नई दिल्ली। लोकपाल की नियुक्ति में हो रही देरी के बीच मंगलवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एक मार्च को लोकपाल सेलेक्शन कमेटी के सदस्यों की बैठक हुई थी, जिसमें लोकपाल की नियुक्ति से पहले चयन समिति में एक कानूनविद रखे जाने पर सहमति बनी।
एक मार्च को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, लोकसभा स्पीकर और प्रधानमंत्री की बैठक हुई थी। सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने जस्टिस रंजन गोगोई, आर भानुमति की डबल बेंच को बताया कि चयन कमेटी में एक कानूनविद की जगह खाली है, जिससे जल्द भरा जाएगा।
इससे पहले वरिष्ठ वकील पीपी राव को बतौर कानूनविद इस पैनल में रखा गया था। मगर उनकी मौत के बाद ये जगह खाली हो गई। कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल को होगी।
दरअसल, कॉमन कॉज संगठन ने अवमानना याचिका दाखिल की है कि कोर्ट के आदेश के बावजूद लोकपाल की नियुक्ति नहीं की गई है। 27 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल की नियुक्ति का मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि लोकपाल अधिनियम पर बिना संशोधन के ही काम किया जा सकता है। केंद्र के पास इसका कोई जस्टिफिकेशन नहीं है, कि इतने वक्त तक लोकपाल की नियुक्ति को रोक कर क्यों रखा गया। लोकपाल की नियुक्ति बिना नेता विपक्ष के ही हो सकती है।
बता दें कि लोकपाल की चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष के नेता, भारत के प्रधान न्यायाधीश या नामित सुप्रीम कोर्ट के जज और एक नामचीन हस्ती के होने का प्रावधान है।
इससे पहले 28 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था। केंद्र सरकार की ओर से AG मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि लोकपाल की नियुक्ति वर्तमान हालात में संभव नहीं है। लोकपाल बिल में कई सारे संशोधन होने हैं, जो संसद में लंबित हैं।