पैदल चलने वालों के लिए शहरों में नहीं है फुटपाथ, सौ स्मार्ट सिटी में होगा काम

asiakhabar.com | November 22, 2017 | 5:45 pm IST

नई दिल्ली। शहरी जीवन की आपाधापी के बीच पैदल चलने वालों के लिए देश में कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है। लेकिन देश में शहरी निकायों का बुनियादी ढांचा इतना खराब है कि लोगों को इस सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा है।

पैदल चलने के लिए जिस फुटपाथ व गलियों की जरूरत होती है, उसके बारे में कोई राष्ट्रीय नीति नहीं है। हाल में शहरी विकास मंत्रालय ने मॉडल कानून बनाकर शहरी निकायों को भेजा है। लेकिन इसे लागू करने या न करने की जिम्मेदारी नगर प्रशासन की है। जिन शहरों में फुटपाथ है, वहां इनका डिजाइन गलत है। इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन शुरू किया है।

इसमें एक सौ शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना पर काम चल रहा है। इसकी देखादेखी बाकी शहरों में भी इसकी शुरुआत हो सकती है।

इसमें विश्वस्तरीय कंसलटेंट कंपनियां अपनी सेवाएं दे रही हैं। सभी का जोर अंतरराष्ट्रीय मानक के फुटपाथ बनाने पर है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग पैदल चलने में सहूलियत महसूस करें। राष्ट्रीय स्तर पर फुटपाथ को लेकर कोई कार्य योजना नहीं होने से मुश्किलें बढ़ी हैं। इस काम को स्थानीय स्तर पर नगर निकायों के जिम्मे छोड़ दिया गया है। लेकिन धनाभाव और इच्छा शक्ति के अभाव में इस अति महत्वपूर्ण विषय पर कोई ठोस कार्य नहीं हो पाया है।

हालांकि देश के इक्का-दुक्का शहरों ने इस दिशा में पहल की है। लेकिन उनका काम अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा नहीं उतरता। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के जरिये सरकार ने पहली बार इस दिशा में काम करने की मंशा जताई है। लेकिन इसके नतीजे आने में अभी वक्त लगेगा। शहरों में ट्रैफिक के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए जन भागीदारी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी संभव-

हैदराबाद में नवंबर के पहले सप्ताह में आयोजित ‘अर्बन मोबिलिटी इन इंडिया’ प्रोग्राम से निकले नतीजों में माना गया कि भारत के शहरों में 30 से 60 फीसद क्षेत्र पैदल घूमने या चलने लायक है। लेकिन उपयुक्त बुनियादी ढांचे के अभाव में लोग पैदल चलने के बजाय वाहनों का उपयोग करना पसंद करते हैं। अगर इन क्षेत्रों को पैदल चलने के योग्य बना दिया जाए तो शहरी क्षेत्रों में 25 फीसद ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन कम हो सकता है। इससे शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण जैसी विभीषिका पर काबू पाना आसान हो जाएगा।

सौ स्मार्ट शहरों में पैदल चलने की आदत डालने की है योजना-

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत देश के एक सौ स्मार्ट शहरों में लोगों में पैदल चलने की आदत डालने की योजना है। इसके लिए सुंदर व बेहतरीन डिजाइन के फुटपाथ बनाने का प्लान है। इसके अलावा साइकिल के साथ पॉड जैसी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। वैसे फुटपाथ के मामले में डिजाइन की कोई बड़ी समस्या नहीं है। देश के कई शहरों में प्राइवेट बिल्डरों की बनाई कालोनियों में अच्छे फुटपाथ देखे जा सकते हैं।

सरकारी एजेंसियां इनसे सीख सकती हैं। कुछ बिल्डरों ने कम संसाधनों के बावजूद अपनी विकसित कालोनियों में सड़क, फुटपाथ और स्ट्रीट लाइट का विश्वस्तरीय ढांचा खड़ा किया है। हेरिटेज शहरों में सरकार का है ज्यादा जोर देश के हेरिटेज शहरों में पैदल चलने की योजना पर सरकार का सबसे ज्यादा जोर है।

धार्मिक पर्यटन को देखते हुए वहां की तंग सड़कों के किनारे बनाए जा रहे फुटपाथ, इनके किनारे की दीवारों को धार्मिक व ऐतिहासिक चित्रों, वाल पेंटिंग्स तथा नक्काशी से सजाया जा रहा है। लेकिन चार हजार से अधिक शहरी निकायों में सुधार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करने होंगे।

स्ट्रीट वेंडर्स को बसाने का भी करना होगा इंतजाम-

शहरीकरण के जानकार अनिल चौहान कहते हैं कि केवल फुटपाथ भर बना देने से सफलता नहीं मिलेगी। बल्कि यह सुनिश्चित करना होगा कि इन फुटपाथों पर अतिक्रमण न होने पाए। साथ ही स्ट्रीट वेंडर्स को बसाने के इंतजाम भी करने होंगे। वैसे बढ़ते शहरीकरण के अनुरूप बुनियादी ढांचे का विकास न होना मुश्किलों को बढ़ा रहा है। जिन शहरों में फुटपाथ बने हैं, वहां दुकानदारों ने कब्जा जमा रखा है।

रोजगार की तलाश में गांवों से शहर आए गरीबों का फुटपाथ पर छोटी-मोटी दुकाने लगाना और रात में सामूहिक रूप से वहीं पर सो जाना बड़ी सामाजिक समस्या है। इन्हें बसाने के इंतजाम भी करने होंगे।


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