सत्ता पर काबिज होने के लिए सियासत में षड्यंत्र और कूटनीति की चालें हमेशा चली जाती हैं। ऐसा अगर देश के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जैसे ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ व देशभक्त नेता के साथ हो, तो वाकई सोचने वाली बात है। उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए षड्यंत्र रचे गए थे।
किस्सा कुछ यूं है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अचानक मृत्यु हो गई थी। इससे प्रधानमंत्री पद खाली हो गया। कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं में इस बात की सुगबुगाहट तेज हो गई कि अगला प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए? एक धड़ा इंदिरा गांधी को तो दूसरा खेमा लालबहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनते देखना चाहता था।
इंदिरा खेमे ने जोर-आजमाइश में कोर-कसर नहीं छोड़ी। तत्कालीन नेता मोरारजी देसाई आत्मकथा में लिखते हैं : एक दिन द्वारिकाप्रसाद मिश्र मुझसे मिलने आए और कहा कि आपको इंदिराजी को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखना चाहिए। मैंने कहा – ‘मैं ऐसा प्रस्ताव क्यों रखूं?’ इस पर मिश्र बोले- ‘क्योंकि यह कूटनीतिक चाल है कि आप इंदिराजी का नाम प्रस्तावित करेंगे, जिसे शास्त्री समर्थक खारिज कर देंगे। फिर इंदिराजी आपका नाम प्रस्तावित कर देंगी और आप प्रधानमंत्री बन जाएंगे।’
यह सुनकर मैं चौंक गया क्योंकि यह तो एक षड्यंत्र था। मैंने चालबाजी करने से मना किया तो मिश्र ने मुझसे कहा – ‘यही तो राजनीति है।’ बाद में ये तमाम चालें निर्मूल साबित हुईं और शास्त्रीजी ही प्रधानमंत्री बने।