नई दिल्ली।दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अकादमिक पुस्तकालयों पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस (आईसीएएल-2023) के पहले दिन देर रात तक गज़लों की महफिल सजी। मजेदार बात यह रही कि रूस जैसे देशों से आए विदेशी मेहमानों ने भी भारतीय संगीत का खूब मजा लिया और गज़लों के मधुर सुरों के साथ झूमते नज़र आए। दिल्ली विश्वविद्यालय लाइब्रेरी सिस्टम द्वारा “शाम-ए-गजल” नाम से आयोजित इस कार्यक्रम में विख्यात गजल गायक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र अमरीश मिश्रा ने अपनी मधुर वाणी के साथ देर रात तक गज़लों से समा बांधे रखा। इस अवसर पर उन्होंने विद्यार्थियों की जोरदार फरमाइश पर जब गजल “रंजिश” को कुछ यूं पेश किया, “रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ… आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ… कुछ तो मिरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख… तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ… ” तो खचाखच भरे डीयू वाइसरीगल लॉज के कन्वेंशन हाल का माहौल काफी संजीदा सा बन गया।
अमरीश मिश्रा ने “रंजिश” के अलावा राग यमन कल्याण पर आधारित कम्पोज़ीशन से ही “भूली हुई यादों मुझे इतना ना सताओ, अब चैन से रहने दो मेरे पास ना आओ… ” और “जब दीप जले आना, जब शाम ढले आना… संकेत मिलन का भूल ना जाना, मेरा प्यार ना बिसराना… ” आदि कई गज़लों के मुखड़े गा कर श्रोताओं को राग की बारीकियों से भी अवगत करवाया। मिश्रा ने डीयू से जुड़ी अपने जीवन की 34 साल पुरानी यादों को ताजा करते हुए बताया कि यह जगह उनके लिए विशेष महत्व रखती है। उन्होने बताया कि 1989 में विश्वविद्यालय द्वारा जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन किया जा रहा था जिसमें वो भी आयोजन समिति में शामिल विद्यार्थियों में शुमार थे। इसी दौरान उनकी मुलाक़ात अल्का से हुई जो बाद में उनकी पत्नी बनी। उन्होने अपनी पत्नी अल्का के साथ मिलकर बसीर बदर की लिखी व गजल सम्राट स्वर्गीय जगजीत सिंह की कम्पोज़ की हुई गजल “सोचा नहीं अच्छा बुरा, देखा सुना कुछ भी नहीं… मांगा खुदा से रात दिन, तेरे सिवा कुछ भी नहीं… ” भी गाई। इसके साथ ही मिश्रा ने 90 के दशक के विद्यार्थी जीवन की यादों को कुछ यूं ताजा किया, “तुमको देखा तो ये ख्याल आया, ज़िंदगी धूप तुम घना शाया… आज फिर दिल ने इक तमन्ना की, आज फिर दिल को हमने समझाया… ” इसके अलावा उन्होंने “होठों से छू लो तुम मेरे गीत अमर कर दो… बन जाओ मीत मेरे… ” और “तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो… क्या गम है जिसको छुपा रहे हो… आँखों में नमी, हंसी लबों पर… क्या हाल है, क्या दिखा रहे हो… ” आदि अनेकों गज़लों के साथ देर रात तक श्रोताओं को बांधे रखा।
कार्यक्रम का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय कल्चर काउंसिल के डीन प्रो. रविंदर कुमार द्वारा किया गया और कॉन्फ्रेंस के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी एवं विश्वविद्यालय के पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. राजेश सिंह ने कलाकारों और अतिथियों का स्वागत एवं धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर कॉन्फ्रेंस में भाग लेने आए अतिथियों सहित दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े अनेकों अधिकारी, शिक्षक, कर्मचारी और विद्यार्थी भी उपस्थित रहे।