मधुबनी। बिहार के मधुबनी स्थित पंडौल प्रखंड में समाजवाद पर आधारित साझी खेती नए संकेत देती दिख रही है। समाजवाद के विशुद्ध आदर्श पर आधारित। जहां पूंजी भी साझी होती है, श्रम भी साझा होता है और लाभ भी। छोटे-छोटे जोतों की जगह यहां अब एक बड़ा सा खेत है। वह किसी एक का नहीं है। 35 से अधिक महिलाएं इसे संभालती हैं। सभी बराबर मेहनत करती हैं।
फसल के रखरखाव के लिए सभी एक जैसी चिंतित होती हैं। बीज और खाद की खरीदारी एक साथ होती है। पूरे खेत के लिए मिक्सिंग प्लांट और बोरिंग भी सबने मिलकर लगवाया है। इस समाजवादी आइडिया ने इन गरीब महिलाओं के जीवन स्तर में खासा सुधार ला दिया है।
कोई ऊंच-नीच और कोई छोटा-बड़ा नहीं-
ये महिलाएं याद करती हैं पुराने दिनों को। साफ कहती हैं कि ऊंच-नीच और छोटे-बड़े जैसे पैमाने सिर्फ परेशानी बढ़ाते हैं। पहले छोटे-छोटे खेत थे। पीढ़ी दर पीढ़ी जोत छोटी होती गई थी। हर कोई अपने छोटे से टुकड़े में जुटा रहता था। लागत और मेहनत ज्यादा थी।
बातचीत के दौरान दो-तीन महिलाओं ने एक साथ खेती करने के आइडिया पर काम किया। फायदा हुआ तो कई महिलाएं एक हुई। अब पांच एकड़ खेत में वह मानो सोना उपजा रहीं। सरकार ने भी उनकी मदद की है। महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना के तहत सामुदायिक टपक सिंचाई संसाधन के लिए उन्हें सात लाख 50 हजार रुपये का अनुदान मिला है।
जैविक विधि से खेती के लिए कृषि सलाहकार समय-समय पर उचित सलाह देने पहुंचते हैं। वर्ष 2016 में उन्होंने संयुक्त रूप से खेती शुरू की थी। अब महिला किसानों की संख्या बढ़कर 35 हो गई।
एकता में है बल-
पंडौल प्रखंड के बथने गांव की पवित्री देवी, आरती देवी, सुनीता देवी, सीता देवी, उर्मिला देवी, त्रिवेणी देवी और रंजू देवी से बात करिए, तो समझ में आता है कि उनकी सोच-समझ कितनी साफ है। पढ़ने-लिखने का उन्हें अच्छा मौका तो नहीं मिला, लेकिन घर-परिवार और समाज से उन्होंने काफी कुछ सीखा है। एकता में बल की सीख उन्हें अनुभव से मिली है। सब सहेलियों जैसी एक दूसरे की मदद करती हैं।
ये हुआ लाभ-
पांच एकड़ जमीन पर सामुदायिक खेती से प्रत्येक महिला किसान को प्रतिवर्ष औसतन 50 हजार रुपये की आमदनी होती है। जीविका के माध्यम से बाजार भी इन्हें इकट्ठा मिल जाता है। अच्छा मूल्य भी हासिल हो जाता है। अपनी फसल को ये पंडौल बाजार, भवानीपुर, बथने चौक आदि ग्रामीण बाजार में भी बेचती हैं। कई थोक दुकानदार तो इनके खेतों तक पहुंच जाते हैं।
मिसाल बन गई हैं ये महिलाएं-
मधुबनी के जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक कहते हैं कि छोटे-छोटे भूखंड को जोड़कर इन महिला किसानों ने जो सफलता पाई है, वह वाकई अनुकरणीय है। वह जैविक खेती करती हैं, जो और लाभप्रद है। राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत हम अन्य प्रखंडों में भी इस तरह के प्रयास को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे। इनसे सीख लेकर लोग एक साथ मिलकर खेती करें, तो कई बड़ी समस्याएं हल हो जाएंगी।
”छोटे-छोटे जोत के चलते बहुत से किसान खेती से विमुख हो रहे हैं। इन छोटे जोतों को मिलाकर एकीकृत खेती से निश्चित ही बेहतर परिणाम सामने आएगा। बथने गांव की महिला किसानों ने यही किया है। उनकी यह सूझ अनुकरणीय है। समृद्धि और सफलता के लिए अन्य किसानों को भी इसे अपनाना चाहिए। प्रशासन को भी इस बारे में पहल कर किसानों को जागरूक करना चाहिए।’