भोपाल: भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे के पीड़ितों के 5 संगठनों ने एकपत्रकार वार्ता में 15 मार्च, 2023 को ऑनलाइन उपलब्ध कराए गए सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत की। इससे पहले, संगठनों नेसुधार याचिका के फैसले की निंदा की थी जब गैस पीड़ितों के लिए अतिरिक्तमुआवजे की याचिका को बेंच द्वारा 14 मार्च को खारिज कर दिया गया था ।भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्षा रशीदा बी ने
कहा, “सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जानबूझ कर यूनियन कार्बाइड के खिलाफ उदलीलों को नजरअंदाज किया जिसमे कम्पनी ने 1989 में गैस हादसे के मामले को
निपटाने के लिए कपटपूर्ण साधन का इस्तेमाल किया था । हमारे वकीजिन्होंने वास्तव में दस्तावजी सबूत पेश किए की किस तरह यूनियन कार्बाइड
के अधिकारियों ने भारत सरकार के को इस बात पर गुमराह किया की कि MIC गैकी वजह से ज्यादातर गैस पीड़ितों को केवल अस्थाई चोट पहुंची है और हमारे
ही वकील को अदालत ने नाम लेकर शर्मिन्दा करने का प्रयास किया है | फैसलमें कार्बाइड की धोखाधड़ी के बारे में एक शब्द भी नहीं है।””न्यायालय का यह दावा पूरी तरह से झूठा है कि भोपाल के पीड़ितों को ‘मोटरवाहन अधिनियम’ के तहत प्रदान किए गए मुआवजे की तुलना में छह गुना अधिक
मुआवजा मिला है” भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा केबालकृष्ण नामदेव ने कहा। “1988 का मोटर वाहन अधिनियम के अन्तर्गत चोट कीगंभीरता के आधार पर पीड़ितों को कम से कम 50 हजार रूपए से रु2.5 लाखमुआवजा देने के लिए निर्धारित करता है और 50,000 से छह गुना राशिप्राप्त करने वाले गैस पीड़ितों की संख्या 1% से भी कम है।” उन्होंनेकहा।भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा, “न्यायाधीशों ने इस बुनियादी तथ्य की अनदेखी की है कि यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे से भोपाल में भूजल प्रदूषित हुआ है और जिसका 1984 गैस हादसे से कोई सम्बन्ध नहीं है। उन्होंने इस बात को नज़रअंदाज़ किया कि यूनियन कार्बाइड द्वारा गैस हादसे से पहले और बाद में भी हज़ारों टन जहरीला कचरे को असुरक्षित तरीके से कारखाने के अंदर और बाहर डाला गया जिसकी वजह से आज भी कारखाने के आस आस भूजल प्रदूषण जारी है । साथ ही उनके द्वारा कारखाने की भूमि को उसकी मूल स्थिति में लौटाने की शर्त को भी
नज़रअंदाज़ कर दिया गया, जिसके तहत यूनियन कार्बाइड ने पट्टे पर ज़मीन ली थी।” भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खान ने कहा,
“34 पन्नों के फैसले में कहीं भी ऐसा कोई संकेत नहीं है कि न्यायधीशों को कार्बाइड से निकली जहरीली गैस की वजह से स्वास्थ्य पर पहुंची हानी के वैज्ञानिक तथ्यों से दूर से ही परिचित हैं। इसमें यह दिखाने के लिए कु भी नहीं है कि न्यायाधीशों को गैस पीड़ितों को लम्बी और पुरानी बीमारियों के बारे में कोई समझ थी।” “जबकि निर्णय पीड़ितों के प्रति सहानुभूति का दावा करता है पर पूरे फैसले से यह सपष्ट होता है कि गैस पीड़ित संगठनों के प्रति खंडपीठ ने उपहासपूर्ण रवैया अपनया है ।” डॉव कार्बाइड के खिलाफ बच्चों की नौशीन खान ने कहा “न्यायाधीशों का यूनियन कार्बाइड के प्रति पूर्वाग्रह साफ़ तौर पर दिखता है क्योंकि फैसले में एक भी जगह इसका उल्लेख नहीं है कि यूनियन कार्बाइड कम्पनी आज भी आपराधिक मामले में फरार है ।” उसने जोड़ा।