फिर निकला बोफोर्स घोटाले का जिन्न

asiakhabar.com | February 2, 2018 | 4:54 pm IST
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नई दिल्ली। बोफोर्स तोप घोटाले का जिन्न हमेशा ही कांग्रेस को डराता रहता है। एक बार फिर से यह जिन्न निकल आया है। दरअसल, 2 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या इस मामले को फिर से खोला जाए या नहीं। बताते चलें कि साल 1987 में यह बात सामने आई थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हासिल करने के लिए 80 लाख डॉलर की दलाली दी थी।

उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 16 अप्रैल 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाले के नाम से जाना जाता है। आरोप था कि राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताए जाने वाले इटली के व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका निभाई थी। इसके बदले में उसे दलाली की रकम मिली थी। कुल चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डॉलर का था। जानिए इस घोटाले से जुड़ी बड़ी बातें…

बोफोर्स स्कैंडल उस समय हुआ जब विश्वनाथ प्रताप सिंह के रक्षा मंत्री थे। वीपी सिंह ने एक गवाही के दौरान कहा कि क्वात्रोची ने कई बार उनके साथ मिलने का समय मांगा था, लेकि लेकिन क्वात्रोची को कोई अप्वाइंटमेंट नहीं दिया। फिर राजीव गांधी ने उन्हें इटैलियन बिजनेसमैन क्वात्रोची से मिलने के लिए कहा।

बोफोर्स स्कैंडल के बारे में खोजी पत्रकारिता के जरिये इंडियन एक्सप्रेस की चित्रा सुब्रमण्यम और द हिंदू के एन. राम ने उजागर किया। साल 1987 में स्वीडिश पुलिस प्रमुख स्टीन लिंडस्ट्रॉम ने 350 से ज्यादा दस्तावेजों को लीक कर चित्रा को दिया था, जिससे उन्हें इस स्कैंडल की रिपोर्ट करने में मदद मिली।

इस सौदे में बिचौलिए की भूमिका निभाने वाले, जिसे विलेन भी कहा जाता है, वह ओटवियो क्वात्रोची था। वह इटली की एक पेट्रोकेमिकल फर्म स्नैम्पोगेटी का प्रतिनिधित्व करता था। क्वात्रोची गांधी के परिवार का करीबी था और 1980 के दशक में बड़े व्यवसायों और भारत सरकार के बीच शक्तिशाली दलाल के रूप में उभरा।

आरोप हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इटली के कारोबारी ओटावियो क्वात्रोची को बचाने के लिए इस कथित घोटाले में रिश्वत की जांच को नरम कर दिया था।

बोफोर्स मामले के 25 साल बाद स्वीडन में बोफोर्स जांच का नेतृत्व करने वाले लिंडस्ट्रॉम ने हाल ही में चित्रा सुब्रमण्यम को एक इंटरव्यू दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि भारतीय समकक्षों ने बड़े पैमाने पर मामले में लीपापोती की। लिहाजा यह जिन्न एक बार फिर बाहर निकल आया है।

लिंडस्ट्रॉम के मुताबिक ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है, जिससे पता चले कि राजीव गांधी ने बोफोर्स सौदे में रिश्वत ली थी। मगर, क्वात्रोची को बचाने के लिए भारत और स्वीडन दोनों ही देशों की ओर से की जा रही लीपा पोती को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।

इस मामले में महानायक अमिताभ बच्चन का नाम आया था। 31 जनवरी 1990 को एक स्वीडिश दैनिक अखबार में प्रकाशित खबर में कहा गया कि स्विस अधिकारियों ने अमिताभ के छोटे भाई (अजिताभ बच्चन ) से जुड़े एक खाते को फ्रीज किया है। उसमें बोफोर्स कमीशन को कोडेड एकाउंट से ट्रांसफर किया गया है।

हालांकि, इस मामले से संबंधित विवादों और घोटालों के बावजूद, बोफोर्स तोपें भारतीय सेना के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई हैं। कारगिल युद्ध (1999) के दौरान पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें प्राइमरी फील्ड आर्टिलरी के रूप में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था। उस युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ भारत को इन्हीं की वजह से बढ़त मिली थी।


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