बीमारी में मदद देकर वेतन से की कटौती, सशस्त्र बल का जवान पहुंचा कोर्ट

asiakhabar.com | January 24, 2018 | 4:14 pm IST

नई दिल्ली। देश की सीमाओं की सुरक्षा में लगे जवान हर वक्त इसकी सुरक्षा में अपनी जान कुर्बान करने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन जब इन जवानों को मजबूरी में किसी सहारे की जरूरत पड़ती है तो इनके विभागों का रवैया बेहद चौंकाने वाला गैरजिम्मेदारी भरा होता है।

ऐसा ही वाक्या सशस्त्र सीमा बल के एक जवान के साथ हुआ, जहां उसकी बीमारी पर हुए खर्च को उसकी सेलरी से वसूला जा रहा है। मुश्किल भरे दौर से गुजर रहे जवान ने अपने विभाग के संवेदनहीन रवैये के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली है।

मनीष की दुर्गम इलाके में थी तैनाती –

सशस्त्र सीमा बल के जवान मनीष कुमार को देश के दुर्गम इलाके में तैनाती के दौरान साल 2013 में किडनी कि समस्या हो गई। दो साल तक उनकी डायलेसिस की गई, लेकिन जब उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ तो उनकी किडनी ट्रांसप्लांट की गई। मुसीबत भरे इस दौर में मनीष कुमार को उनके परिवार का तो अच्छा सहारा मिला, लेकिन विभाग का रवैया बेहद रुखा था।

विभाग ने नहीं दी मानवता के आधार पर मदद-

मनीष कुमार ने कोर्ट मे बताया कि यदि किडनी ट्रांसप्लांट के बाद मुझे पर्याप्त मात्रा में हेल्दी डाइट और दवाईयां नहीं मिली तो मेरी दूसरी किडनी के भी फेल होनें का खतरा है।

हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सशस्त्र सीमा बल को नोटिस जारी करते हुए इस मामले में जवाब देने को कहा है, वहीं इस मामले में मनीष कुमार के वकील तुषार सन्नू का कहना है कि मनीष कुमार ने मानवीयता के आधार पर अपने विभाग से मदद मांगी थी, लेकिन विभाग ने इससे इंकार कर दिया।

याचिकाकर्ता का कहना है कि गंभीर बीमारी होने पर विभाग की ओर से मानवीय आधार पर आर्थिक मदद दी जाती है, लेकिन उसके मामले में अधिकारियों ने मदद से इंकार किया और मनीष कुमार को सशस्त्र सुरक्षा बल के वेलफेयर फंड से आर्थिक मदद लेने की बात कही।

इलाज पर खर्च हुए 14 लाख रुपए –

मनीष के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था और इसलिए मजबूरी में उसने सशर्त आर्थिक मदद को लेना मंजूर कर लिया। उनको छह लाख रुपए का लोन मंजूर किया गया, जबकि उनकी बीमारी पर 11 लाख रुपए का खर्च हुआ था। उनका ऑपरेशन दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हुआ जहां पर खर्च और बढ़ते हुए 14 लाख रुपए हो गया।

पिता की मौत ने किए आर्थिक हालत खराब –

लोन की शर्तों के मुताबिक, उनको यह लोन 60 किस्तों में चुकाना था, लेकिन बीमारी और आर्थिक बोझ की वजह से वो लोन चुकाने में असमर्थ रहे। उनका कहना है कि पिता की मौत के बाद उनके आर्थिक हालत और खराब हो गए क्योंकि उनको दोस्तों, विभाग और बैंक का भी लोन चुकाना था।

आखिरकार मनीष कुमार को पिछले साल अगस्त में नोटिस मिला कि उनके लोन की रिकवरी उनके वेतन से होगी और वेतन से उनके तीस हजार रुपए काटे जाएंगे, लेकिन उनको आश्चर्य इस बात से हुआ कि उनके वेतन से यह कटौती पिछले पांच महीने से हो रही है। लिहाजा कोई रास्ता ना होनें की वजह से उनको हाईकोर्ट की शरण लेना पड़ी।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *