नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वुहान में मुलाकात का जो सिलसिला शुरू हुआ है वह जारी रहेगा। यह तो दोनों नेताओं के बीच बैठक में तय हो गया था कि वे अनौपचारिक तौर पर आगे भी मिलते रहेंगे। लेकिन अगले चार महीनों में इनके बीच तीन आधिकारिक मुलाकातें भी होंगी जो रिश्तों को आधार देने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
यह जानकारी भारत में चीन के राजदूत लुओ झाओहुई ने यहां एक सेमिनार के दौरान दी। यह सेमिनार वुहान में मोदी-जिनपिंग बैठक और इसके बाद भारत व चीन के रिश्तों की दशा व दिशा पर ही था।
भारत में चीन के राजदूत ने बताया कि जून, 2018 में भी शंघाई सहयोग संगठन के शीर्ष नेताओं की बैठक के दौरान मोदी और जिनपिंग की फिर मुलाकात होगी। उसके बाद जोहांसबर्ग में ब्रिक्स देशों के शीर्ष नेताओं की बैठक में और उसके बाद अर्जेंटीना के ब्यूनसआयर्स में समूह-20 देशों के शीर्ष नेताओं की बैठक में उनकी दो और मुलाकातें होंगी।
वुहान में मोदी और जिनपिंग की बैठक के बारे में कई अनोखी बातों को लुओ ने मीडिया के सामने रखा। उन्होंने बताया कि चीन बार-बार यह साबित करता है कि उसके लिए भारत के साथ रिश्ते कितने अहम है। यही वजह है कि चीन के राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में सिर्फ एक बार किसी दूसरे देश के नेता का स्वागत बीजिंग से बाहर किया है और वह नेता भारतीय पीएम मोदी हैं। दोनों नेताओं के बीच हर द्विपक्षीय मुद्दों पर बहुत ही विस्तार से बात हुई। हर ज्वलंत मुद्दे का समाधान निकालने की कोशिश की गई।
सीमा पर विवाद को सुलझाने के लिए अपनी-अपनी सीमाओं को निर्देश देने का फैसला भी उनके बीच वार्ता में ही हुआ। इससे यह भी साबित हुआ है कि दोनों देश इतने परिपक्व हैं कि वे अपने आपसी विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से और एक-दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखते हुए सुलझा सकते हैं। सीमा विवाद सुलझाने के लिए गठित विशेष प्रतिनिधियों को भी यह कहा गया है कि ऐसा समाधान निकालें जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो। वुहान में जो सहमति बनी है, उसे लागू करने के लिए अन्य संबंधित विभागों को भी निर्देश दिया गया है।
चीनी राजदूत ने कहा कि भारत और चीन दो सबसे बड़े देशों में शामिल हैं। इनके बीच अगर शांति व सौहार्द्र बनता है तो इसका असर पूरी दुनिया पर होगा। अगर यह साथ-साथ काम करेंगे तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा माहौल बनेगा जो अन्य देशों के लिए सकारात्मक होगा। दोनों देश विकासशील देश व बाजारों के हितों के लिए काम करेंगे। संरक्षणवाद का विरोध करेंगे। ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश करेंगे जिससे हर देश को फायदा होगा।
उन्होंने यह भी बताया कि वुहान अनौपचारिक बैठक का प्रस्ताव सबसे पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी ने ही अस्ताना (कजाकिस्तान) में जिनपिंग के सामने सितंबर, 2017 में रखा था। इसके बाद दोनों पक्षों की तरफ से बैठक को लेकर कई स्तरों पर तैयारियां की गईं। चीन के प्रशासन ने इस बात का खास तौर पर ख्याल रखा कि मोदी और उनके दल के स्वागत में कोई कमी नहीं हो। चीन के राजदूत ने स्वयं इसके लिए गुजरात से टेबल क्लाथ और असम चाय ले कर गए थे।