नई दिल्ली! दिल्ली विश्वविद्यालय के अफ्रीकी अध्ययन विभाग द्वारा “महात्मा गांधी और गांधीवाद: अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों को सक्रिय करना” विषय पर एक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का शुभारंभ गुरुवार, 6 अप्रैल को वाइसरीगल लॉज स्थित कन्वेंशन हॉल में हुआ। विश्वविद्यालय की शताब्दी समारोह समिति के सहयोग आयोजित इस कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में कहा कि 2050 तक भारत की अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन डॉलर होनी चाहिए और इसके लिए भारत- अफ्रीका संबंध बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के तौर पर मॉरीशस के उच्चायुक्त की राजनयिक श्रीमती रीमा बी. रोबी और आईसीएसएसआर, नई दिल्ली की उप निदेशक डॉ. ऋचा शर्मा उपस्थित रही।
प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि अफ्रीका युवा आबादी के मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा है। वर्तमान में दुनिया के 3 में से एक व्यक्ति का जन्म अफ्रीका में हो रहा है। दुनिया की 10 में से 3 तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ अफ्रीका में हैं। उन्होंने विभिन्न संसाधनों के विस्तार से आंकड़े देते हुए बताया कि अफ्रीका के पास दुनिया के 30% खनिज संसाधन हैं। यदि हमें भारत के लिए कुछ सार्थक करना है तो वह भारत- अफ्रीका के बीच मजबूत संबंधों के साथ सफलता से किया जा सकता है, जोकि दोनों देशों के लिए लाभकारी होगा। उन्होने कहा कि भारत के साथ अफ्रीका का आयात और निर्यात बहुत ही अच्छा है। वर्तमान में भारत का 21% से अधिक निर्यात अफ्रीका के साथ है। उन्होंने कहा कि अफ्रीका के पास दुनिया का 25% जमीनी संसाधन है जोकि पूरी दुनिया को भोजन उपलब्ध करवा सकता है, इसलिए कृषि क्षेत्र में भारत की विकसित तकनीक और ज्ञान का इस्तेमाल अफ्रीकी देशों की कृषि के विकास के लिए किया जा सकता है। इसके साथ ही शिक्षा, बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों में अफ्रीका के साथ बहुत काम किया जा सकता है।
कुलपति ने गांधी और अफ्रीका संबंधों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गांधी 1893 में अफ्रीका गए और 1915 में भारत लौटे। इस अरसे में अफ्रीका ने गांधी को गांधी पार्ट-1 बनाया। कुलपति ने महात्मा गांधी के दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ संबंधों का विस्तार से जिक्र करते हुए बताया कि डीयू की ऐतिहासिक इमारत, वाइसरीगल लॉज से गांधी का गहरा संबंध रहा है। उन्होने बताया कि गांधी कई बार इस इमारत में आए और गांधी-इरविन समझौते पर इसी इमारत में हस्ताक्षर हुए। इसी समझौते की बदौलत करीब 80,000 कैदियों की रिहाई हुई थी। कुलपति ने वर्तमान समय में गांधी की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत सरकार गांधी के सपनों का भारत बनाने में सक्रियता से काम कर रही है। उन्होने उज्ज्वला योजना और 82 करोड़ लोगों को सीधे लाभ पहुँचने वाली महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा योजना आदि का जिक्र करते हुए कहा कि गांधी यही तो चाहते थे कि मेरे देश में कोई भूखा न सोए।
कॉन्फ्रेंस में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए मॉरीशस के उच्चायुक्त की राजनयिक श्रीमती रीमा बी. रोबी ने कहा विस्तृत आंकड़ों सहित भारत-अफ्रीका आर्थिक और राजनयिक संबंधों का जिक्र किया। उन्होने कहा कि भारत ने कोविड-19 महामारी के दौरान अफ्रीकी देशों को करीब 37.59 मिलियन डोज़ वेक्सीन उपलब्ध करवाई। उन्होने गांधी के सत्याग्रह को आजादी का मूल मंत्र बताते हुए कहा कि गांधी का मानना था कि अफ्रीका की आजादी के बिना भारत की आजादी अधूरी है। उनसे नेल्सन मंडेला जैसे अनेकों अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने प्रेरणा प्राप्त की है। उन्होंने अफ्रीकी देशों, विशेषकर मॉरीशस, के लिए भारत के योगदान और उनके विद्यार्थियों को भारत द्वारा शिक्षा में सहयोग और स्कॉलरशिप देने के लिए भी आभार व्यक्त किया। उनके साथ ही अन्य मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित आईसीएसएसआर, नई दिल्ली की उप निदेशक डॉ. ऋचा शर्मा ने गांधी पर अलग तरीके से अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि गांधी को लोगों ने कई तरह से समझा और जाना है। डॉ. ऋचा शर्मा ने कहा कि वह गांधी को एक सफल वकील के रूप में देखती हैं। डॉ. शर्मा ने गांधी की वकालत से जुड़ी अनेकों घटनाओं के साथ विस्तार से बताया कि कानूनी पेशे के लिए गांधी ने बहुत कुछ किया। व्यावसायिक रूप से गांधी एक सफल वकील थे, जिन्होंने भारत व अफ्रीका में लंबे समय तक वकालत की। समारोह के आरंभ में कॉन्फ्रेंस के समन्वयक एवं अफ्रीकी अध्ययन विभाग के प्रमुख प्रो. गजेंद्र सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया और कॉन्फ्रेंस के बारे में विस्तार से जानकारी दी। समारोह के अंत में डॉ. मनीष कर्मवार द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस अवसर पर शताब्दी समारोह समिति की संयोजक प्रो. नीरा अग्निमित्रा, डीयू कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता और अफ्रीकी देशों से अनेकों प्रतभागी भी उपस्थित रहे।