यह किस्सा राष्ट्रपति चुनाव में हुए एक रोचक घटनाक्रम से जुड़ा है। राष्ट्रपति का सबसे दिलचस्प चुनाव अगस्त 1969 में हुआ था। इस चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार थे,जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वीवी गिरि को अपने प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा था।
चुनाव की रस्साकशी के बीच अचानक मतदान से ठीक पहले संसद के केंद्रीय कक्ष में एक गुमनाम पर्चा वितरित हुआ। इसमें नीलम संजीव रेड्डी के बारे में अनर्गल बातें लिखी थीं। चुनाव में अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील हुई, जिसके नतीजतन कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी चुनाव हार गए।
इसके बाद शिव कृपाल सिंह, फूल सिंह, एन श्रीराम रेड्डी सहित अब्दुल गनी डार और नौ अन्य सांसदों तथा आठ विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग चुनाव याचिकाएं दायर कीं। इनमें से शिव कृपाल सिंह और फूल सिंह का नामांकन पत्र रिटर्निंग अधिकारी ने अस्वीकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति एसएम सीकरी की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इन चुनाव याचिकाओं में उठाए गए विभिन्न सवालों पर सुनवाई के बाद सभी याचिकाएं खारिज कर दीं। इस चुनाव से पहले ही अप्रैल 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया था।
न्यायालय ने इस तथ्य को नोट किया कि सुनवाई के दौरान कांग्रेस दो खेमों में बंटी हुई थी। एक खेमा कांग्रेस ‘ओ’
और दूसरा खेमा कांग्रेस ‘आर’ के नाम से जाना जाता था। मजे की बात यह कि वह पर्चा डाक से भेजा गया था, जिसे केंद्रीय कक्ष में बांटा गया था। इसी तरह वर्ष 1987 के राष्ट्रपति चुनाव में भी एक रोचक वाकया हुआ था। उस चुनाव में कांग्रेस की ओर से आर वेंकटरमण और विपक्ष की ओर से न्यायमूर्ति वी कृष्ण अय्यर मैदान में थे।
इनके अलावा एक निर्दलीय मिथिलेश कुमार ने भी नामांकन पत्र भर दिया। निर्दलीय मिथिलेश कुमार की स्थिति इतनी विचित्र थी कि चुनाव के दौरान एक बार वे मोतीबाग में एक पेड़ के नीचे सो गए तो उनके चारों ओर सुरक्षाकर्मियों को सुरक्षा घेरा डालना पड़ा। मिथिलेश कुमार को सुरक्षा कारणों से नई दिल्ली इलाके में एक विशाल बंगला भी आवंटित किया गया था।