भारत को इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण का केंद्र बनाने का लक्ष्य : रविशंकर

asiakhabar.com | July 3, 2019 | 4:32 pm IST

संयोग गुप्ता

नई दिल्ली। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बुधवार
को कहा कि इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण में भारतीय कंपनियों का बड़ा योगदान है तथा सरकार देश को
इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण का केंद्र बनाना चाहती है।
श्री प्रसाद ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक पूरक प्रश्न के उत्तर में कहा कि देश में इलेक्ट्रॉनिक
हार्डवेयर का विनिर्माण पिछले चार साल में ढाई गुणा हो गया है। यह वर्ष 2014-15 में 1,90,366 करोड़
रुपये का था जो 2018-19 में बढ़कर 4,58,006 करोड़ रुपये पर पहुँच गया है। उन्होंने बताया कि देश
की कुल एलसीडी तथा एलईडी माँग का 80 प्रतिशत 38 स्वदेशी कंपनियों से पूरा होता है। पाँच साल
पहले जब मोदी सरकार सत्ता में आयी थी तो देश में दो मोबाइल विनिर्माण कंपनियाँ थीं जिनकी संख्या
आज बढ़कर 268 पर पहुँच गयी हैं। अब एलईडी और सोलर लैंप भी देश में बन रहे हैं।
उन्होंने कहा “इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में भारतीय कंपनियों का बड़ा योगदान है। प्रौद्योगिकी आधारित
उत्पादों में शुरुआती चरण में विदेशी कंपनियों के साथ भागीदारी जरूरी है और भारतीय कंपनियाँ उनसे
सहयोग कर नई प्रौद्योगिकी अपना रही हैं। बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियाँ भारत में संयंत्र लगा रही हैं। हम
चाहते हैं कि देश से इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों का निर्यात भी हो और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का केंद्र

बने।” श्री प्रसाद ने कहा कि सरकार हार्डवेयर के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स सॉफ्टवेयर पर भी ध्यान केंद्रित कर
रही है क्योंकि यह इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण का महत्वपूर्ण अंग है।
श्री प्रसाद ने वियतनाम से टेलीविजन सेट के आयात में भारी वृद्धि के बारे में पूछे गये प्रश्न के लिखित
उत्तर में बताया कि वियतनाम से टीवी सेट का आयात 2018-19 में 25 गुणा बढ़कर 3,807 करोड़ रुपये
पर पहुँच गया। वित्त वर्ष 2017-18 में यह आँकड़ा मात्र 62 करोड़ रुपये का था। उन्होंने बताया कि सभी
देशों से टेलीविजन सेट के आयात में करीब 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह 2017-18 के 4,962
करोड़ रुपये से बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में 7,224 करोड़ रुपये हो गया। इसमें चीन, वियतनाम, मलेशिया,
हांगकांग और ताइवान ही हिस्सेदारी एक साल में 93 फीसदी से बढ़कर 97 फीसदी हो गयी। सबसे
ज्यादा आयात चीन से होता है। यह आँकड़ा 2017-18 में 2,027 करोड़ रुपये रहा था जो 2018-19 में
3,807 करोड़ रुपये हो गया।


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