मल्टीमीडिया डेस्क। भारत में हर तीन मिनट में दो भारतीय और रोजाना हजार लोगों की जान टीबी के कारण चली जाती है। हर साल 4.2 लाख लोग टीबी के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं। ऐसे में साल 2025 तक टीबी को पूरी तरह समाप्त करने का मिशन वाकई महत्वपूर्ण हैं। टीबी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है, जो हवा के जरिए एक इंसान से दूसरे में फैलती है। सबसे आम फेफड़ों की टीबी ही है लेकिन यह ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गला, हड्डी आदि शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। खांसने और छींकने के दौरान यह इन्फेक्शन फैलता है और अगर वे खांस भी न रहे हों तो भी इंफेक्शन का पूरा खतरा है। 24 मार्च को वर्ल्ड टीबी डे है। इस मौके पर यहां जानते हैं टीबी के क्या है लक्षण और किस तरह से इससे बचा जा सकता है।
चेस्ट फिजिशियन डॉ. प्रमोद झवर के मुताबिक कमजोर इम्यूनिटी वालों को इस बीमारी की आशंका ज्यादा होती है। अच्छा खान-पान न करने वालों को टीबी ज्यादा होती है क्योंकि उनकी इम्यूनिटी ही कमजोर होती है और बैक्टीरिया से उनका शरीर लड़ नहीं पाता है। सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज्यादा होती है क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया अंधेरे में पनपता है। यह किसी को भी हो सकता है क्योंकि यह एक से दूसरे में संक्रमण से फैलता है। स्मोकिंग करने वाले, डायबीटीज के मरीजों, स्टेरॉयड लेने वालों और एचआईवी मरीजों को भी खतरा ज्यादा होता है।
टीबी की बीमारी असाध्य रोग नहीं है। इसमें घबराने की बजाय उचित इलाज कराना चाहिए। 6-8 महीने दवा सेवन करने के बाद यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो जाती है। बीच-बीच में दवा छोड़ने व फिर शुरू करने से बीमारी असाध्य हो जाती है जो लंबे समय तक चल सकती है।
वे बताते हैं टीबी का बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होता है, उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है। इस बीमारी में आक्रमण करके फेफड़ों या अन्य अंगों में एक ट्यूबरकल या गांठ का बना देते हैं। यह गांठ शुरू में आकार में बढ़ता है। फिर इसके बीच के भाग की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं और यह आसपास के ऊतकों को भी नष्ट करता है। शुरू में टीबी का संक्रमण केवल फेफड़ों में होता है। इसके बाद में यह टाॉन्सिल और आंतों में भी जा सकता है।
ऐसे पहचाने लक्षण:
अगर किसी को दो सप्ताह से ज्यादा दिनों तक खांसी हैं और ये लक्षण नजर आ रहे हैं तो संभल जाएं:
– बार-बार खांसना
– खांसते-खांसते बलगम में खून का आना
– खांसते और सांस लेते वक्त दर्द महसूस होना
– ब्रॉन्काइटिस में सांस लेने में दिक्कत होती है और सांस लेते हुए सीटी जैसी आवाज आती है।
– भूख में कमी
– थकान और कमजोरी का एहसास
– रात में पसीना
– बुखार
– गले में सूजन
– पेट में गड़बड़ी
अगर ये लक्षण आपको नजर आ रहे हैं तो तुरंत जांच केंद्र में जाकर अपने थूक की जांच करवाएं। WHO द्वारा प्रमाणित डॉट्स (DOTS- Directly Observed Treatment) के अंतगर्त अपना उपचार करवाकर पूरी तरह से ठीक होने की पहल करें। लेकिन इस इलाज को बीच में न छोड़े वरना ये लाइलाज हो जाएगा।
इस बीमारी से खुद को ऐसे बचाएं:
– सबसे पहला और प्रभावी बचाव का तरीका यह है कि नवजात शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद अथवा 6 सप्ताह तक अन्य टीकों के साथ बीसीजी का भी टीका आवश्यक रूप से लगवा देना चाहिए।
– रोगी के निकट संपर्क में आए घर के सदस्यों अथवा अन्य व्यक्ति चिकित्सक की सलाह से सुरक्षात्मक इलाज के रूप में आईएनएच और एथेमब्यूटाल की दवा नौ महीने तक खा सकते हैं।
– स्वस्थ जीवन शैली के मदद से भी आप इस रोग से बच सकते हैं। ताजे फल और सब्जी का सेवन, कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन और फैट युक्त आहार का सेवन जरूर करें।
– ज्यादा भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। कम रोशनी वाली और गंदी जगहों पर न रहें और वहां जाने से परहेज करें।