आगामी आम चुनावों को लेकर सभी प्रमुख राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति बनाने में लग गए हैं। जहां एक तरफ विपक्ष के कुछ दल कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन बनाने की वकालत कर रहे हैं वहीं कुछ दल तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटे हुए हैं। बात अगर यूपी की करें तो बुआ-भतीजे की पार्टी गठबंधन को तो तैयार है पर बगैर कांग्रेस। कांग्रेस के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं। कहां कांग्रेस इन दलों को मिलाकर महागठबंधन की अगुवाई करने के सपने संजोए हुए थी और अब सपा-बसपा उसके सपने को चकनाचूर कर रहे है। राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को ये बात अच्छी तरह से पता है कि दिल्ली की सल्तनत का रास्ता लखलऊ से ही गुजरता है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह झटका असहनीय हो सकता है।
महागठबंधन की रार में दरार तब से शुरू हुई जब विधानसभा चुनाव में हार के बाद अखिलेश कांग्रेस को दरकिनार करने लगे। अखिलेश ‘यूपी को साथ पसंद है’ के प्लॉप शो के बाद कांग्रेस को लेकर अपना रुख बदलने लगे और अपने चिर-प्रतिद्वंदी मायावती के करीब जाने की कोशिश में जुट गए। कांग्रेस पर पूछे जाने वाले सवालों को टाल देते और मायावती के साथ गठबंधन पर बातें शुरू कर देते। बाद में सूत्रों से भी यह खबरे आने लगी कि अखिलेश कांग्रेस को गठबंधन में नहीं रखना चाहते। हालंकि कुछ मौके ऐसे आए जब सपा-कांग्रेस साथ-साथ दिखे, जैसे कि लोकसभा उपचुनाव में, अविश्वास प्रस्ताव, राज्य सभा चुनाव और राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में।
पर सबसे ताजा मामले में देखें तो सपा-कांग्रेस अलग- अलग रहीं। जी हां, हम बात भारत बंद की कर रहे है। कांग्रेस के इस महत्वाकांक्षी अभियान में ना तो अखिलेश की पार्टी दिखी और ना ही मायावती दिखीं। दिल्ली के रामलीला मैदान में जब सारे दिग्गज नेता हाथों में हाथ लिए फोटों सेशन कर रहे थे तो सपा-बसपा के प्रतिनिधि नदारद दिखे। वहीं उत्तर प्रदेश में दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता भी इस बंद में शामिल नहीं रहे। अखिलेश और मायावती भी अपने अलग-अलग कार्यक्रम में वयस्त रहे।
अब बात मायावती की करें तो ऐसा लग रहा था कि शायद इनका रुख कांग्रेस को लेकर नरम है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन की खवरें भी आ रहीं थी। और जब कुमारास्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में सोनिया और मायावती की फोटों साथ आई तो इस खबर को बल मिला। पर भारत बंद से मायावती की दूरी ने जहां कांग्रेस को जोरदार झटका दिया तो उस दिन दिए गए बयान ने कांग्रेस को सदमे में डाल दिया। भारत बंद के बाद बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने केंद्र सरकार को कांग्रेस की राह पर चलने वाला बताया और निशाना साधते हुए कहा कि पूंजीपतियों को नाराज नहीं करना चाहती है बीजेपी इसी वजह से पेट्रोल-डीजल के दामों में कटौती नहीं कर रही है। मायावती ने आगे कहा कि कांग्रेस ने पेट्रोल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया था जिसके बाद मोदी सरकार ने उस पर कोई बदलाव नहीं किया बल्कि उसी की राह पर आगे बढ़ते हुए डीजल को भी सरकारी नियंत्रण से बाहर कर दिया। बड़ी बात यह रही कि अखिलेश यादव ने भी मायावती की इस बात पर सहमति जता दी।
मायावती के इस बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी बनाए रखना चाहती हैं। इसके अलावा एक संकेत यह भी निकल कर आ रहा है कि शायद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव में गठबंधन होने की स्थिति में कांग्रेस पर ज्यादा सीटों के लिए दबाव बनाना है। पर फिलहाल के परिदृश्य में देखें तो राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस को यूपी से अच्छे संकेत नहीं मिल रहे जिसका खामियाजा आने वाले चुनाव में उठाना पड़ सकता है।