रायपुर। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में हमारी युवा पीढ़ी के बचपन से समग्र विकास की
संकल्पना प्रस्तुत की गई है, जिससे वे न केवल शैक्षणिक और कौशल विकास की दृष्टि से सुयोग्य बन कर जीवन
में चहुंमुखी प्रगति कर सकें, बल्कि एक संवेदनशील मानव भी बन सके। इस शिक्षा नीति में शिक्षा और ज्ञान को
भारत केन्द्रित बनाने का प्रयास किया गया है। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने मंगलवार को कुशाभाऊ
ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर, पब्लिकेशन ब्यूरो, हिमाचल प्रदेश तथा केन्द्रीय
विश्वविद्यालय, धर्मशाला के संयुक्त तत्वावधान में नई शिक्षा नीति-2020 हितधारकों के विचार विषय पर
आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित करते हुए कही। राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने इस नीति में शिक्षा और
शोध की गुणवत्ता को भी अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ढालने की कोशिश ताकि हमारे विद्यार्थी उच्च शिक्षा के
लिए विदेश जाने के आकर्षण की बजाय अपने देश में ही उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्राप्त कर सकें। राज्यपाल ने
कहा कि प्राचीन समय से भारत बौद्धिक रूप से पूरे संसार को मार्गदर्शन देता रहा है और असली ताकत रही है
जिसे पूरे विश्व ने स्वीकारा है। यह हमारी शिक्षा की वजह से ही हो पाया है। नई शिक्षा नीति हमारी शिक्षा व्यवस्था
में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करते हुए हमें नए परिवेश में स्थापित करने के लिए तैयार करेगी। राज्यपाल ने
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने जो नई शिक्षा नीति-2020 की संकल्पना दी है, वह
आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में सहायक सिद्ध होगी। साथ ही युवाओं को प्रेरणा प्रदान करेगी तथा
नये भारत का निर्माण करेगी। नई शिक्षा नीति में उच्चतर शिक्षा के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण अनुशंसा बड़े और
बहुविषयक विश्वविद्यालय और उच्चतर शिक्षा संस्थान के संबंध में है। हम यदि याद करें तो ऐसे बहुविषयक
संस्थान हमारे यहां प्राचीनकाल में पहले से थे, जिन्होंने पूरी दुनिया में अपना नाम किया है। नई शिक्षा नीति में
शिक्षा का अधिकार उसे 18 वर्ष की आयु तक बढ़ाकर शिक्षा की सर्वग्राह्यता बढ़ाने का एक बड़ा उद्देश्य पूरा किया
गया है ताकि अब कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। उन्होंने कहा कि कृषि जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी
जाती रही है, उसे भी शिक्षा की मुख्यधारा में और महत्व का स्थान देने के लिए देश में कृषि प्रौद्योगिकी पार्क
खोलने की संस्तुति की गई है ताकि पारंपरिक कृषि को और ज्यादा वैज्ञानिक रूप दिया जा सके। राज्यपाल ने
सुझाव देते हुए कहा कि जहां पर जनजातियों की संख्या ज्यादा है, वहां पर उनकी बोली भाषाओं में शिक्षा प्रदान
करनी चाहिए। साथ ही स्थानीय स्तर पर उस भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति भी की जानी चाहिए। उन्होंने सलाह दी
कि ग्रामीण क्षेत्रों विशेषकर जनजातीय समाज में अथाह ज्ञान है, जैसे जड़ी बुटी और वन संपदा। आवश्यकता है इस
विद्या को संरक्षित करें और उसे पाठ्यक्रम का रूप दें और उच्च शिक्षा में शामिल करें।