नई दिल्ली। राफेल सौदे का बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब इस बात का खुलासा हुआ है कि यूपीए के शासनकाल में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने पूरी प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ी का अहसास होने पर सौदे की समीक्षा का आदेश दिया था। संप्रग शासनकाल में 126 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का सौदा अंतिम चरण में पहुंचने के बाद रोक दिया गया था।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने शनिवार को उक्त दावा करते हुए कहा कि एंटनी की आशंकाएं वास्तविक रही होंगी और उनके पास इस मामले में हस्तक्षेप के सही कारण होंगे।
उस समय रक्षा मंत्री से शुरुआती मंजूरी मिलने के बाद कीमतें तय करने वाली समिति सौदे की पड़ताल कर रही थी। इससे पहले रक्षा मंत्रालय ने भी कहा था कि 2012 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ने अभूतपूर्व तरीके से अपने व्यक्तिगत विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए 126 मध्यम बहुउद्देश्यीय युद्धक विमानों की खरीद प्रक्रिया को रोक दिया था।
यूरोफाइटर टाइफून ने कम की थी कीमत-
सूत्रों ने यह भी बताया कि राफेल को एल1 वेंडर घोषित किए जाने के बाद यूरोफाइटर टाइफून ने अपनी कीमतें 25 फीसद कम कर दी थीं। प्रक्रिया के तहत निविदा के विजेता की घोषणा के बाद ऐसे प्रस्ताव कतई स्वीकार्य नहीं होते। ऐसा नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि 2007 में तत्कालीन संप्रग सरकार ने 126 मध्यम बहुउद्देश्यीय युद्धक विमानों की खरीद के लिए टेंडर जारी किए थे। वार्ताओं के बाद राफेल और यूरोफाइटर टाइफून ही प्रतिस्पर्धा में बचे थे। यह पूछे जाने पर कि वर्तमान राजग सरकार ने यूरोफाइटर टाइफून का चयन क्यों नहीं किया जो 25 फीसद कम कीमत का प्रस्ताव दे रहा था। सूत्रों ने कहा, यूरोफाइटर के निर्माण में कई यूरोपीय देश शामिल हैं, इसीलिए अंतरसरकारी सौदे के लिए फ्रांस को प्राथमिकता दी गई।
कांग्रेस का राफेल की कीमत ज्यादा तय करने का आरोप-
कांग्रेस का कहना है कि नवंबर 2017 में कतर ने भी 12 राफेल लड़ाकू विमान खरीदे थे और प्रत्येक विमान की कीमत करीब 695 करोड़ रुपये आई थी। जबकि राजग सरकार ने करीब 1,570 करोड़ रुपये प्रति विमान की कीमत पर सौदा किया है।
इस पर सूत्रों का कहना था कि इस तरह कीमतों की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि लड़ाकू विमानों की कीमतें विमान के साथ आने वाली हथियार प्रणालियों पर निर्भर होती है।