अनिल रावत
नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के मद्देनजर
राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में फंसे उत्तराखंड के प्रवासियों को वापस लाने में किये जा रहे भेदभाव को लेकर दायर
जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए बुधवार को प्रदेश सरकार से जवाब दाखिल करने के निर्देश दिये हैं। मामले
को धनोल्टी के विधायक प्रीतम सिंह पंवार की ओर से जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। इस
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की अदालत में हुई। याचिकाकर्ता
की ओर से कहा गया कि कोरोना महामारी के चलते देश में लॉकडाउन चल रहा है।
केन्द्र सरकार की ओर से 17 मई तक लॉकडाउन है। इस दौरान प्रदेश के प्रवासी श्रमिक, पर्यटक, तीर्थ यात्री, छात्र
एवं अन्य लोग देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे हुए हैं। वे लॉकडाउन के चलते अपने घर नहीं आ पा रहे हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि केन्द्र सरकार की ओर से विगत 29 अप्रैल को निर्देश
जारी कर सभी प्रवासियों को अपने घर वापस ले जाने के लिये सभी राज्य सरकारों को छूट प्रदान कर दी है। केन्द्र
के निर्देश पर उत्तराखंड सरकार ने भी एक गाइडलाइन जारी कर सभी प्रवासियों को वापस लाने का निर्णय लिया।
सरकार की ओेर से गढ़वाल एवं कुमाऊं मंडल में दो नोडल अधिकारी भी भी तैनात कर दिये गये।
उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि लगभग डेढ़ लाख लोगों ने अपने घर वापस आने के लिये पंजीकरण कराया
लेकिन चार मई को राज्य सरकार अपने फैसले से पलट गयी और कहा कि सिर्फ उन्हीं प्रवासी श्रमिकों को वापस
लाया जायेगा जो पैदल यात्रा करने को मजबूर हैं या फिर विभिन्न राहत कैम्पों में ठहरे हुए हैं। याचिकाकर्ता की
ओर से कहा गया कि प्रदेश सरकार लोगों के साथ भेदभाव कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत से मांग
की गयी कि राज्य सरकार को सभी प्रवासियों को वापस लाने के निर्देश दिये जायें। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता
एस.के. मंडल ने बताया कि मामले को सुनने के बाद अदालत ने सरकार से पूछा है कि वह याचिकाकर्ता की ओर से
उठाये गये बिन्दुओं पर जवाब प्रस्तुत करे। मामले में अगली सुनवाई 18 मई को होगी।