अहमदाबाद। पत्नी की असमति के बावजूद पति द्वारा संबंध बनाने को लेकर गुजरात हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि पति, अपनी पत्नी की सहमति के बिना भी संबंध बनाता है तो इसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अप्राकृतिक रूप से संबंध बनाने के मामले को दयाहीनता की श्रेणी में रखते हुए जांच हो सकती है। गुजरात हाईकोर्ट ने पति व पत्नी के बीच जबर्दस्ती बनाए गए यौन संबंधों पर कुछ समीक्षा के साथ पत्नी को उसके शरीर का मालिक बताया है।
गुजरात हाईकोर्ट के न्यायाधीश जे बी पारडीवाला ने उत्तर गुजरात के ईडर के एक दंपत्ती के मामले में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ जज वर्मा के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पत्नी पति की संपत्ती नहीं है, हालांकि शादीशुदा जिंदगी में पति को पत्नी के साथ संबंध बनाने का अधिकार है लेकिन पत्नी की मर्जी के विरुद्व नहीं।
अदालत ने साफ कहा कि वैवाहिक जीवन में जबर्दस्ती यौन संबंध को दुष्कर्म की श्रेणी में रखकर आईपीसी की धारा 375 के तहत मामला नहीं चलाया जा सकता। पत्नी ऐसे मामले में पति पर क्रूरता बरतने की शिकायत जरूर कर सकती है लेकिन इसे वैवाहिक दुष्कर्म नहीं माना जा सकता है।
न्यायाधीश ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून में शारीरिक व यौन हिंसा के मामले शामिल हैं उसके लिए अलग से दुष्कर्म के तहत जांच की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने माना की पत्नी की इच्छा के विपरीत अप्राकृतिक संबंध स्थापित करने पर आईपीसी की धारा 377 के तहत मुकदमे की इजाजत देता है।
ईडर के पति की याचिका पर अदालत ने उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज शिकायत को खारिज करते हुए पत्नी की याचिका पर सुनवाई जारी रखी है। लेकिन अदालत ने इस मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने से साफ इनकार किया है। न्यायाधीश पारडीवाला ने इस फैसले की कॉपी केन्द्र व राज्य सरकार के कानून विभाग व भारत सरकार के लॉ कमिशन को भी भेजने के निर्देश दिए हैं ताकि भविष्य में पति व पत्नी के सेक्स व घरेलू हिंसा जैसे मामलों में नियम बनाने में मदद मिल सके।