नई दिल्ली।दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि हमारे दिल्ली शहर की संस्कृति सबको अपने में मिलाने की है और यह सबको अपना बनाने की खासियत रखती है। उस खासियत को आगे बढ़ाने वाले नागरिक तैयार करने का काम फ़ैकल्टि ऑफ आर्ट्स का है। कुलपति दिल्ली विश्वविद्यालय की फ़ैकल्टि ऑफ आर्ट्स के शताब्दी समारोह के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ डीयू हिन्दी विभाग के सेवानिवृत वयोवृद्ध प्रोफेसर राम दर्श मिश्रा और आईजीएनसीए के सदस्यसचिव प्रो. सच्चिदानंद जोशी विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे।
प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि 100 वर्ष में बहुत अच्छा काम हुआ है, लेकिन अगले 25 वर्ष बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकल्प लिया है कि अगले 25 वर्षों में भारत विकसित देश होगा। दिल्ली विश्वविद्यालय भी इसे लेकर भारत सरकार की रणनीति को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीतिक योजना तैयार कर रहा है कि अगले 25 वर्षों में हमें क्या करना है। देश को कैसे वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, इतिहासकार और नागरिक चाहियें और हमारी उसमें क्या भूमिका हो सकती है। उन्होने फ़ैकल्टि ऑफ आर्ट्स से आह्वान किया कि डीयू की इस रणनीतिक योजना को सभी शिक्षक और विभागाध्यक्ष पढ़ें और उसके बाद अपनी भी रणनीतिक योजना तैयार करें।
कुलपति ने कहा कि हम जिस चीज को प्रोत्साहित करेंगे तो वही पनपेगी। इसलिए शिक्षकों को विद्यार्थियों की अच्छाई को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज 21वीं सदी का भारत है, जिसे विकसित राष्ट्र बनाना है। अब नारे लगाते शिक्षक अच्छे नहीं लगते। इससे शिक्षकों की विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है और विद्यार्थियों के मनों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होने कहा कि आज 21वीं सदी का भारत है तो हमें नए उपकरणों को खोजने की जरूरत है जिससे अच्छा नेतृत्व तैयार होगा। कुलपति ने कहा कि समाज और देश हमसे यह अपेक्षा रखता है और हमें उस अपेक्षा पर खरे उतरना है। उन्होंने फ़ैकल्टि ऑफ आर्ट्स से जुड़े शिक्षकों से आह्वान किया कि वे मन और मन की संवेदनाओं पर काम करें। इससे देश के हैप्पीनेस इंडेक्स में सुधार होगा। उन्होने कहा कि अगले 25 वर्षों में देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हमें वो काम भी करने होंगे जो करिकुलम फ्रेमवर्क में नहीं हैं, लेकिन जरूरी हैं।
उद्घाटन समारोह में बतौर विशिष्ट अतिथि बोलते हुए आईजीएनसीए के सदस्य सचिव प्रो. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय के लिए यह भी गर्व की बात होती है कि उसने कैसी पीढ़ियाँ निर्मित की हैं। उन्होने देश में इतिहास की शिक्षा की स्थिति को लेकर भी चिंता जताते हुए कहा कि आज देश आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम देश का सही इतिहास जानने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम 75 वर्षों में इतिहास की क्रोनोलोजी विकसित नहीं कर पाए। उन्होने डीयू के फ़ैकल्टि ऑफ आर्ट्स के शिक्षकों से आह्वान किया इस बारे में सोचें क्योंकि आपकी सोच की दिशा से पूरे देश को मार्गदर्शन प्राप्त होगा। उन्होने कहा कि दुनिया में भारतीय संस्कृति भारत की पहचान है और वह संस्कृति भारत के समाज, शासन व्यवस्था, दर्शन, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र में दिखती है। इन सब चीजों को सुदृढ़ करने की योजना बनाई जानी चाहिए। यह शताब्दी वर्ष एक अवसर है नई ऊर्जा, नए सपनों और नई आकांक्षाओं के साथ आगे ले जाने का। प्रो. जोशी ने कहा कि यह अवसर पूरे देश के लिए कला शिक्षा का एक नया प्रस्थान बिन्दु हो सकता है। उनके साथ ही विशिष्ट अतिथि के तौर पर पहुंचे डीयू हिन्दी विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर राम दर्श मिश्रा ने भी इस अवसर पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने अपने पुराने संस्मरणों को याद करते हुए बताया कि वह 1990 में हिन्दी विभाग से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होने अपने जीवन दर्शन के आधार पर बताया कि किसी भी कवि, कहानीकार अथवा लेखक के लिए अनुभव बड़ी चीज है। बिना अनुभव के कल्पनाओं के आधार पर सफल लेखन नहीं हो सकता। समारोह के आरंभ में फ़ैकल्टि ऑफ आर्ट्स के डीन प्रो. अमितवा चक्रबोर्ती ने अतिथियों का स्वागत किया और समारोह के अंत में प्रो. राज कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता, सीनियर प्रोफेसर चंद्र शेखर और डीयू कल्चर काउंसिल के डीन प्रो. रवीन्द्र कुमार आदि सहित अनेकों विभागों के विभागाध्यक्ष, अधिकारी, शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।