोग कानूनी सहायता सेवाओं से अनभिज्ञ हैं। उन्होंने कैदियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने और नाल्सा की उन तक पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया।
गरीबों को मुफ्त कानूनी मदद हो जज बनने की पूर्व शर्त : रविशंकर
केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद भी समारोह में मौजूद थे। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब किसी वकील के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के लिए उसके द्वारा गरीबों को दी गई मुफ्त कानूनी मदद को अहम पूर्व शर्त बनाने की संभावना पर विचार किया जाए।