नई दिल्ली। भारत को एक बार फिर से विश्व गुरु बनाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार अनेक पहल कर रही है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि शिक्षा क्षेत्र पर सरकार कई दक्षिण एशियाई और ब्रिक्स देशों से ज्यादा खर्च कर रही है। केंद्र सरकार की पहल से प्राइमरी और प्रारंभिक दोनों स्तर के स्कूलों में शिक्षा में काफी सुधार हुआ है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत शिक्षा पर कई दक्षिण एशियाई और ब्रिक्स देशों से ज्यादा खर्च करता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 2016 में अपनी जीडीपी का 4.38 फीसदी यानी चीन (4.22 फीसदी), रूस (3.82 फीसदी), अफगानिस्तान (4.21 फीसदी), श्रीलंका (3.48 फीसदी), बांग्लादेश (1.54 फीसदी) और पाकिस्तान (2.49 फीसदी) से अधिक खर्च किया है। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक स्कूली शिक्षा पर 2014-15 में लगभग 45 हजार 722 करोड़ रुपये खर्च किया गया था, जिसे साल 2018-19 में बढ़ाकर 50 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है। देश में स्कूली शिक्षा ज्यादातर तीन योजनाओं के माध्यम से कवर की गई थी। इसमें सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और शिक्षकों की शिक्षा शामिल है। सरकार ने अप्रैल 2018 में तीनों योजनाओं को एक नई योजना में शामिल कर दिया, जिसे समग्र शिक्षा कहा जाता है। हालांकि इन उपलब्धियों के बावजूद कई चुनौतियां आज भी कायम हैं। गुणवत्ता के मामले में भारत ने प्रदर्शन खराब रहा है। वर्ष 2016 में दक्षिण एशिया में शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में अफगानिस्तान के बाद भारत का स्कोर सबसे कम था। शिक्षा की उपलब्धता की चुनौती के बाद अब उत्तम शिक्षण और समानता को सुनिश्चित करने की जरूरत है।